शुक्रवार, 17 मार्च 2023

बस की पहली यात्रा -मुन्नी का सपना

 मुन्नी की पहली बस यात्रा की  कहानी।

पहली बस यात्रा


  मुन्नी एक 5 वर्ष की लड़की थी। जो अब घर के बगल में सरकारी स्कूल में जाने लग गई थी।मुन्नी के घर के पास ही बस स्टैंड था।जिससे शहर से बसे आती और जाती थी। मुन्नी हमेशा स्कूल से आने के बाद घर की खिड़की पर बैठ जाती थी । और बस स्टैंड का नजारा देखती रहती थी। बसों और यात्रियों के साथ मूंगफली चाय पानी बेचने वालो को आवास हर वक्त मुन्नी के कानो में सुनाई पड़ती थी। 

     मुन्नी के पापा भी साइकिल मरमत का काम करते थे। घर में भोजन,कपड़ा और हारी बीमारी के खर्चे के बाद कुछ नही बचता था। मुन्नी छोटी सी उम्र में घर की आर्थिक स्थिति से अच्छे से अवगत थी। इसलिए वो कभी भी खिलौनों और मिठाइयों की कोई जिद्द नहीं करती थी। पर मुन्नी के मन में बस की यात्रा करने का सपना जरूर घर करने लग गया था । की वो भी एक दिन बस में सफर करेगी और सफर का आनंद लेगी। लेकिन मुन्नी को पता था की ये काम उसके लिए आसान नहीं हैं। क्योंकि मुन्नी का स्कूल भी घर के पास में था। मुन्नी का जीवन स्कूल और घर के अलावा केवल कुछ देर के लिए सांय काल सहेलियों के साथ खेलने में ही गुजरता था। लेकिन मुन्नी और बच्चो की तरह सपने संजोने शुरू कर दिए थे पर साथ में घर की माली हालत भी तो उससे छुपी हुई नही थी।। मुन्नी ये सब सोचते हुए बसों को देख रही थी। तभी उसके पापा की आवाज आई वो उठ कर पापा के पास जाती उसके पापा उसके पास आ चुके थे। 

       उस दिन पापा का काम अच्छा हुआ था इसलिए उन्होंने मुन्नी को 1 रुपया दिया। और।कहा की ये रुपया आपका हुआ। मुन्नी बहुत खुश हुई तभी उसके दिमाक में एक विचार ने जन्म लिया की अब से वो अपनी गिफ्ट स्वरूप या इनाम में मिले रुपया को अपने पास पिग्गी बैंक में इकठ्ठा करेगी और बस में यात्रा करेगी।  अब मुन्नी हर दिन खिड़की में बैठती और बस स्टैंड पे लोगो के नजारे देखती और रोमांचित होती । जब भी घर पर कोई मेहमान या मामा नाना आते तो मुन्नी को उपहार स्वरूप 1-2 रुपया देते और मुन्नी बहुत खुश होती और अपने पिग्गी बैंक में बचत करने लगी। मुन्नी खिड़की में बैठ कर सोचती की  टिकट के आने जाने पैसे होने पर वो बस में खिड़की पर ही बैठेगी और बाहर की ठंडी हवा के साथ नजारो का मजा लेगी। और हर दिन अपनी बचत को गिनती। ऐसे करते हुए उसे 2 साल का समय हो चुका था और मुन्नी अब 7 वर्ष की हो चुकी थी। साथ में बातूनी इतनी की बड़ो के कानो के कीड़े झड़ जाएं।

अब मुनि कक्षा 3 में प्रवेश कर चुकी थी। अब मुन्नी के पास  70 रूपये हो चुके थे। और शहर तक जाने के लिए बस का किराया 30 रुपया था। पर अब मुन्नी घर से शहर कैसे जाए। क्योंकि इतनी कम उम्र में उसको माता पिता से अनुमति मिलने की संभावना नगण्य थी। और वो हिम्मत भी नही जुटा पा रही थी। उसमें हिम्मत करके मौके की तलाश करने लगी। और एक दिन ऐसा आया की उनकी स्कूल की छुट्टी आधे समय पर ही हो गई। मुन्नी सीधे बस स्टैंड गई और बस का इंतजार करने लगी। जैसे ही बस पहुंची उसने कंडक्टर से बड़े ही आत्मविश्वास से पूछा की बस क्या शहर को जा रही हैं। उसकी आवाज की खनक सुनके कंडक्टर ने कहा की मैम बस शहर को ही जा रही हैं और वो मुन्नी को ऊपर चढ़ने में सहायता करने के लिए बढ़ा लेकिन आज मुन्नी के तेवर कुछ अलग ही थे।उसने कहा की में खुद चढ़ सकती हु। कंडक्टर भी हतप्रस्थ रह गया। कंडक्टर ने कहा जैसी आपकी मर्जी मैम। कंडक्टर -क्या आप अकेले ही यात्रा करोगी?

मुन्नी  -हां क्यों अकेले यात्रा करने पर मनाही हैं?

कंडक्टर -अरे नही मैम आपको बच्चा समझ के लिए पूछ लिया।

मुन्नी - में 7 साल की हो चुकी हु। क्या आपको में बच्ची नजर आती हुं?आप मुझे बातो में मत उलझाइए और टिकट दीजिए। मुन्नी ने कंडक्टर को 30 रुपए दिए और टिकट लिया।

    इतने समय में आगे का बस स्टॉप आ गया और कंडक्टर थोड़ी देर के लिए व्यस्थ हो गया। जब तक मुन्नी खिड़की की सीट पर बैठ चुकी थी। और रास्ते में आते हुए घास के मैदान,कभी नहर कल कल करते हुए बहता हुआ पानी और पशु पक्षियों की चहल पहल देखते हुए बस में आंनद की अनुभूति कर रही थी। पर उसकी शारीरिक ऊंचाई कम होने के कारण उसको बार बार ऊपर होकर देखना पड़ रहा था। सामने से आने वाली कार,बस ट्रक, टेम्पु ऐसे लग रहे थे जैसे सीधे बस से आकर टकरा जायेंगे। लेकिन इतनी सुरक्षा से बस आगे बढ़ते हुए मुन्नी के मन में बहुत से सवाल बड़ रहे थे। और वो बाहर की  गतिविधियां देख कर खूब हंस रही थी। बस में लोग बहुत कम थे लेकिन मुन्नी को इस तरह से खिलखिलाते देख सभी साथ में हंस रहे थे। उस दौरान एक बुजुर्ग व्यक्ति उसके बगल में आके बैठ चुका था। उसने कहा की बेटा आप अकेले किधर को जा रहे हो। मुन्नी ने कहा की वो बस में बैठ के शहर जा रही हैं और उसके पास पूरे 30 रूपये की टिकट भी ली हैं। बुजुर्ग ने कहा की क्या आपका कोई रिश्तेदार शहर में रहता हैं। तो मुन्नी ने कहा की नही तो फिर आप शहर को कैसे देखोगी उधर बहुत बड़ी बड़ी सड़के ,छोटी गालियां, ऊंची ऊंची बिल्डिंग होती हैं आप अकेले को डर नही लगता। 

   मुन्नी ने फिर आत्मविश्वास दिखाया और कहा इनसे डरने की कोनसी बात हैं। और फिर खिड़की के बाहर प्रकृति को निहारने लगी। बस अब 2 घंटे के बाद बस शहर पहुंच चुकी थी। सभी सवारियां बस से उतर चुकी थी लेकिन मुन्नी अपनी सीट पर ही बैठी रही। तो कंडक्टर ने भावपूर्ण का मैम यन्हि से रिटर्न होगी। लेकिन मुन्नी ने पैसे देते हुए कहा की मुझे वापस जाने का टिकट दे दीजिए।तब कंडक्टर को समझ आया की वो शहर में केवल बस की यात्रा करनें आई हैं। कंडक्टर ने उसे कहा की वो थोड़ा पानी नाश्ता कर ले बस थोड़ी देर रुकने के बाद चलेगी। लेकिन मुन्नी के मन में तो डर था इसलिए उसने मना कर दिया। लेकिन कंडक्टर नेकदिल इंसान था इसलिए उसने मुन्नी को पानी पिलाया और एक आइसक्रीम खाने को दिया। थोड़ी देर के विश्राम के बाद बस वापस चली। और मुन्नी अपने जीवन की पहली बस यात्रा करके वापस अपने घर पहुंची।

शिक्षा - सपनो को पुरा करने के लिए बचत के साथ थोड़ी हिम्मत दिखानी पड़ती हैं।

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