हिंदू पौराणिक कहानियां लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
हिंदू पौराणिक कहानियां लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 4 मई 2023

स्वर्ग की मुद्रा- नेकी कर दरिया में डाल

 स्वर्ग की मुद्रा- नेकी कर दरिया में डाल 

स्वर्ग की मुद्रा- नेकी कर दरिया में डाल

 

         एक धनराज नामक उद्योगपति था। वह प्रतिदिन अपनी कार से अपने ऑफिस जाता था। जैसे ही वह कार में बैठता तो FM रेडिओ शुरू करता। रेडिओ पर एक व्यक्ति सुबह सुबह आध्यात्मिक बातें सुनाता था।  वह हमेशा अपने कार्यकर्म की शुरुवात में कहता। जीवन का एक ही मूल मन्त्र हैं।  नेकी कर और दरिया में डाल। जीवन में नेकी के अलावा कुछ साथ नहीं जायेगा। कुछ भी साथ नहीं जायेगा यह वाक्य प्रतिदिन सुन सुन कर धनराज चिंतित होने लगा की मैंने इतनी मेहनत से इतनी धन सम्पदा बनाई हैं। और यह व्यक्ति बोल रहा ह कुछ भी साथ नहीं जायेगा। उसने निश्चित किया की कुछ करना पड़ेगा। वह अपने ऑफिस पहुंचा और PA को बुलाया और कहा की एक सर्कुलर जारी करो  जिसमे जो भी कर्मचारी यह उपाय सुझाएगा जिससे मृत्यु के बाद में अपनी धन सम्पदा साथ लेकर जा सकूँ। जैसे ही सर्कुलर जारी किया और सभी कर्मचारियों ने उसे पढ़ा तो मन ही मन कहने लगे की धनराज जी सटिया गए हैं।  निश्चित उनपे उम्र का असर दिखने लगा हैं। 

           बहुत लोगो ने इनाम के लालच में अपने अपने सुझाव दिए लेकिन धनराज के किसी का भी सुझाव गले नहीं उतरा।  फिर उसने इनाम की राशि को दुगना कर दिया। तभी एक अनजान व्यक्ति ने कहा की उसके पास एक आईडिया हँ।  जिससे धनराज की समस्या का समाधान हैं। तभी धनराज ने अपने मैनेजमेंट की मीटिंग में उस व्यक्ति को आमंत्रित किया। और उस व्यक्ति ने धनराज से कुछ प्रश्न पूछना शुरू किया।  
व्यक्ति - धनराज जी क्या आप अमरीका गए हैं ?
धनराज - हाँ मेरा पूरी दुनिया में कारोबार हैं तो मेरा आना जाना लगा रहता हैं।
व्यक्ति -निश्चित ही आपके रूपये अमरीका में अनुपयोगी होंंगे ।

धनराज - हाँ में रूपये को डॉलर में बदलवा लेता हूँ।  वंहा पर डॉलर ही चलता हैं
व्यक्ति - आप इंग्लैंड और अन्य देशो में भी जाते रहते होंगे और वंहा पे भी ऐसी व्यवस्था देखि होगी.
धनराज - हाँ इंग्लैंड में पौंड का चलन हैं और अन्य देशो में भी वंहा की करेंसी का प्रचलन होता हैं।
व्यक्ति - धनराज जी इसी प्रकार से मृत्यु के बाद भी आप अपने रूपये को कन्वर्ट करके लेके जा सकते हैं।
धनराज - लेकिन वंहा पे इस रूपये को  किसमे कन्वर्ट करना होगा।
व्यक्ति -आप अपने रूपये को स्वर्ग की मुद्रा में बदल सकते हैं।  जो हैं नेकी कर दरिया में डाल।
इसलिए धनराज जी आप अपने रूपये को लोगो के भलाई में खर्च करे।  ये सारा नेक कार्य स्वर्ग की मुद्रा में बदलता जायेगा  जिसका नाम हैं नेकी। इसलिए धीरे धीरे आप अपने रूपये को नेक कार्यो में लगते रहो ताकि आपके साथ स्वर्ग में नेकी जा सके।
इसलिए कहा जाता हैं की मर्त्यु के बाद केवल नेकी साथ जाती हैं।
तब  धनराज को अपनी कठिन मेहनत से कमाया रुपया अपनी मृत्यु के बाद अपने साथ  ले जाने का रास्ता मिला।

शिक्षा - व्यक्ति को बढ़ती उम्र के साथ साथ अपनी कमाई को नेकी की मुद्रा में बदलते रहना चाहिए अन्यथा आप अपनी मेहनत की कमाई यंही पे छोड़ कर जाना पड़ेगा।


शुक्रवार, 14 अप्रैल 2023

बिना मृत्यु के पुनर्जन्म की कहानी

 .         बिना मृत्यु के पुनर्जन्म की कहानी

बिना मृत्यु के पुनर्जन्म की कहानी


एक चोर ने राजा के महल में चोरी की। सिपाहियों को पता चला तो उन्होंने उसके पदचिह्नों(पैरों के निशान ) का पीछा किया। पीछा करते-करते वे नगर से बाहर आ गये। पास में एक गाँव था। उन्होंने चोर के पदचिह्न गाँव की ओर जाते देखे। गाँव में जाकर उन्होंने देखा कि एक साधु  सत्संग कर रहा  हैं और बहुत से लोग बैठकर सुन रहे हैं। चोर के पदचिह्न भी उसी ओर जा रहे थे।सिपाहियों को संदेह हुआ कि चोर भी सत्संग में लोगों के बीच बैठा होगा। वे वहीं खड़े रह कर उसका इंतजार करने लगे। 

सत्संग में साधु कह रहे थे- जो मनुष्य सच्चे हृदय से भगवान की शरण चला जाता है,भगवान उसके सम्पूर्ण पापों को माफ कर देते हैं। 

 गीता में भगवान ने कहा हैः 

  सम्पूर्ण कर्तव्य कर्मों को  त्याग कर तू केवल एक मुझ सर्वशक्तिमान सर्वाधार परमेश्वर की ही शरण में आ जा। मैं तुझे सम्पूर्ण पापों से मुक्त कर दूँगा, तू शोक मत कर। 

वाल्मीकि रामायण में आता हैः 

 जो एक बार भी मेरी शरण में आकर 'मैं तुम्हारा हूँ' ऐसा कह कर रक्षा की याचना करता है, उसे मैं सम्पूर्ण प्राणियों से अभय कर देता हूँ – यह मेरा व्रत है। 

    इसकी व्याख्या करते हुए साधु ने कहा : जो भगवान का हो गया, उसका मानों दूसरा जन्म हो गया। अब वह पापी नहीं रहा, साधु हो गया। 

     अगर कोई दुराचारी से दुराचारी  भी अनन्य भक्त होकर मेरा भजन करता है तो उसको साधु ही मानना चाहिए। कारण कि उसने बहुत अच्छी तरह से निश्चय कर लिया है कि परमेश्वर के भजन के समान अन्य कुछ भी नहीं है। 

       चोर वहीं बैठा सब सुन रहा था। उस पर सत्संग की बातों का बहुत असर पड़ा। उसने वहीं बैठे-बैठे यह दृढ़ निश्चय कर लिया कि अभी से मैं भगवान की शरण लेता हूँ, अब मैं कभी चोरी नहीं करूँगा। मैं भगवान का हो गया। सत्संग समाप्त हुआ। लोग उठकर बाहर जाने लगे। बाहर राजा के सिपाही चोर की तलाश में थे। चोर बाहर निकला तो सिपाहियों ने उसके पदचिह्नों को पहचान लिया और उसको पकड़ के राजा के सामने पेश किया। 

       राजा ने चोर से पूछाः इस महल में तुम्हीं ने चोरी की है न? सच-सच बताओ, तुमने चुराया धन कहाँ रखा है? चोर ने दृढ़ता पूर्वक कहाः "महाराज ! इस जन्म में मैंने कोई चोरी नहीं की।" 

 सिपाही बोलाः "महाराज ! यह झूठ बोलता है। हम इसके पदचिह्नों को पहचानते हैं। इसके पदचिह्न चोर के पदचिह्नों से मिलते हैं, इससे साफ सिद्ध होता है कि चोरी इसी ने की है।" राजा ने चोर की परीक्षा लेने की आज्ञा दी, जिससे पता चले कि वह झूठा है या सच्चा। 

      चोर के हाथ पर पीपल के ढाई पत्ते रखकर उसको कच्चे सूत से बाँध दिया गया। फिर उसके ऊपर गर्म करके लाल किया हुआ लोहा रखा परंतु उसका हाथ जलना तो दूर रहा, सूत और पत्ते भी नहीं जले। लोहा नीचे जमीन पर रखा तो वह जगह काली हो गयी। राजा ने सोचा कि 'वास्तव में इसने चोरी नहीं की, यह निर्दोष है।' 

     अब राजा सिपाहियों पर बहुत नाराज हुआ कि "तुम लोगों ने एक निर्दोष पुरुष पर चोरी का आरोप लगाया है। तुम लोगों को दण्ड दिया जायेगा।" यह सुन कर चोर बोलाः "नहीं महाराज ! आप इनको दण्ड न दें। इनका कोई दोष नहीं है। चोरी मैंने ही की थी।" राजा ने सोचा कि यह साधु पुरुष है, इसलिए सिपाहियों को दण्ड से बचाने के लिए चोरी का दोष अपने सिर पर ले रहा है। राजा बोलाः तुम इन पर दया करके इनको बचाने के लिए ऐसा कह रहे हो पर मैं इन्हें दण्ड अवश्य दूँगा। 

चोर बोलाः "महाराज ! मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ, चोरी मैंने ही की थी। अगर आपको विश्वास न हो तो अपने आदमियों को मेरे साथ भेजो। मैंने चोरी का धन जंगल में जहाँ छिपा रखा है, वहाँ से लाकर दिखा दूँगा।" राजा ने अपने आदमियों को चोर के साथ भेजा। चोर उनको वहाँ ले गया जहाँ उसने धन छिपा रखा था और वहाँ से धन लाकर राजा के सामने रख दिया। यह देखकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। 

   राजा बोलाः अगर तुमने ही चोरी की थी तो परीक्षा करने पर तुम्हारा हाथ क्यों नहीं जला? तुम्हारा हाथ भी नहीं जला और तुमने चोरी का धन भी लाकर दे दिया, यह बात हमारी समझ में नहीं आ रही है। ठीक-ठीक बताओ, बात क्या है ? चोर बोलाः महाराज ! मैंने चोरी करने के बाद धन को जंगल में छिपा दिया और गाँव में चला गया। वहाँ एक जगह सत्संग हो रहा था। मैं वहाँ जा कर लोगों के बीच बैठ गया। सत्संग में मैंने सुना कि ''जो भगवान की शरण लेकर पुनः पाप न करने का निश्चय कर लेता है, उसको भगवान सब पापों से मुक्त कर देते हैं। उसका नया जन्म हो जाता है।'' इस बात का मुझ पर असर पड़ा और मैंने दृढ़ निश्चय कर लिया कि 

" अब मैं कभी चोरी नहीं करूँगा। "

इस प्रकार से जब सोचो तभी सवेरा इस सत्संग से चोर की  बिना मृत्यु के पुनर्जन्म की कहानी सम्पन हुई

    अब मैं भगवान का हो लिया कि 'अब मैं कभी चोरी नहीं करूँगा। अब मैं भगवान का हो गया। इसीलिए तब से मेरा नया जन्म हो गया। इस जन्म में मैंने कोई चोरी नहीं की, इसलिए मेरा हाथ नहीं जला। आपके महल में मैंने जो चोरी की थी, वह तो पिछले जन्म में की थी। 

 कैसा दिव्य प्रभाव है सत्संग का ! मात्र कुछ क्षण के सत्संग ने चोर का जीवन ही पलट दिया। उसे सही समझ देकर पुण्यात्मा, धर्मात्मा बना दिया। चोर सत्संग-वचनों में दृढ़ निष्ठा से कठोर परीक्षा में भी सफल हो गया और उसका जीवन बदल गया। राजा उससे प्रभावित हुआ, प्रजा से भी वह सम्मानित हुआ और प्रभु के रास्ते चलकर प्रभु कृपा से उसने परम पद को भी पा लिया।

सत्संग पापी से पापी व्यक्ति को भी पुण्यात्मा बना देता है। 

जीवन में सत्संग नहीं होगा तो आदमी कुसंग जरूर करेगा। 

 कुसंग व्यक्ति से कुकर्म करवा कर व्यक्ति को पतन के गर्त में गिरा देता है लेकिन सत्संग व्यक्ति को तार देता है, महान बना देता है। ऐसी महान ताकत है सत्संग में !

बुधवार, 5 अप्रैल 2023

मकर संक्रांति

 मकर संक्रांति

     किसी भी साल की भांति 2023 का पहला पर्व मकर संक्रांति (Makar Sankranti 2023) का पड़ रहा है. देशभर में इस पर्व को बहुत ही धूम-धाम से मनाया जाता है. मकर संक्रांति का ज्योतिषी रूप से भी बहुत महत्व है. कहते हैं कि मकर संक्रांति के दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं, इसलिए इसे मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है. सूर्य 30 दिन में राशि बदलते हैं और 6 माह में उत्तरायण और दक्षिणायन होते हैं. मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण होते हैं. मकर संक्रांति 14 जनवरी, शुक्रवार के। 

      मकर संक्रांति (Makar Sankranti) का पर्व देशभर के अलग-अलग भागों में अलग तरीके और अलग नाम से मनाया जाता है. लेकिन सब जगह एक बार कॉमन यह है कि इस दिन तिल-गुड़ खाना और इसका दान करना शुभ माना जाता है. सदियों से इस दिन काले तिल के लड्डू खाने की परंपरा चली आ रही है. लेकिन क्या आप इसके पूछी की वजह जानते हैं? आइए जानते हैं इस दिन काले लड्डू क्यों बनाए और खाए जाते। काले तिल जो हैं वो शनि का रुप होते हैं व गूड़ सुर्य का प्रतिनिधित्व करता है ।इसलिए इस दिन तिल व गुड के लडू खाना व दान करना पसंद करते है । जिससे शनि की दशा को ठिक रखा जा सके।।

तिल व गुड की कहानी 


पौराणिक कथा के अनुसार सूर्य देव ने अपने बेटे शनि देव का घर कुंभ क्रोध में जला दिया था. कुंभ राशि के स्वामी शनि हैं और इस राशि को ही उनका घर माना जाता है. घर को जलाने के बाद जब सूर्य देव घर देखने पहुंचे, तो काले तिल के अलावा सब कुछ जलकर राख हो गया था. तब शनि देव ने सूर्य देव का स्वागत उसी काले तिल से किया.

मंगलवार, 4 अप्रैल 2023

कृष्णा ने नदी पार करने के लिए किया पानी सूखने का इंतजार

     नदी पार करने के लिए पानी सूखने का इंतजार कथा

(Short Story)

        एक बार भगवान श्री कृष्ण नदी के किनारे बैठे हुए थे ।तभी अर्जुन  आ जाता हैं।और पूछता हैं कि हे ! भगवान आप यहा पर क्या कर रहे हो ? कृष्ण ने जबाब दिया को में तो नदी में पानी खत्म होने का इंतजार कर रहा हूं।अर्जुन ने कहा परंतु ऐसा क्यों ? तब तो आप नदी कभी भी पार नहीं कर पाओगे, क्योंकि यह पानी तो कभी नहीं खत्म होने वाला है ।

      श्री कृष्ण ने कहा यही बात तो मैं आप लोगों को समझा रहा हूं। की इस बहते हुए पानी की भांति ही अपनी जिन्दगी हैं।यह कभी भी नहीं रुकती है।इसको चलते हुए ही सुख दुख में इस भवसागर को पार करना होता है।

शिक्षा - अच्छे समय का इंतजार मत कीजिए। जो करना हैं उसे बिना वक्त गंवाए शुरू कर दीजिए।

शुक्रवार, 10 मार्च 2023

कैलाश पर्वत का पौराणिक और रहस्यों की दुनिया

दुनिया की सबसे बड़ी अबूझ कहानी

कैलाश पर्वत का पौराणिक और रहस्यों की दुनिया 

वैसे तो विज्ञान ने इस संसार को बहुत सी अनसुलझी गुत्थी को सरल करके मानव जीवन में शामिल कर लिया। लेकिन आज भी कुछ ऐसी अनसुलझी कहानियां मानव के लिए केवल मात्र कल्पनाओं और रहस्यो का पहाड़ बने खड़ी हैं। 

        इनमे से प्रकृति का सबसे सुंदर और ब्रह्मांड का केंद्र कहे जाने वाले और भगवान शिव का निवास स्थान कैलाश पर्वत आज भी इस बुद्धिमान इंसान के लिए केवल कल्पना के अलावा कुछ नही हैं। सफेद बर्फ से ढका कैलाश पर्वत जिसकी ऊंचाई 6638 मीटर ( 22078 फुट ) ऊंचे शिखर और इससे लगे मानसरोवर एक तीर्थ स्थल के साथ साथ अनुसंधान का बड़ा केंद्र हैं।

कैलाश पर्वत का पौराणिक इतिहास।

    पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह कुबेर की नगरी हैं।और यहां से भगवान विष्णु के करकमलों से निकलकर गंगा मैया कैलाश पर्वत की चोटी पर गिरती हैं। जहां से भगवान शिव जी अपनी जटाओं में भर कर धरती पर निर्मल धारा के रूप में प्रवाहित करते हैं। कैलाश पर्वत के ऊपर स्वर्ग और नीचे मृत्युलोक हैं। कैलाश मानसरोवर का अस्तित्व भी हमारी सृष्टि के समय से ही माना जाता हैं। 

          यह रहस्यम पर्वत अपने साथ बहुत सी रोचक और रहस्य युक्त कहानियों का एक संग्रह हैं।जिसको आज के मानव जितना समझता हैं उतनी ही उसकी जिज्ञासा बढ़ती जाती हैं।हिंदू ग्रंथ शिवपुराण, स्कंद पुराण, मत्स्य पुराण में कैलाश खंड नाम से अलग ही अध्याय दिए गए हैं। कैलाश पर्वत को भगवान शिव और माता पार्वती अपने परिवार के साथ निवास करते थे।कहा जाता हैं की अच्छे कर्मों से मोक्ष की प्राप्ति के उपरांत ऐसी आत्माओं का वास कैलाश पर्वत पर ही माना जाता हैं।

          इसलिए इस स्थान को अप्राकृतिक शक्तियों के केंद के रूप में भी देखा जाता हैं। रामायण में भी इस पर्वत के पिरामिडनुमा आकृति होने का वर्णन किया गया हैं। इसको धरती का केन्द्र बिंदु के रूप में जाना जाता हैं। इसे भौगोलिक और आकाशीय ध्रुव का केंद माना गया हैं जहां पर आकाश धरती से आकर मिलता हैं। 

           इस लिए अलौकिक शक्तियों का प्रवाह स्थल केंद्र को एक्सिस मुंडी कहा जाता हैं। यहां पर आकर आज भी लोग उन शक्तियों के संपर्क में आते हैं और महसूस करते हैं। और जब भी इंसान ने अपनी बुद्धि के बल इन्हे फतेह करने की कोशिश की केवल अफलताओ के साथ ही लौटना पड़ा हैं।धरती के उतरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव के मध्य एकदम समान दूरी पर विराजमान हैं कैलाश पर्वत यह अपने आप में आज भी रहस्य हैं। इसलिए इसे वैज्ञानिक भी धरती का केंद्र बिंदु स्वीकार करते हैं।

सर्वधर्म स्थल

कैलाश पर्वत दुनियां के 4 मुख्य धर्मों की आस्था का केंद्र भी माना जाता हैं। इसे हिन्दू,जैन, बौद्ध और सिख धर्म के अनुयायी अपना पवित्र तीर्थ के रूप में पूजते हैं।पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान ऋषभदेव ने यहां पर निर्वाण प्राप्त किया था। श्री भरतेश्वर स्वामी मंगलेश्वर श्री ऋषभदेव भगवान के पुत्र भरत ने दिग्विजय के समय इस पर्वत पर विजय प्राप्त की थी।

         पांडवो के दिग्विजय प्रयाय के समय अर्जुन ने इस परदेश पर विजय प्राप्त की थी। इसके अलावा भी अनेक ऋषि मुनि के यहां पर निवास का उल्लेख प्रात होता हैं। जैन धर्म में श्री भरत स्वामी ने रत्नों के 72 जिनालय बनवाये थे इसलिये इस पर्वत का जैन धर्म में भी बहुत मान्यता हैं।

कैलाश की भौगोलिक संरचना में विज्ञान और रहस्य।

कैलाश पर्वत एक बहुत बड़ा पिरामिड हैं जो 100 पिरामिडो का केंद्र हैं। इसकी लंबाई भारत,तिब्बत और चीन में 600 किलोमीटर हैं। इसकी संरचना कम्पास के चार बिंदुओ के समान हैं।और जहां पर कोई बड़ा पर्वत नही हैं। यह दुनियां के उत्तर ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव के मध्य में स्थित हैं और इसी जगह पर आकाश का धरती का केंद्र बिंदु माना गया हैं। 

          यंहा पर दो सरोवर हैं पहला मानसरोवर  जो पश्चिम में स्थित हैं जो दुनिया की सबसे उच्चतम झीलों में से एक हैं और इसका पानी शुद्धता के साथ मीठा पानी हैं। इसको स्वर्ग की झील भी कहा जाता हैं। इसका आकार सूर्य के समान हैं जो करीब 600 मीटर के क्षेत्र में हैं। और इसकी मान्यता हैं की भगवान शिव प्रात: काल में यहां पर स्नान करते हैं।इस झील का संबंध सकारात्मक ऊर्जा से भी माना जाता हैं।दूसरी झील हैं उसको राक्षक नामक झील के नाम से जाना जाता हैं। ये पर्वत के दक्षिणी छोर पर हैं ।इसका आकार चंद्र के समान हैं।और इसका जल खारा पानी लिए हुए हैं जो नकरतामक ऊर्जा के रूप में जानी जाती हैं। माना जाता हैं की लंकेश पति श्री रावण ने इसी झील के किनारे शिव की साधना करके सहक्तियो को प्राप्त की थी। और रावण ने शंकर भगवान से मिलने से पहले इसी झील में स्नान किया था जिससे उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी । 

          ये  झील प्राकृतिक तौर पे बनी हुई हैं या निर्मित हुई हैं यह आज भी रहस्य हैं। वैज्ञानिक के शोध के अनुसार इस झील में गैसों का मिश्रण हैं जो हमारे शरीर के लिए नुकसानदायक होता हैं। इसलिए इसमें स्नान करना मना हैं।कैलाश पर्वत से चारो दिशाओं में चार नदियों का उद्गम हुआ हैं। ब्रह्मपुत्र , सिंधु, सतलज और करनाली ।इन्ही नदियों से गंगा, सरस्वती सहित चीन और अन्य नदिया निकलती हैं।कैलाश पर्वत के चारो नदियों के उद्गम स्थल का मुख जानवरों के मुखों के समान हैं। पूर्व में अश्वमुख,पश्चिम में हाथी मुख,उतर में सिंह का मुख और दक्षिणी उद्गम स्थल का मुख मोर की भांति दिखता हैं।

शिव का रावण को वरदान।की कहानी

रावण अपने समय में पृथ्वीलोक पर सबसे बड़े पंडित और ज्ञानी लोगो में शुमार थे।इसलिए परमज्ञानी  रावण को अपने सर्वशक्तिमान होने का अभिमान हो गया ।उसी शक्ति के आवेश में आके एकदीन रावण शिव जी के आसान यानी की कैलाश पर्वत को उठाने का प्रयास किया। जिससे सम्पूर्ण जगत भयभीत हो गया। अब जानते हैं उस प्रसंग को जिसमे रावण भोलेनाथ को प्रसन्न करके मनचाहा वरदान प्राप्त करते हैं।

   एक बार रावण कैलाश पर्वत पर भोलेनाथ की तपस्या में लीन होगया और घोर तपस्या को।लेकिन शिव जी प्रसन्न नही हुऐ तब शंकर को प्रसन्न करने के लिए रावण ने अपने शीश काट काट कर शिव जी के चरणों में रखना शुरू कर दिया। इस प्रकार से रावण ने 9 शीश शिव जी के चरणों को समर्पित कर दिए जैसे ही 10 वा शीश काटने लगा शिव।जी प्रकट हुऐ और मन मुताबिक वरदान मांगने को कहा।रावण ने कहा की हे नाथ ऐसा बल दो जिसका जिसकी कोई तुलना न हो। और जीतने शीश।मैने आपके चरणों में अर्पित किए वो भी पहले की तरह हो जाए।भगवान शिव तथास्तु कह कर अंतर्ध्यान हो गए। रावण ने सोचा की अब आकाश पाताल और धरती उससे अधिक बलशाली कोई नहीं हैं। 

          इधर रावण को वरदान मिलने की सूचना जैसे ही देवी देवताओं और ऋषियों को मिली तो उनमें भय व्याप्त हो गए और वो चिंतित होकर देवऋषि नारद से समाधान पूछा।नारदजी ने उन्हें कहा की कार्य थोड़ा मुश्किल हैं लेकिन असंभव नही। नारद के उतर से देवता ऋषि संतुष्ट हो गए। 

     उधर रावण मदमस्थ होकर लंका की और प्रस्थान कर रहा था।नारद जी ने भी वही।मार्ग चुना और रावण के सामने आगया। और बोले हे लंकेश्वर आपकी खुशी बता रही हैं की निश्चित ही आपको कोई मनपसंद वर की प्राप्ति हुई हैं। रावण ने खुशी से बुलंद आवाज में कहा की सत्य हैं देवऋषी आज में बहुत प्रसन्न हू, क्योंकि भगवान शिव से मैने अतुल्य बल का वरदान प्राप्त किया हैं। नारदजी मुस्कराते हुऐ बोले हे राक्षस राज आप इतने बुद्धिमान होकर उस नशे में मस्त रहने वाले अघोरी की बातों में आगये। उन्होंने नशे में वर दे दिया होगा और आप उससे सच मान बैठे। 

        नारद के चक्रव्यू में  तुरंत रावण की बुद्धि घूम गई और  नारद के सुझाए अनुसार  कैलाश पर्वत को उठाके देख ले ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए। नारद ने कहा तुरंत जाएं लंकेश अन्यथा देर हो जायेगी।

     रावण ने तुरंत पहुंच कर कैलाश पर्वत को उठाने का प्रयास किया ,पर्वत को हिलता देख माता पार्वती सहित सभी लोग भयभीत होगए। शिव जी समझते तनिक भी देर नहीं लगी और शिव जी क्रोध में होके की इस घमंडी को अभी सबक सिखाता हु। कह कर अपने पैर के एक अंगूठे से पर्वत को थोड़ा नीचे दबा दिया। रावण उसके नीचे दब कर छटपटाने लगा।और शिव जी को शांत।करने की प्रार्थना करने लगा। जिसे भगवान शिव ने दयालुता दिखाते हुए स्वीकार किया और रावण को क्षमा किया।

कैलाश पर्वत पर क्यों नहीं चढ़ पाता इंसान

    11 वीं शताब्दी में एक तिब्बती बौद्ध जिनका नाम था मिलारेपा था । वो कैलाश पर्वत पर चढ़े थे। लेकिन उन्होंने कभी भी इसके बारे में कुछ भी दुनिया को नही बताया। इसके बाद की तमाम कोशिशें असफल रही। इसके पीछे बहुत से तथ्य हैं। जैसे की जो भी पर्वतारोही ने कोशिश की उन्होंने पाया की उनके नाखून और बाल बहुत तेजी से बढ़ने लगते हैं।। सामान्य हमारे बाल और नाखून जितना एक महीने में बढ़ते हैं वो कैलाश पर्वत पर मात्र 8 दिन में ही बढ़ जाते हैं। चेहरे पर बुढ़ापा सा।महसूस होने लगता हैं मन परिवर्तित होने लगता हैं।

        रूस के वैज्ञानिक दल ने पाया की  जैसे जैसे वो आगे बढ़े मौसम में बहुत तेजी से परिवर्तन होने लगा । बर्फीली तूफान चलने लगा। उनको लगा की कोई शक्ति उन्हे चढ़ने से रोक रही हैं। और उनके शरीर की ऊर्जा भी कम होने लगी जिससे उनको लगा की ये अप्राकृतिक कार्य हैं। और उन्होंने बीच में ही यात्रा को समाप्त।कर लौटना पड़ा और वापस आतें ही उन्हें सामान्य महसूस हुआ। यह भी देखा गया की कैलाश पर्वत पर समय धरती के मुकाबले जल्दी गुजरता हैं। इसी के कारण लोगो को जल्दी बूढ़ा होने का आभास होता हैं और उनकी ऊर्जा में भी कमी होने लगती हैं।

       6638 मीटर की चढ़ाई के उपरांत चुम्मकीय कम्पास भी अपनी दिशा बताने में धोका देने लगता हैं ।क्योंकि यह बहुत अधिक रेडियो एक्टिव हैं। जिससे दिशाभ्रम भी हो जाता हैं।बहुत से वैज्ञानिक ये मानते हैं की कैलाश पर्वत पर हिम मानव का निवास संभव हैं। जो लोगो को खा सकते हैं।


ॐ की ध्वनि का रहस्य

कैलाश पर्वत पूरा बर्फ की चादर में लिपटा हुआ हैं इस प्रदेश को मानखंड भी कहते हैं। इसकी चोटी की आकृति शिवलिंग की भांति दिखाई देती हैं।बहुत से यात्रियों ने बताया की को कैलाश पर्वत के क्षेत्र में जाने पर ॐ की ध्वनि सुनाई देना शुरू हो जाती हैं जिससे आराम से सुना जा सकता हैं।कैलाश पर्वत के मनारोवर झील के क्षेत्र में एयरोप्लेन की आवाज महसूस होती हैं लेकिन ध्यान से सुनने पर ये ॐ की धुन और डमरू की आवाज जैसी सुनाई पड़ती हैं। 

       वैज्ञानिक मानते हैं की यह आवाज बर्फ के पिघलने की हो सकती हैं।या हो सकता हैं की प्रकाश और ध्वनि का ऐसा मेल होता हो जिससे ॐ की ध्वनि सुनाई देती हो। लेकिन वास्तविक क्या हैं यह आज भी रहस्य ही हैं।


रंगबिरंगी रोशनी का रहस्य

कई बार देखा गया किन कैलाश पर्वत पर रंग बिरंगी रोशनी आकाश में चमकती दिखाई देती हैं। नासा के वैज्ञानिकों ने माना की ये अत्यधिक चुंबकीय बल आसमान से।मिलकर इस तरह के प्रकाश का निर्माण कर सकता है। कैलाश पर्वत को रजत गिरी भी कहा जाता हैं। इसका दक्षिणी भाग नीलम,पूर्व भाग क्रिस्टल,पश्चिमी भाग रूबी और उतरी भाग स्वर्ण रूप में माना जाता हैं।

मंगलवार, 28 फ़रवरी 2023

होली की पटकथा-एक पौराणिक लेख

होली पर एक पौराणिक लेख

होली पर एक पौराणिक लेख


होली का नाम सुनते ही हमारे जिहान में रंगो की बारिश होने लगती हैं।यह त्यौहार भारतवर्ष का पुराने पर्वों में से एक हैं। होली से संबंधित इतिहास और पौराणिक कथाओं में बहुत कुछ लिखा हुआ हैं , एक बात कॉमन हैं की सदैव से ही सत्य की असत्य पर और धर्म की अधर्म पर विजय ने उत्सव का रूप धारण किया है

होली का पर्व और जीवन दर्शन

यह पर्व प्यार और रंगो का अदभुत संगम हैं।पौराणिक कहानियां में भी इस बसंत के सुंदर मौसम में रंग डालने की लीलाओं का वर्णन मिलता हैं।मथुरा और वृंदावन की विश्व में पहचान ही राधा और कृष्ण के प्रेम के रंग में डूबी हुई होती हैं । अक्षर धाम की और से हर होली पर फूलो से होली खेलने की परंपरा हैं। बरसाने की लठ मार होली पूरे विश्व में अपनी पहचान रखती हैं।

         देश विदेश से भी लोग और कृष्ण भक्त इस पर्व को आपस में सद्भावना बढ़ाने ,प्रेम का भाव जगाने,भाव और भक्ति का मिश्रण करने के साथ आनन्द में ढूबने का नाम हैं होली।लोग कृष्ण को ठाकुर की नाम से भी पुकारते हैं। यह फेस्टिवल जीवन दर्शन का एक बेहतरीन उदहारण पेश करता हैं। की जीवन इन रंगो की तरह सतरंगी होता हैं। हमेशा एक सा रंग जीवन में कभी भी किसी के पास भी नहीं ठहरता हैं।इसलिए जीवन में अहंकार,द्वेष,ईर्ष्या,संशय,को समाप्त कर प्रेम के रंग भरने का अनूठा पर्व हैं होली। होलिका की प्रह्लाद को जलाने की कोशिश भी हमे जीवन की एक यथार्थ शिक्षा देती हैं। की शक्ति का गलत उपयोग करना आप पर विपरीत प्रभाव छोड़ता हैं। 

          इसलिए अपनी शक्ति or पावर का  इस्तेमाल हमेशा निर्बल और कमजोर के उत्थान के लिए ही किया जाना चाहिए।आज का मानव शक्ति का प्रयोग भ्रष्टाचार के लिए ,विरोधियों को कुचलने के लिए, बीवी बच्चो को मौज - आराम की जिंदगी देने के लिए करता हैं।जिनका अंतिम अंजाम हिरण्याकुश की तरह ही समाप्त होता हैं।

पौराणिक कथाओं में होली मानने को लेकर अलग अलग मत हैं।

पार्वती & कामदेव-

       हिमालय पुत्री पार्वती शिव जी से विवाह करना चाहती थी। लेकिन शिवजी के तपस्या में लीन होने के कारण ये संभव ना था। इसमें कामदेव ने पार्वती की सहायता की और पुष्प बाण से शिव जी तपस्या में भंग डाल दिया।शिव जी इससे बहुत क्रोधित हुए और अपनी तीसरी आंख खोल दी। शिव जी के इस क्रोध में कामदेव जलकर भस्म हो गए।और फिर शिव ने पार्वती को देखा और उन्हे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। इस कहानी को लोग वासनाओं के आकर्षण को प्रतीकात्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम के विजय  उत्सव के तौर पे मनाया जाता हैं। 

        एक अन्य कथा जो लोक गीत के रूप में हैं में कहा जाता हैं की कामदेव की पत्नी जब पति की अकाल मृत्यु पर विलाप करती हुई शिव से कामदेव को पुनर्जीवित करने की विनती करती हैं और शिवजी कामदेव को वापस जीवन दे देते हैं। ये दिन होली के रूप में मनाया जाता हैं।साथ ही कामदेव के जीवित होने की खुशी में रंगो पर्व मनाया जाता हैं।

असुरराज हिरण्यकशिपु और बेटा प्रह्लाद बहन & होलिका

       विष्णु पुराण के अनुसार असुरराज हिरण्यकशिपु ने जब अपनी कठोर तपस्या से।खुश करके ऐसा वरदान ले लिया था की वो ना तो पृथ्वी पर मरेगा न आकाश में, न दिन में न रात में, न घर में न बाहर में, न अस्त्र से न शास्त्र से, न मानव से ने पशु से मरूंगा। यह वरदान पाके वो अपने आपको अजर अमर समझ बैठा और नास्तिक होगया और प्रजा में भगवान की जगह लोग असुरराज हिरण्यकशिपु की पूजा करने लगे लेकिन उनका बेटा प्रह्लाद जो कृष्ण भक्त था ने अपने पिता को ईश्वर मानने से इंकार कर दिया। इससे क्रोधित होकर उन्होंने अपनी बहन होलिका के साथ मिलकर प्रह्लाद को मरने प्लान रचा।क्योंकि होलिका प्रह्लाद की बुहा थी और उसे आग में नही जलने का वरदान मिला हुआ था। होलिका बालक प्रह्लाद को गोद में लेके अग्नि में बैठ जाती हैं। 

         नारायण की कृपा से भगत की जान बचा ली जाती हैं और होलिका का जलने से निधन हो जाता हैं इसी दिन को होलिका दहन के नाम से जाना जाता हैं। और इसी के कारण खुशी को रंगो  के त्योहार रूप में मनाया जाता हैं।


सोमवार, 27 फ़रवरी 2023

शिव पार्वती और एक किसान -कहानी

                                 

भगवान भी किसान के सामने बेबस होगये 

शिव पार्वती और एक किसान

यह कहानी हैं भगवान शिव जी और माता पार्वती की जो एकबार यमलोक से पृथ्वी लोग के सफर पे जा रहे थे। और शिव व पार्वती साधुओं के भेष में थे।रास्ते में जाते समय पार्वती ने देखा की एक किसान घनी धूप में अपने खेत में काम कर रहा था। और पसीने से लथपथ हो रखा था। उसका हाव भाव देख के पार्वती को लगा की ये बहुत दुखी हैं और उसे उस किसान पर दया आ गई। 

        पार्वती ने शिव जी को किसान की और साथ से इशारा करके देखने को कहा। तो शिव जी पार्वती को रास्ते में आगे बढ़ने को कहा लेकिन पार्वती जी तो ठहरी दया की देवी अपनी जिद्द पर अड़ गई। शिव जी को समझ आ गया की आज पार्वती फिर फंसा कर ही मानेगी।दोनो उस किसान के पास पहुंचे और किसान को अभिवादन किया। किसान भी अनमने मन से उनको अभिवादन किया। शिव ने कहा की भाई कुछ दुखी लग रहे हो बताओ हम आपकी कुछ मदद कर सकें। 

          किसान ने कहा में तो खेत में मेहनत करके अनाज उगाता हु और मेहनत की खाता हु। आप ठहरे साधु संत मांग के गुजारा चलाते हो आप मेरी क्या मदद करोगे। आप अपने रास्ते आगे बढ़िए। लेकिन शिव जी ने कहा भाई देखो हम भगवान हैं। आप अपनी मुसीबत हमे बताओगे तो हम आपकी जरूर सहायता करेंगे। हमे आगे पीछे का सब मालूम होता है। पार्वती ने भी हां में हां भरीऔर किसान को समझाने की कोशिश करने लगी की वो जरूर अपनी पीड़ा शिवजी को बताए ताकि भगवान उनकी सहायता कर सके। दुखी किसान कड़ी धूप और पसीने से परेशान था उसको और गुस्सा आ गया । 

         अब किसान बैलों को छोड़के शिव पार्वती के पास आ गया और बोला की आपने किसको आगे पीछे की पूरी जानकारी होती हैं। यह बोलते ही शिव जी समझ गए की आज पार्वती ने गलत जगह पंगा मंडवा दिया हैं। तुरंत पार्वती ने कहा की ये भगवान हैं इन्ही को सब पता होता हैं। शिव जी ने किसान से कहा हां हां बताइए । किसान के हाथ में बैलों को हेकने के लिए एक लकड़ी हाथ में थी। किसान ने कहा की साधु महाराज आपको तो आगे पीछे का पता ही हैं तो बताओ की ये लकड़ी अब आपके पैरो पे पड़ेगी या पीठ पे। यह सुनकर शिव जी सकपका गए। यदि पैर बोल दिया तो ये किसान उसकी पीठ पे लठ ठोकेगा और पीठ बोल दिया तो टांगे तोड़ देगा।

           ऐसी स्थिति में देख के पार्वती जी मन ही मन में बड़ी खुश हुई की आज आया है ऊंट पहाड़ के नीचे । अपने हाथ पैर जोड़ कर शिव जी ने किसान से माफी मांगी और बड़ी मुश्किल से गले आई मुसीबत से पीछा छूटवाया।।

शनिवार, 25 फ़रवरी 2023

महिलाओं के नाभि को ढकने की कहानी

शिवजी  और पार्वती

   एक समय की बात हैं ।  शिवजी  और पार्वती दोनो कैलाश पर्वत पर आराम फरमा रहे थे तभी पार्वती जी ने शिवजी से कहा की क्यों न वो पृथ्वी की सैर करने के लिए जाया जाय। शिवजी ने भी हामी भर दी और कहा  पार्वती जी आप 12 महीने वाले रास्ते से चलेंगी  या 6 महिनेवाले रास्ते से। माता पार्वती ने कहा कि मैं तो 12 महीने वाले रास्ते से चलूंग। 

      शिवजी ने कहा कि देखो पृथ्वी  में तरह तरह के लोग हैं उनके तरह-तरह के कष्टों को देखकर तुम दुखी मत होना । माता पार्वती ने कहा की ठीक हैं मैं बिलकुल भी दुखी नहीं होऊँगी । माता पार्वती तथा शिवजी धरती की सैर पर निकल पड़े। सबसे पहले उन्होंने देखा कि एक गाय जो है वह दर्द से तड़प रही थी तो पार्वती जी ने पूछा शिवजी से यह क्या हो रहा है। तो शिवजी ने कहा कि ऐसे ही है आप आगे चलो ऐसा कुछ भी नहीं है। माता पार्वती ने कहा कि हे स्वामी पहले मुझे बताओ कि क्या हो रहा है। शिवजी ने कहा कि गाय को बच्चा होने वाला है तो पार्वती जी ने कहा कि मां बनने पर इतने कष्ट होते हैं। तुम मेरी तो कोख बांध दो एक बार गांठ लगने के पश्चात दोबारा नहीं खुलती है ।

       माता पार्वती शिव जी आगे बढ़े एक नगर में पहुंचे तो नगर में बहुत शांति तथा वहां के लोग उदास दिखाई दीये। माता पार्वती ने पूछा कि क्या बात हैं । इतनी शांति क्यों हैं और आप लोग उदास क्यों हों। 

      लोगों ने कहा कि नगर की महारानी को बच्चा पैदा होने वाला है तो वह बहुत ही पीड़ा में है । माता पार्वती जी इतनी हर्ट हुई कि उन्होंनेवशी जी से कहा की अगर माता बनने में इतना कष्ट है तो मेरी तो कोख  बांध दो । शिव जी ने कहा कि नहीं ऐसी  हट  नहीं करते हैं । फिर आगे चले रास्ते में घोड़ी को कष्ट हो रहा था ।  माता ने पूछा यह घोड़ी क्यों रो रही हैं।इसको क्या हो रहा है  तो शिव जी ने फिर कहा  की घोड़ी को बच्चा पैदा होने वाला हैं ।इसलिए वह कष्ट में है। माता पार्वती ने कहा कि नहीं अब तो आपको मेरी कोख बांधनी पड़ेगी । 

      इस बार पार्वती के  हट के पश्चात शिवजी ने उनकी कोख बांध दिया।  माता पार्वती जी के साथ शिव जी अपने ससुराल पहुंचे ससुराल में उनकी बहुत आवभगत की गई। बहुत मिठाईयां बनी व्यंजन बनाए गए उन सब मिठाइयों व्यंजनों को शिवजी अकेले ही खा गए ।माता पार्वती के लिए कुछ भी नहीं बचा माता पार्वती ने सिर्फ भथवा और पानी पीकर अपनी भूख मिटाई। दोपहर के समय जब शिवजी और पार्वती जी दोनों बैठे थे। तो शिवजी ने पार्वती से पूछा कि तुमने खाने में क्या खाया पार्वती ने कहा कि जो आपने खाया वही मैंने खाया । पार्वती माता को नींद आ गई तो शिवजी ने उनकी नाभि की ढकनी उतार कर देखा तो उसमें सिर्फ भथूआ और पानी ही था। जब माता पार्वती जगी तो शिव जी ने उनसे कहा कि तुमने मुझे झूठ क्यों कहा तुमने तो खाने में केवल भथुवा और पानी पिया था । 

      इस बात से माता पार्वती क्रुद्ध हो जाती हैं।उन्होंने कहा कि आज के बाद कोई भी महिला की नाभि की ढकन नहीं उतार सकेगा। और  उसकी नाभि में उसके पीहर तथा ससुराल की इज्जत होगी। इसके बाद माता पार्वती तथा शिवजी कैलाश पर्वत की ओर वापस चल पड़े। रास्ते में वो गाय दिखी जो अब अपने बच्चे के साथ बड़ी खुशी से खेल रही थी । आगे चले तो देखा की नगर के अंदर लोग बड़े खुश हो रहे थे। एक दूसरे को मिठाईयां बांट रहे थे। और ढोल बज रहे थे तो माता पार्वती ने पूछा कि यह सब क्या हो रहा है ? 

      शिव जी ने कहा की नगर की महारानी के बेटा पैदा हुआ है ।इस खुशी में ढोल नगाड़े बजाए जा रहे और मिठाइयां बांटी जा रही हैं। माता पार्वती ने कहा कि आपको मेरी गांठ तो खोलनी पड़ेगी। तब शिव जी ने कहा की  मैंने कहा था ना एक बार गांठ लगने के बाद उन्हें नहीं खोली जाती है । लेकिन माता पार्वती ने उस खुशी को प्राप्त करने के लिए उन्हें अपने कोख को खुलवाया।

 नाभि की रोचक जानकारी- नाभि से व्यक्तित्व की  पहचान

 
शास्त्र में नाभि के रूप

1.समुद्र शास्त्र में नाभि के प्रकार के अनुसार स्‍त्री और पुरुष के व्यक्तित्व के बारे में उल्लेख मिलता है। जिन महिलाओं की नाभि समतल होती है उन्हें जल्द गुस्सा आता है, लेकिन पुरुष की नाभि समतल है तो वह बुद्धिमान और स्पष्टवादी होगा। जिनकी नाभि गहरी होती है वे सौंदर्य प्रेमी, रोमांटिक और मिलनसार होते हैं। इन्हें जीवनसाथी सुंदर मिलता है। जिन महिलाओं की नाभि लंबी और वक्री होती है, वे आत्मविश्वास से भरी हुई और आत्मनिर्भर होती हैं। जिनकी नाभि गोल होती है, वे आशावादी, बुद्धिमान और दयालु होती हैं। ऐसी महिलाओं का वैवाहिक जीवन सुखमय गुजरता है। उथली नाभि वाले लोग कमजोर और नकारात्मक होते हैं। ऐसे लोग अक्सर काम को अधूरा छोड़ देते हैं और वे स्वभाव से चिढ़चिढ़े भी होते हैं।

2.ध्यान दीजियेगा की जिन लोगों की नाभि ऊपर की ओर बड़ी और गहरी होती हैं ,तो ऐसे लोग अमूमन हंसमुख और मिलनसार स्वभाव के होते हैं। उभरी और बढ़ी हुई नाभि है तो ऐसे लोग जिद्दी प्रकार के होते हैं। अंडाकार नाभि वाले लोग सोचने में अपना समय गंवाकर हाथ आया मौका छोड़ देते हैं। चौड़ी नाभि वाले लोग शक करने वाले और अंतरमुखी होते हैं। जिन लोगों की नाभि ऊपर से नीचे आती हुई 2 भागों में बंटी हुई दिखाई दे तो ऐसे लोग आर्थिक, पारिवारिक और सेहत की दृष्टि से मजबूत होते हैं। 

3. नाभि पर सरसों का तेल लगाने से होंठ मुलायम होते हैं। नाभि पर घी लगाने से पेट की अग्नि शांत होती है और कई प्रकार के रोगों में यह लाभदायक होता है। इससे आंखों और बालों को लाभ मिलता है। शरीर में कंपन, घुटने और जोड़ों के दर्द में भी इससे लाभ मिलता है। इससे चेहरे पर कांति बढ़ती है।

 4.हिन्दू शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि भगवान ब्रह्मा का जन्म विष्णु की नाभि से हुआ था। दरअसल, इस संसार में प्रत्येक मनुष्य का जन्म नाभि से ही होता है। नाभि को पाताल लोक भी कहा गया है। विष्णु पाताल लोक में ही रहते हैं। इस धरती और संपूर्ण ब्रह्मांड का भी नाभि केंद्र है। नाभि केंद्र से ही संपूर्ण जीवन संचालित होता है।

5 हिन्दू शास्त्रों के अनुसार नाभि हमारी जीवन ऊर्जा का केंद्र है। कहते हैं कि मृत्यु के बाद भी प्राण नाभि में 6 मिनट तक रहते हैं। शरीर में दिमाग से भी महत्वपूर्ण स्थान है नाभि का। नाभि शरीर का प्रथम दिमाग होता है, जो प्राणवायु से संचालित होता है।