दुनिया की सबसे बड़ी अबूझ कहानी
वैसे तो विज्ञान ने इस संसार को बहुत सी अनसुलझी गुत्थी को सरल करके मानव जीवन में शामिल कर लिया। लेकिन आज भी कुछ ऐसी अनसुलझी कहानियां मानव के लिए केवल मात्र कल्पनाओं और रहस्यो का पहाड़ बने खड़ी हैं।
इनमे से प्रकृति का सबसे सुंदर और ब्रह्मांड का केंद्र कहे जाने वाले और भगवान शिव का निवास स्थान कैलाश पर्वत आज भी इस बुद्धिमान इंसान के लिए केवल कल्पना के अलावा कुछ नही हैं। सफेद बर्फ से ढका कैलाश पर्वत जिसकी ऊंचाई 6638 मीटर ( 22078 फुट ) ऊंचे शिखर और इससे लगे मानसरोवर एक तीर्थ स्थल के साथ साथ अनुसंधान का बड़ा केंद्र हैं।
कैलाश पर्वत का पौराणिक इतिहास।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह कुबेर की नगरी हैं।और यहां से भगवान विष्णु के करकमलों से निकलकर गंगा मैया कैलाश पर्वत की चोटी पर गिरती हैं। जहां से भगवान शिव जी अपनी जटाओं में भर कर धरती पर निर्मल धारा के रूप में प्रवाहित करते हैं। कैलाश पर्वत के ऊपर स्वर्ग और नीचे मृत्युलोक हैं। कैलाश मानसरोवर का अस्तित्व भी हमारी सृष्टि के समय से ही माना जाता हैं।
यह रहस्यम पर्वत अपने साथ बहुत सी रोचक और रहस्य युक्त कहानियों का एक संग्रह हैं।जिसको आज के मानव जितना समझता हैं उतनी ही उसकी जिज्ञासा बढ़ती जाती हैं।हिंदू ग्रंथ शिवपुराण, स्कंद पुराण, मत्स्य पुराण में कैलाश खंड नाम से अलग ही अध्याय दिए गए हैं। कैलाश पर्वत को भगवान शिव और माता पार्वती अपने परिवार के साथ निवास करते थे।कहा जाता हैं की अच्छे कर्मों से मोक्ष की प्राप्ति के उपरांत ऐसी आत्माओं का वास कैलाश पर्वत पर ही माना जाता हैं।
इसलिए इस स्थान को अप्राकृतिक शक्तियों के केंद के रूप में भी देखा जाता हैं। रामायण में भी इस पर्वत के पिरामिडनुमा आकृति होने का वर्णन किया गया हैं। इसको धरती का केन्द्र बिंदु के रूप में जाना जाता हैं। इसे भौगोलिक और आकाशीय ध्रुव का केंद माना गया हैं जहां पर आकाश धरती से आकर मिलता हैं।
इस लिए अलौकिक शक्तियों का प्रवाह स्थल केंद्र को एक्सिस मुंडी कहा जाता हैं। यहां पर आकर आज भी लोग उन शक्तियों के संपर्क में आते हैं और महसूस करते हैं। और जब भी इंसान ने अपनी बुद्धि के बल इन्हे फतेह करने की कोशिश की केवल अफलताओ के साथ ही लौटना पड़ा हैं।धरती के उतरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव के मध्य एकदम समान दूरी पर विराजमान हैं कैलाश पर्वत यह अपने आप में आज भी रहस्य हैं। इसलिए इसे वैज्ञानिक भी धरती का केंद्र बिंदु स्वीकार करते हैं।
सर्वधर्म स्थल
कैलाश पर्वत दुनियां के 4 मुख्य धर्मों की आस्था का केंद्र भी माना जाता हैं। इसे हिन्दू,जैन, बौद्ध और सिख धर्म के अनुयायी अपना पवित्र तीर्थ के रूप में पूजते हैं।पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान ऋषभदेव ने यहां पर निर्वाण प्राप्त किया था। श्री भरतेश्वर स्वामी मंगलेश्वर श्री ऋषभदेव भगवान के पुत्र भरत ने दिग्विजय के समय इस पर्वत पर विजय प्राप्त की थी।
पांडवो के दिग्विजय प्रयाय के समय अर्जुन ने इस परदेश पर विजय प्राप्त की थी। इसके अलावा भी अनेक ऋषि मुनि के यहां पर निवास का उल्लेख प्रात होता हैं। जैन धर्म में श्री भरत स्वामी ने रत्नों के 72 जिनालय बनवाये थे इसलिये इस पर्वत का जैन धर्म में भी बहुत मान्यता हैं।
कैलाश की भौगोलिक संरचना में विज्ञान और रहस्य।
कैलाश पर्वत एक बहुत बड़ा पिरामिड हैं जो 100 पिरामिडो का केंद्र हैं। इसकी लंबाई भारत,तिब्बत और चीन में 600 किलोमीटर हैं। इसकी संरचना कम्पास के चार बिंदुओ के समान हैं।और जहां पर कोई बड़ा पर्वत नही हैं। यह दुनियां के उत्तर ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव के मध्य में स्थित हैं और इसी जगह पर आकाश का धरती का केंद्र बिंदु माना गया हैं।
यंहा पर दो सरोवर हैं पहला मानसरोवर जो पश्चिम में स्थित हैं जो दुनिया की सबसे उच्चतम झीलों में से एक हैं और इसका पानी शुद्धता के साथ मीठा पानी हैं। इसको स्वर्ग की झील भी कहा जाता हैं। इसका आकार सूर्य के समान हैं जो करीब 600 मीटर के क्षेत्र में हैं। और इसकी मान्यता हैं की भगवान शिव प्रात: काल में यहां पर स्नान करते हैं।इस झील का संबंध सकारात्मक ऊर्जा से भी माना जाता हैं।दूसरी झील हैं उसको राक्षक नामक झील के नाम से जाना जाता हैं। ये पर्वत के दक्षिणी छोर पर हैं ।इसका आकार चंद्र के समान हैं।और इसका जल खारा पानी लिए हुए हैं जो नकरतामक ऊर्जा के रूप में जानी जाती हैं। माना जाता हैं की लंकेश पति श्री रावण ने इसी झील के किनारे शिव की साधना करके सहक्तियो को प्राप्त की थी। और रावण ने शंकर भगवान से मिलने से पहले इसी झील में स्नान किया था जिससे उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी ।
ये झील प्राकृतिक तौर पे बनी हुई हैं या निर्मित हुई हैं यह आज भी रहस्य हैं। वैज्ञानिक के शोध के अनुसार इस झील में गैसों का मिश्रण हैं जो हमारे शरीर के लिए नुकसानदायक होता हैं। इसलिए इसमें स्नान करना मना हैं।कैलाश पर्वत से चारो दिशाओं में चार नदियों का उद्गम हुआ हैं। ब्रह्मपुत्र , सिंधु, सतलज और करनाली ।इन्ही नदियों से गंगा, सरस्वती सहित चीन और अन्य नदिया निकलती हैं।कैलाश पर्वत के चारो नदियों के उद्गम स्थल का मुख जानवरों के मुखों के समान हैं। पूर्व में अश्वमुख,पश्चिम में हाथी मुख,उतर में सिंह का मुख और दक्षिणी उद्गम स्थल का मुख मोर की भांति दिखता हैं।
शिव का रावण को वरदान।की कहानी
रावण अपने समय में पृथ्वीलोक पर सबसे बड़े पंडित और ज्ञानी लोगो में शुमार थे।इसलिए परमज्ञानी रावण को अपने सर्वशक्तिमान होने का अभिमान हो गया ।उसी शक्ति के आवेश में आके एकदीन रावण शिव जी के आसान यानी की कैलाश पर्वत को उठाने का प्रयास किया। जिससे सम्पूर्ण जगत भयभीत हो गया। अब जानते हैं उस प्रसंग को जिसमे रावण भोलेनाथ को प्रसन्न करके मनचाहा वरदान प्राप्त करते हैं।
एक बार रावण कैलाश पर्वत पर भोलेनाथ की तपस्या में लीन होगया और घोर तपस्या को।लेकिन शिव जी प्रसन्न नही हुऐ तब शंकर को प्रसन्न करने के लिए रावण ने अपने शीश काट काट कर शिव जी के चरणों में रखना शुरू कर दिया। इस प्रकार से रावण ने 9 शीश शिव जी के चरणों को समर्पित कर दिए जैसे ही 10 वा शीश काटने लगा शिव।जी प्रकट हुऐ और मन मुताबिक वरदान मांगने को कहा।रावण ने कहा की हे नाथ ऐसा बल दो जिसका जिसकी कोई तुलना न हो। और जीतने शीश।मैने आपके चरणों में अर्पित किए वो भी पहले की तरह हो जाए।भगवान शिव तथास्तु कह कर अंतर्ध्यान हो गए। रावण ने सोचा की अब आकाश पाताल और धरती उससे अधिक बलशाली कोई नहीं हैं।
इधर रावण को वरदान मिलने की सूचना जैसे ही देवी देवताओं और ऋषियों को मिली तो उनमें भय व्याप्त हो गए और वो चिंतित होकर देवऋषि नारद से समाधान पूछा।नारदजी ने उन्हें कहा की कार्य थोड़ा मुश्किल हैं लेकिन असंभव नही। नारद के उतर से देवता ऋषि संतुष्ट हो गए।
उधर रावण मदमस्थ होकर लंका की और प्रस्थान कर रहा था।नारद जी ने भी वही।मार्ग चुना और रावण के सामने आगया। और बोले हे लंकेश्वर आपकी खुशी बता रही हैं की निश्चित ही आपको कोई मनपसंद वर की प्राप्ति हुई हैं। रावण ने खुशी से बुलंद आवाज में कहा की सत्य हैं देवऋषी आज में बहुत प्रसन्न हू, क्योंकि भगवान शिव से मैने अतुल्य बल का वरदान प्राप्त किया हैं। नारदजी मुस्कराते हुऐ बोले हे राक्षस राज आप इतने बुद्धिमान होकर उस नशे में मस्त रहने वाले अघोरी की बातों में आगये। उन्होंने नशे में वर दे दिया होगा और आप उससे सच मान बैठे।
नारद के चक्रव्यू में तुरंत रावण की बुद्धि घूम गई और नारद के सुझाए अनुसार कैलाश पर्वत को उठाके देख ले ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए। नारद ने कहा तुरंत जाएं लंकेश अन्यथा देर हो जायेगी।
रावण ने तुरंत पहुंच कर कैलाश पर्वत को उठाने का प्रयास किया ,पर्वत को हिलता देख माता पार्वती सहित सभी लोग भयभीत होगए। शिव जी समझते तनिक भी देर नहीं लगी और शिव जी क्रोध में होके की इस घमंडी को अभी सबक सिखाता हु। कह कर अपने पैर के एक अंगूठे से पर्वत को थोड़ा नीचे दबा दिया। रावण उसके नीचे दब कर छटपटाने लगा।और शिव जी को शांत।करने की प्रार्थना करने लगा। जिसे भगवान शिव ने दयालुता दिखाते हुए स्वीकार किया और रावण को क्षमा किया।
कैलाश पर्वत पर क्यों नहीं चढ़ पाता इंसान
11 वीं शताब्दी में एक तिब्बती बौद्ध जिनका नाम था मिलारेपा था । वो कैलाश पर्वत पर चढ़े थे। लेकिन उन्होंने कभी भी इसके बारे में कुछ भी दुनिया को नही बताया। इसके बाद की तमाम कोशिशें असफल रही। इसके पीछे बहुत से तथ्य हैं। जैसे की जो भी पर्वतारोही ने कोशिश की उन्होंने पाया की उनके नाखून और बाल बहुत तेजी से बढ़ने लगते हैं।। सामान्य हमारे बाल और नाखून जितना एक महीने में बढ़ते हैं वो कैलाश पर्वत पर मात्र 8 दिन में ही बढ़ जाते हैं। चेहरे पर बुढ़ापा सा।महसूस होने लगता हैं मन परिवर्तित होने लगता हैं।
रूस के वैज्ञानिक दल ने पाया की जैसे जैसे वो आगे बढ़े मौसम में बहुत तेजी से परिवर्तन होने लगा । बर्फीली तूफान चलने लगा। उनको लगा की कोई शक्ति उन्हे चढ़ने से रोक रही हैं। और उनके शरीर की ऊर्जा भी कम होने लगी जिससे उनको लगा की ये अप्राकृतिक कार्य हैं। और उन्होंने बीच में ही यात्रा को समाप्त।कर लौटना पड़ा और वापस आतें ही उन्हें सामान्य महसूस हुआ। यह भी देखा गया की कैलाश पर्वत पर समय धरती के मुकाबले जल्दी गुजरता हैं। इसी के कारण लोगो को जल्दी बूढ़ा होने का आभास होता हैं और उनकी ऊर्जा में भी कमी होने लगती हैं।
6638 मीटर की चढ़ाई के उपरांत चुम्मकीय कम्पास भी अपनी दिशा बताने में धोका देने लगता हैं ।क्योंकि यह बहुत अधिक रेडियो एक्टिव हैं। जिससे दिशाभ्रम भी हो जाता हैं।बहुत से वैज्ञानिक ये मानते हैं की कैलाश पर्वत पर हिम मानव का निवास संभव हैं। जो लोगो को खा सकते हैं।
ॐ की ध्वनि का रहस्य
कैलाश पर्वत पूरा बर्फ की चादर में लिपटा हुआ हैं इस प्रदेश को मानखंड भी कहते हैं। इसकी चोटी की आकृति शिवलिंग की भांति दिखाई देती हैं।बहुत से यात्रियों ने बताया की को कैलाश पर्वत के क्षेत्र में जाने पर ॐ की ध्वनि सुनाई देना शुरू हो जाती हैं जिससे आराम से सुना जा सकता हैं।कैलाश पर्वत के मनारोवर झील के क्षेत्र में एयरोप्लेन की आवाज महसूस होती हैं लेकिन ध्यान से सुनने पर ये ॐ की धुन और डमरू की आवाज जैसी सुनाई पड़ती हैं।
वैज्ञानिक मानते हैं की यह आवाज बर्फ के पिघलने की हो सकती हैं।या हो सकता हैं की प्रकाश और ध्वनि का ऐसा मेल होता हो जिससे ॐ की ध्वनि सुनाई देती हो। लेकिन वास्तविक क्या हैं यह आज भी रहस्य ही हैं।
रंगबिरंगी रोशनी का रहस्य
कई बार देखा गया किन कैलाश पर्वत पर रंग बिरंगी रोशनी आकाश में चमकती दिखाई देती हैं। नासा के वैज्ञानिकों ने माना की ये अत्यधिक चुंबकीय बल आसमान से।मिलकर इस तरह के प्रकाश का निर्माण कर सकता है। कैलाश पर्वत को रजत गिरी भी कहा जाता हैं। इसका दक्षिणी भाग नीलम,पूर्व भाग क्रिस्टल,पश्चिमी भाग रूबी और उतरी भाग स्वर्ण रूप में माना जाता हैं।
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