बाज़ के स्वतंत्रता और संघर्ष की कहानी
बाज़,शाहिन या हॉक ये सभी उस जाबाज़ पक्षी के नाम हैं। जिसे दुनिया पक्षियों के राजा के नाम से जानती हैं। आसमान में 32o किलोमीटर की गति से दौड़ने वाले इस पक्षी ने अपने पंजों की मजबूत पकड़,सजगता के साथ आसमान में तेज गति से दौड़ने के लिए जाना जाता हैं। इस लेख में आज बाज़ के साहसिक जीवन की अनसुनी बातें जानेंगे ।
बाज़ की शारीरिक बनावट और जीवनचक्र
बाज़ एक शिकारी पक्षी होता हैं। आमतौर पर इसकी शारीरिक बनावट गरुड़ से छोटी होता है।इसके शरीर की लम्बाई 13-23 इंच तथा पंख की लम्बाई 29-47 इंच होती हैं। मादा बाज़ शारीरक आकार में नर से ज्यादा बड़ी होती है/ बाज़ के पंख पतले तथा मुड़े हुए होते हैं जो उसे तेज़ गति से उड़ने और उसी गति से अपनी दिशा बदलने में सहायक होते हैं। बाज़ की छाती की मजबूत मांसपेशियाँ ,लम्बे पतले पंख और सरल आकार के फाल्कन सही मायने में रफ्तार के लिए ही बने है | बाज़ की करीब 1500 से 2000 प्रजातियां पाई जाती हैं। मादा बाज़ एकबार में 3 से 5 अण्डे देती हैं और 35 दी तक शेती हैं। इस दौरान नर बाज़ भोजन की व अन्य व्यवस्ता करता हैं। इसके चूजे जीवन के शुरुवाती 6 सप्ताह में ही 3 से 4 किलोग्राम वजन हैं। इसकी गर्दन 270 डिग्री तक घूम सकती हैं। अलावा बाज़ एक साथ दो बिंदुओ पर देख सकता हैं।
बाज़ एक मांसहारी पक्षी होता हैं।
इसे घने जंगल,पहाड़ और वृहत रेगिस्थान पसंद नहीं होता हैं। बाज़ बड़े पेड़ो पर अपना घोंसला बना कर रहता हैं यह बार बार जगह नहीं बदलता हैं। घोंसले में ये चीजें जोड़ता रहता हैं इसलिए इसके घोंसले 4 से 6 फ़ीट तक बड़े और वजनदार हो जाते हैं। इसलिए ही बाज़ अपने जीवन काल में एक स्थान पर ही रहना पसंद करता हैं। जब तक भोजन जैसी समस्या नहीं होती यह अपना निवास स्थान नहीं बदलता हैं। बाज़ अपने भोजन के लिए खरगोश,चूहे,गिलहरी,मछली,और काम गति से उड़ने वाले पक्षियों का शिकार करता हैं। यह लोमड़ी और हिरन जैसे जानवरो को अपने पंचो में जकड कर शिकार कर लेता हैं। यह अपने वजन से अधिक वजन के पशु पक्षियों का शिकार करने में सक्षम होता हैं। बाज़ को पानी में भी तैरना भी आता हैं। परंतु ये पानी से सीधे हवा में वापस नहीं उड़ सकता इसके लिए इसे पानी से धरातल पर आना पड़ता हैं। इसकी आंखे बहुत तेज होती हैं यह पांच किलोमीटर से अपने शिकार को देख सकती हैं।बाज़ की आंखों का वजन उसके दिमाक से भी भारी होता हैं।और तो और ये अल्ट्रा वायलेट लाइट को भी देखने की क्षमता रखता हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार बाज को भगवान विष्णु का वाहन माना गया हैं। वर्तमान में बाज़ संयुक्त अरब अमीरात का राष्टीय पक्षी हैं और UAE में लोग घरों में पालते हैं। बाज़ कुछ मिनिट्स में आसमान में 10 किलोमीटर की ऊंचाई पर पहुंच जाता हैं और कई घंटो तक बिना पंख हिलाए उड़ सकता हैं।एक बार में बाज़ 7 से 8 घंटे लगातार उड़ान पर रह सकता हैं।जंगल में बाज़ का जीवन 23 से 30 वर्ष तक होता हैं।जबकि पालतू बाज़ 50 वर्ष तक जीवनकाल पूरा करते हैं।
बाज़ अपने बच्चो को जो उड़ने की ट्रेनिंग देता हैं वो दुनिया में कमांडो ट्रेनिंग की भांति सबसे कठिन और रिस्क वालीं ट्रेनिंग होती हैं।
"बाज़ के बच्चे मुंडेर पर नहीं उड़ते "
(कहानी )
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यह कहावत ही बाज़ की अपने बच्चो की ट्रेनिंग की कहानी को बयान करती हैं। माना जाता हैं जब बाकी पक्षियों के बच्चे बचपन में चहकते रहते हैं तब तक बाज़ के बच्चे ऐसे शिकारी बनते हैं जो अपने वजन से दस गुणा प्राणियों का शिकार करते हैं।मादा बाज पक्षी अपने चूजे को पंजे मे दबोचकर 10 से 12 किलोमीटर तक ऊंची उड़ जाती है । इतनी ऊंचाई पर जहाज उड़ा करते हैं और वह दूरी तय करने में मादा बाज 7 से 9 मिनट का समय लेती है।
अब वह जमीन के बिल्कुल करीब आ जाता है ।धरती के जहां से वह देख सकता है उसके स्वामित्व को अब उसकी दूरी धरती से बचती है महज 7 से 800 मीटर लेकिन उसका पंख अभी इतना मजबूत नहीं हुआ है की वो उड़ सके।उस मुकाम पर पहुंचकर वह एक परिस्थिति में स्थिर हो जाती है! और फिर यहां से
शुरू होती है उस नन्हें चूजे की “कठिन परीक्षा” उसे अब यहां बताया जाएगा
कि तू किस लिए पैदा हुआ है.तेरी दुनिया क्या है तेरी ऊंचाई क्या है तेरा
मुकाम बहुत ऊंचा है और फिर मादा बाज उसे अपने पंजों से छोड़ देती है।धरती
की ओर ऊपर से नीचे आते वक्त लगभग 2 किलोमीटर उस चूजे को पता भी नहीं होती
कि उसके साथ क्या हो रहा है 7 किलोमीटर के अंतराल के आने के बाद उस चूजे के
पंख जो कंजाइन से जकड़े होते हैं वह खुलने लगते हैं।लगभग 9 किलोमीटर आने
के बाद उनके पंख पूरे खुल जाते हैं ।यह जीवन का प्रथम समय होता है जब बाज
का बच्चा पंख फड़फड़ाता हैं।अब धरती से वह लगभग 3000 मीटर दूर होता हैं लेकिन अभी वह उड़ना नहीं सीख पाया है धरती से लगभग 4 से 500 मीटर दूरी पर बच्चे को महसूस होता है कि उसके जीवन का शायद यह अंतिम समय है फिर अचानक से एक पंजा उसे आकर अपनी गिरफ्त मे लेता है और अपने पंखों के दरमियान समा लेता है।
यह पंजा उसकी मां का था जो ठीक उसके उपर चिपक कर उड़ रही होती हैं।और यह बाज के चूजे की पहली ट्रेनिंग थी और ये निरंतर चलती रहती है जब तक कि उसका बच्चा उड़ना नहीं सीख जाता।ये ट्रेनिंग बिल्कुल एक कमांडो की तरह होती है High pressure and maximum risk… तब जाकर दुनिया को एक शाहीन/बाज़ मिलता है जो वायु की दुनिया का अघोषित बादशाह कहा जाता है ।
हिंदी की यह कहावत हैं की
“बाज़ के बच्चे मुँडेर पर नही उड़ते”
मादा
बाज शुरू से ही अपने बच्चों को संघर्ष करना सिखाती है। हम इंसानों की तरह
वो उन्हें सुख सुविधाओं के साथ नहीं पालती। इसलिए बाज के बच्चे हमेशा
बहादुर और संघर्षशील होते हैं।
आज के माता पिता को निश्चित अपने बच्चों के पीछे मादा बाज़ की भांति चिपक के रहना चाहिए जब तक वह इस दुनियां की मुश्किलों से रूबरू नही हो जाता उन्हे लड़ना सिखाइए बिना आवश्यकता के संघर्ष करना सिखाएं ताकि मजबूत पंखों के बलबूते वो इस दुनिया में ऊंचाई पर उड़ान भर सके।
बहुत ही शानदार जानकारी है||
जवाब देंहटाएंexcellent information
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