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गुरुवार, 8 जून 2023

गरीब लाछा गुर्जरी की कथा /जाट गुर्जर के रिश्तो की मिशाल

      एक गांव में एक गरीब लाछा गुर्जरी रहती थी। उसका परिवार गांव के ऊंट चराने में लगा हुआ था। लाछा गुर्जरी को अपने ऊंटों से बहुत प्यार था और वह उनके लिए हर रोज़ दिनभर मेहनत करती थी। लेकिन धनी और अमीर लोग उसे हमेशा ग़रीब समझते थे और उसके साथ अनदेखी करते थे।

      एक दिन, गांव में एक महापंडित बुलाया गया और उन्होंने घोषणा की कि वह गांव के सभी लोगों के पास एक परीक्षा लेंगे और जीतने वाले को बड़ा इनाम देंगे। इससे सभी लोगों में एक उत्साह और उत्साह उभरा।

      लाछा गुर्जरी ने भी अपने ऊंटों के साथ इस परीक्षा में हिस्सा लेने का निर्णय किया। उसने अपने ऊंटों को तैयार किया और उन्हें अच्छी तरह से संभाला।

       परीक्षा दिन आया और सभी लोग अपने-अपने योग्यता के साथ पहुंचे। महापंडित ने एक ऊंट को आगे बढ़ाने का आदेश दिया और कहा, "जो ऊंट अपनी बुद्धिमानी और चालाकी से मेरे पास पहले पहुंचेगा, उसे विजयी घोषित किया जाएगा।"

      जब यह सुनकर लोग उन्हीं ऊंटों को देखने लगे, तो सभी बड़ी उम्मीद से ऊंट की ओर देख रहे थे। लेकिन धीरे-धीरे एक गरीबी से भरी लाछा गुर्जरी के ऊंट आगे बढ़ने लगे। सभी लोग चकित हो गए और लाछा गुर्जरी के ऊंट की जीत की ओर देखने लगे।

       लाछा गुर्जरी के ऊंट ने महापंडित के पास पहुंचते ही वहां विजयी घोषित किया गया। सभी लोग चौंक गए और आश्चर्यचकित हो गए। यह देखकर महापंडित ने पूछा, "यह गरीबी से भरे हुए ऊंट ने मेरी परीक्षा में कैसे जीत हासिल की?"

       लाछा गुर्जरी ने गर्व से उठते हुए ताना दिया, "महापंडित जी, जाट गुर्जर के ऊंट की बुद्धि, चालाकी और संघर्ष से भरी होती है। यह मेरे ऊंटों के लिए बस एक परीक्षा थी, लेकिन हमारे जाट गुर्जर के रिश्तों की मिशाल थी। हम ग़रीब हों, लेकिन हमारी बुद्धि, संघर्ष और समर्पण हमेशा हमारे साथ होता है।"

          इस कथा से हमें यह सिखाया जाता है कि सम्पत्ति या सामरिक स्थिति से बढ़कर, एक व्यक्ति अपनी बुद्धि, सामर्थ्य और संघर्ष के माध्यम से महत्वपूर्ण कार्यों को प्राप्त कर सकता है। जाट गुर्जर के रिश्ते यह बताते हैं कि ग़रीबी और संघर्ष के बावजूद, हम अपनी मेहनत, बुद्धि और समर्पण से सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

लाछा गुर्जरी के मालपुआ (Sweet) की कहानी

लाछा गुर्जरी के मालपुआ की कहानी

 
लाछा गुर्जरी के मालपुआ

     बहुत समय पहले की बात है, एक सुंदर और प्यारी लड़की लाछा गुर्जरी नामक थी। वह एक छोटे से गांव में रहती थी और उसका परिवार गांव के आदिवासी समुदाय से संबंधित था। लाछा गुर्जरी को खाने की खुशबू और मिठाई बनाने की ज़िद हमेशा से थी।

      एक दिन गांव में एक बड़ा मेला आयोजित हुआ, और उसमें अनेक प्रकार की खाने की दुकानें लगीं। लाछा गुर्जरी भी उस मेले में गई और अपनी मिठाई बेचने का सोचा। वह बहुत मेहनत से दिग्गी मालपुआ बनाती और अपनी दुकान पर रखती थी।

      मेले में राजा और उसके दरबार के सदस्य भी मौजूद थे। राजा ने सुना कि लाछा गुर्जरी की मालपुआ बहुत मशहूर हैं, और उन्होंने इसका स्वाद चखने का निर्णय किया। राजा ने अपने दरबारियों को भेजकर दिग्गी मालपुआ खाने को कहा और अपनी खुशबू भरी गद्दी पर बैठ गए।

     जब दरबारी लोग लाछा गुर्जरी की मालपुआ खाने पहुंचे, तो वे उसकी मिठास से हैरान रह गए। उन्होंने कहा, "यह मालपुआ अद्वितीय है, इसमें कुछ खास है।" एक दरबारी ने कहा, "इसमें इतनी मीठास कहाँ से आती है?" और दूसरा दरबारी ने कहा, "शायद इसमें प्यार की कोई मायरा छिपा होती है।"

       इस बात को सुनकर लाछा गुर्जरी को बहुत खुशी हुई। वह राजा के पास गई और कहा, "महाराज, इस मालपुआ में कोई विशेष चीज़ नहीं है, बस मेरे हाथों का प्यार और समर्पण है। आपका आदर्शवाद और सम्मान इसे इतनी मीठास देते हैं।"

      राजा ने लाछा गुर्जरी की मज़ाकिया बातों को समझ लिया और खुश होकर उसे बधाई दी। वह उसे राजमहल में बुलाया और उसे अपनी राजमहल की रानी बना दिया। लाछा गुर्जरी और राजा के बीच प्यार और सम्मान की कहानी बड़े सुंदर ढंग से चली।

शिक्षा 

     इस कहानी से हमें यह सिखाया जाता है कि सच्चा प्यार और समर्पण किसी भी खाने को अद्वितीय और स्वादिष्ट बना सकता है। जब हम अपने काम को दिल से करते हैं।

शुक्रवार, 26 मई 2023

A Divorce story of Hindu Pair/प्रेम कहानी

Divorce story in Hindu Pair/प्रेम कहानी

Divorce story 
यह कहानी हैं जयपुर में रहने वाली एक दंपति की। दोनो का प्रेम विवाह था लेकिन बहुत कोशिशों के बाद घर वाले राजी हुए थे और खुशी खुशी शादी की सभी रिति रिवाज से विवाह संपन हुआ  था।

रश्मि मेरे ऑफिस में ही काम करती थी।और उसके पति रमेश किसी अन्य कम्पनी में वित्तीय विभाग में मैनेजर की पोस्ट पर काम करते थे। बहुत से मौको  पर आपसी मुलाकातों से रमेश से भी अच्छी दोस्ती हो गई थी। 

     विवाह उपरांत कुछ वर्षो के बाद दोनो के जीवन में तलाक लेने की जंग शुरू हो गई। जैसे ही मुझे भनक पड़ी तो मुझे एक पंडित जी की कही बाते ताजा हो गई की जीवन साथी को छोड़ने के लिए 2 शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
एक डायवोर्स (Divorce) जो अंग्रेज़ लोग लेते हैं और दूसरा तलाक़ जो मुस्लिम लोग लेते हैं। हमारे हिंदुओ में ऐसा कोई शब्द निर्माण नही किया गया क्योंकि इसकी कोई आवश्यकता नहीं होती थी। क्योंकि हिंदुओ में तो जन्म जन्म के रिश्ते बनते हैं। जिनका निर्धारण भगवान के यँहा  होता हैं और एक बार रिश्ते की डोर में बंध जाने के बाद यह अटूट रिश्तों की श्रेणी में आ जाता हैं। में तुरंत रश्मि के पास गया और उससे बात की और अगले ही दिन  
मैं शाम को... उसके घर पहुंचा...। उसने चाय बनाई... और मुझसे बात करने लगी...। पहले तो इधर-उधर की बातें हुईं..., फिर उसने कहना शुरू कर दिया कि... रमेश से उसकी नहीं बन रही और उसने उसे तलाक देने का फैसला कर लिया है...।

मैंने पूछा कि... "रमेश कहां है...?" तो उसने कहा कि... "अभी कहीं गए हैं..., बता कर नहीं गए...।" उसने कहा कि... "बात-बात पर झगड़ा होता है... और अब ये झगड़ा बहुत बढ़ गया है..., ऐसे में अब एक ही रास्ता बचा है कि... अलग हो जाएं..., तलाक ले लें...!"
रश्मि जब काफी देर बोल चुकी... तो मैंने उससे कहा कि... "तुम रमेश को फोन करो... और घर बुलाओ..., कहो कि आनंद आए हैं...!"

रश्मि ने कहा कि... उनकी तो बातचीत नहीं होती..., फिर वो फोन कैसे करे...?!!!
खैर..., रश्मि ने फोन नहीं किया...। मैंने ही फोन किया... और पूछा कि... "तुम कहां हो...  मैं तुम्हारे घर पर हूँ..., आ जाओ...। रमेश पहले तो आनाकानी करता रहा..., पर वो जल्दी ही मान गया और घर चला आया...।

अब दोनों के चेहरों पर... तनातनी साफ नज़र आ रही थी...। ऐसा लग रहा था कि... कभी दो जिस्म-एक जान कहे जाने वाले ये पति-पत्नी... आंखों ही आंखों में एक दूसरे की जान ले लेंगे...! दोनों के बीच... कई दिनों से बातचीत नहीं हुई थी...!!

रमेश मेरे सामने बैठा था...। मैंने उससे कहा कि... "सुना है कि... तुम रश्मि  से... तलाक लेना चाहते हो...?!!!

उसने कहा, “हाँ..., बिल्कुल सही सुना है...। अब हम साथ... नहीं रह सकते...।"

अज़ीब सँकट था...! रश्मि को मैं... बहुत पहले से जानता हूं...। मैं जानता हूं कि... रमेश से शादी करने के लिए... उसने घर में कितना संघर्ष किया था...! बहुत मुश्किल से... दोनों के घर वाले राज़ी हुए थे..., फिर धूमधाम से शादी हुई थी...। ढ़ेर सारी रस्म पूरी की गईं थीं... ऐसा लगता था कि... ये जोड़ी ऊपर से बन कर आई है...! पर शादी के कुछ ही साल बाद... दोनों के बीच झगड़े होने लगे... दोनों एक-दूसरे को खरी-खोटी सुनाने लगे... और आज उसी का नतीज़ा था कि... आनंद... रश्मि और रमेश  के सामने बैठे थे..., उनके बीच के टूटते रिश्तों को... बचाने के लिए...!

आनंद ने कहा की “पति की... 'बीवी' नहीं होती?” यह सुनकर वो दोनों चौंक गए।

" “बीवी" तो... 'शौहर' की होती है..., 'मियाँ' की होती है..., पति की तो... 'पत्नी' होती है...! "

भाषा के मामले में... मेरे  सामने उनका  टिकना मुमकिन नहीं था..., हालांकि रमेश  ने कहा  कि... "भाव तो साफ है न ?" बीवी कहें... या पत्नी... या फिर वाइफ..., सब एक ही तो हैं..., लेकिन मेरे कहने से पहले ही... उन्होंने मुझसे कहा कि... "भाव अपनी जगह है..., शब्द अपनी जगह...! कुछ शब्द... कुछ जगहों के लिए... बने ही नहीं होते...! ऐसे में शब्दों का घालमेल गड़बड़ी पैदा करता है...।"

खैर..., आज मैं भाषा की कक्षा लगाने नहीं आया..., आज मैं रिश्तों के एक अलग अध्याय को जीने के लिए आपके पास आया हूं...। लेकिन इसके लिए... आपको मेरा  साथ देना होगा।
दोनों ने हांमी भरते हुए अपना सिर हिलाया।
 

मैंने कहा कि... "तुम चाहो तो... अलग रह सकते हो..., पर तलाक नहीं ले सकते...!"

रमेश ने कहा “क्यों...???

आनंद : “क्योंकि तुमने निकाह तो किया ही नहीं है...!”

"अरे यार..., हमने शादी तो... की है...!"

“हाँ..., 'शादी' की है...! 'शादी' में... पति-पत्नी के बीच... इस तरह अलग होने का... कोई प्रावधान नहीं है...! अगर तुमने 'मैरिज़' की होती तो... तुम "डाइवोर्स" ले सकते थे...! अगर तुमने 'निकाह' किया होता तो... तुम "तलाक" ले सकते थे...! लेकिन क्योंकि... तुमने 'शादी' की है..., इसका मतलब ये हुआ कि... "हिंदू धर्म" और "हिंदी" में... कहीं भी पति-पत्नी के एक हो जाने के बाद... अलग होने का कोई प्रावधान है ही नहीं....!!!"

मैंने इतनी-सी बात... पूरी गँभीरता से कही थी..., पर दोनों हँस पड़े थे...! दोनों को... साथ-साथ हँसते देख कर... मुझे बहुत खुशी हुई थी...। मैंने समझ लिया था कि... रिश्तों पर पड़ी बर्फ... अब पिघलने लगी है...! वो हँसे..., लेकिन मैं गँभीर बना रहा...

मैंने फिर रश्मि  से पूछा कि... "ये तुम्हारे कौन हैं...?!!!"

रश्मि ने नज़रे झुका कर कहा कि... "पति हैं...! मैंने यही सवाल रमेश  से किया कि... "ये तुम्हारी कौन हैं...?!!! उसने भी नज़रें इधर-उधर घुमाते हुए कहा कि..."बीवी हैं...!"

मैंने तुरंत फिर टोका... "ये... तुम्हारी बीवी नहीं हैं...! ये... तुम्हारी बीवी इसलिए नहीं हैं.... क्योंकि... तुम इनके 'शौहर' नहीं...! तुम इनके 'शौहर' नहीं..., क्योंकि तुमने इनसे साथ "निकाह" नहीं किया... तुमने "शादी" की है...! 'शादी' के बाद... ये तुम्हारी 'पत्नी' हुईं..., हमारे यहाँ जोड़ी ऊपर से... बन कर आती है...! तुम भले सोचो कि... शादी तुमने की है..., पर ये सत्य नहीं है...! तुम शादी का एलबम निकाल कर लाओ..., मैं सबकुछ... अभी इसी वक्त साबित कर दूंगा...!"

बात अलग दिशा में चल पड़ी थी...। मेरे एक-दो बार कहने के बाद... रश्मि शादी का एलबम निकाल लाई..., अब तक माहौल थोड़ा ठँडा हो चुका था..., एलबम लाते हुए... उसने कहा कि... कॉफी बना कर लाती हूं...।"

मैंने कहा कि..., "अभी बैठो..., इन तस्वीरों को देखो...।" कई तस्वीरों को देखते हुए... मेरी निगाह एक तस्वीर पर गई..., जहाँ रश्मि और रमेश  शादी के जोड़े में बैठे थे...। और पाँव~पूजन की रस्म चल रही थी...। मैंने वो तस्वीर एलबम से निकाली... और उनसे कहा कि... "इस तस्वीर को गौर से देखो...!"

उन्होंने तस्वीर देखी... और साथ-साथ पूछ बैठे कि... "इसमें खास क्या है...?!!!"

मैंने कहा कि... "ये पैर पूजन की  रस्म है..., तुम दोनों... इन सभी लोगों से छोटे हो..., जो तुम्हारे पांव छू रहे हैं...।"

“हां तो....?!!!"रश्मि ने कहा।

“ये एक रस्म है... ऐसी रस्म सँसार के... किसी धर्म में नहीं होती... जहाँ छोटों के पांव... बड़े छूते हों...! लेकिन हमारे यहाँ शादी को... ईश्वरीय विधान माना गया है..., इसलिए ऐसा माना जाता है कि... शादी के दिन पति-पत्नी दोनों... 'विष्णु और लक्ष्मी' के रूप होते हैं..., दोनों के भीतर... ईश्वर का निवास हो जाता है...! अब तुम दोनों खुद सोचो कि... क्या हज़ारों-लाखों साल से... विष्णु और लक्ष्मी कभी अलग हुए हैं...?!!! दोनों के बीच... कभी झिकझिक हुई भी हो तो... क्या कभी तुम सोच सकते हो कि... दोनों अलग हो जाएंगे...?!!! नहीं होंगे..., हमारे यहां... इस रिश्ते में... ये प्रावधान है ही नहीं...! "तलाक" शब्द... हमारा नहीं है..., "डाइवोर्स" शब्द भी हमारा नहीं है...!"

यहीं दोनों से मैंने ये भी पूछा कि... "बताओ कि... हिंदी में... "तलाक" को... क्या कहते हैं...???"

दोनों मेरी ओर देखने लगे उनके पास कोई जवाब था ही नहीं फिर मैंने ही कहा कि... "दरअसल हिंदी में... 'तलाक' का कोई विकल्प ही नहीं है...! हमारे यहां तो... ऐसा माना जाता है कि... एक बार एक हो गए तो... कई जन्मों के लिए... एक हो गए तो... प्लीज़ जो हो ही नहीं सकता..., उसे करने की कोशिश भी मत करो...! या फिर... पहले एक दूसरे से 'निकाह' कर लो..., फिर "तलाक" ले लेना...!!"

अब तक रिश्तों पर जमी बर्फ... काफी पिघल चुकी थी...!

रश्मि चुपचाप मेरी बातें सुन रही थी...। फिर उसने कहा कि... "भैया, मैं कॉफी लेकर आती हूं...।"

वो कॉफी लाने गई..., मैंने रमेश  से बातें शुरू कर दीं...। बहुत जल्दी पता चल गया कि... बहुत ही छोटी-छोटी बातें हैं..., बहुत ही छोटी-छोटी इच्छाएं हैं..., जिनकी वज़ह से झगड़े हो रहे हैं...।

खैर..., कॉफी आई मैंने एक चम्मच चीनी अपने कप में डाली...। रमेश  के कप में चीनी डाल ही रहा था कि... रश्मि ने रोक लिया..., “भैया..., इन्हें शुगर है... चीनी नहीं लेंगे...।"

लो जी..., घंटा भर पहले ये... इनसे अलग होने की सोच रही थीं...। और अब... इनके स्वास्थ्य की सोच रही हैं...!

मैं हंस पड़ा मुझे हंसते देख रश्मि थोड़ा झेंपी कॉफी पी कर मैंने कहा कि... "अब तुम लोग... अगले हफ़्ते निकाह कर लो..., फिर तलाक में मैं... तुम दोनों की मदद करूंगा...!"

शायद अब दोनों समझ चुके थे.....

हिन्दी एक भाषा ही नहीं - संस्कृति है...!

इसी तरह हिन्दू भी धर्म नही - सभ्यता है...!!

और विवाह एक मात्र बंधन नहीं जीवन जीने और निभाने का निर्णय हैं।  जिसमे प्रेम पनपता हैं

FAऔर खुशियों के साथ जीवन के कठिन पलों के लिए संघर्ष करना सिखाता हैं।

सोमवार, 27 मार्च 2023

दो सुंदर बहनों की कहानी

दो बहनों की दुःख भरी प्रेम कहानी  

दो बहनों की दुःख भरी प्रेम कहानी


         यह कहानी हैं दो सुंदर लड़कियों की जिसमे एक का नाम था रूपेरी और दूसरी का नाम था सुनेरी । दोनो के बाल्यकाल में ही उनकी माता का देहांत हो गया था । क्योंकि दोनो बहिन अभी बहुत छोटी थी। इसलिए उनके पिता ने एक दूसरा विवाह किया । और अब घर में रूपेरी और सुनेरी की सौतेली मां भी रहने लगी लेकिन सौतेली मां का व्यवहार उनके प्रति अच्छा नही था । उनकी पिता के पास एक छोटा सा खेत था। जिसमें उनके पिता हल जोतकर अपने परिवार का पालन पोषण करते थे इसी दौरान उनकी सौतेली मां की एक बेटी पैदा हुई और वह अपनी बेटी की बहुत अच्छी परवरिश करने लगी ।और रुपेरी और सुनेरी को खेत की जुताई के लिए बैलो की जगह दोनों बहनों से खेतो को जुताना शुरू कर दिया । अब खेत में उसकी बेटी भोजन  लेकर जाती और वह औरत  भोजन में  अपने पति के लिए रोटी भेजती और उन दोनों लड़कियों के लिए पशुओ का चारा भेजती। इस प्रकार के व्यवहार के कारण उनके  पिता को बड़ा दुख होता था ।

आधी रोटी अपनी दोनों बेटियों में बांट देते थे।

        पिता अपने हिस्से की आधी रोटी अपनी दोनों बेटियों में बांट देते थे। और यह सब उसकी बेटी देखती थी ।और घर जाकर अपनी मां को बताती थी कि मां बाबूजी अपने हिस्से का भोजन उन दोनों बहनों को दे देते हैं। तो धीरे-धीरे उसकी सौतेली मां ने भोजन की मात्रा को कम कर दिया । तो जितना वह भोजन भेजती थी उसमें से आधा कर दिया लेकिन पिता उसमे भी  उन दोनों बेटियों को आधा  दे देता था। तथा आधा खुद खाता था। एक  दिन ऐसा हुआ कि सौतेली मां ने खाना भेजना ही बंद कर दिया। इससे दुखी होकर रूपेली तथा सुनेरी के पिता ने उनसे कहा कि बेटी अब तुम जाओ ।अब तुम्हारे भाग्य में जो है वह तुम्हें प्राप्त होगा। ऐसा कह के पिता उन दोनों को भेज देता है। दोनों बहने घूमते घूमते एक जंगल में पहुंच जाती है। और वहां एक छोटी सी झोपड़ी बनाकर रहने लगती है। जंगल में अपना गुजर-बसर करने के लिए कुछ भेड़े पालना शुरू कर देती हैं। अब बड़ी बहन रूपेली प्रतिदिन भेड़ों को चराने जंगल में जाति और छोटी बहन सुनेरी घर पर रहती । जब रुपेली शाम को भेड़ों को चरा कर वापस आती तो वह आवाज देती  कि सुनेरी बहन दरवाजा  खोलो  तुम्हारी बहन रूपेरी आई है ऐसा सुनके सुनेरी दरवाजा खोल देती थी। और दोनों बहने आराम से रहने लगी। एक  दिन की बात है कि रुपेरी  रोज की तरह  भेड़ों को लेकर जंगल में गई हुई थी ।तभी एक राजकुमार घोड़ी पर बैठकर शिकार करने के लिए उधर से गुजर रहा था ।तो उसकी नजर रुपेरी पर पड़ी वो बहुत ही सुंदर थी ।जिसे देखकर राजकुमार का मन उसके ऊपर मोहित हो गया ।और उसने कहा कि वो उससे शादी करना चाहता हैं। रूपेरी ने उसे मना किया ,लेकिन फिर भी राजकुमार नही माना और जबरन उसको अपने घोड़े पर बिठाकर अपने नगर में ले गया ।और उससे विवाह कर लिया ।जब शाम को रुपेरी बहन नहीं आई तो सुनेरी बहन  इंतजार करते करते रोने लगी और  रो रो के उसका बुरा हाल हो गया। जब आखिर रूपेरी  नहीं आई तो दूसरे दिन सुनेरी बहन उसकी  खोज में निकल पड़ी और ढूंढते- ढूंढते  कई वर्ष बीत गए और अब दोनो का रूप रंग,भाषा ,शकल, जीवन बहुत बदल चुका था।

बहन की दासी बनी बहन

एक दिन सुनेरी  उस नगर में पहुंच गई जिस नगर में रूपेरी   महारानी थी। और वहां पर सुनेरी जोर-जोर से आवाज लगाकर काम पर रख लेने की दुहाई (आग्रह करना )करने लगी । तब उसकी आवाज उस नगर की महारानी ने सुनी तो उसने अपनी दासी से कहा कि उसको अंदर बुला कर लाओ। और काम पे रखलो।दासी ने उसको रूपेरी  के पुत्र की देखभाल में काम पे लगा दिया।और कहा की इस बच्चे को खिलाने का काम आपको करना हैं। तो सुनेरी  बड़ी प्रसन्न हुई ।अब वह बड़े चाव से उस बच्चे को प्यार करती और खूब खिलाती और जब उस को नींद आती तो उसको लोरी गा के सुनाती। लोरी में वो बोलती की "रूपेरी  बाई जायो सुनेरी बाई खिलायो"रूपेरी बाई ने जन्म दिया तथा सुनेरी बाई ने खिलाया वह बार-बार ऐसा ही गुनगुनाती थी। एक दिन महारानी ने ये सब अपने कानो से सुना तो वह समझ गई की ये तो सुनेरी बहन ही हैं और वो तुरंत उसके पास गई और कहा की वह उस लोरी को दुबारा गुनगुनाए तो उसने कहा की " रुपेरी बाई जायो और सुनेरी  बाई खिलायो"तो यह बात सुनकर रूपेली  बाई समझ गई यह तो अपनी बहन सुनेरी  बाई ही है ।दोनों बहने आपस में गले मिलकर खूब रोई और फिर दोनो साथ साथ खुशी से रहने लगी। इस प्रकार से दोनो बहनों के प्रेम की कहानी का अंत हुआ। जिनके एक के भाग्य में महारानी बनना लिखा था और एक के दासी बनना लिखा था।।

सोमवार, 27 फ़रवरी 2023

दो पक्षियों की प्रेम कथा -सच्ची घटना पर आधारित

 जीवन में किसी और का प्रवेश 

दो पक्षियों की  प्रेम कथा

   यह एक सच्ची घटना पर आधारित कहानी हैं। मैं अपने परिवार के साथ एक हरी भरी सोसायटी में रहती हूं। ग्रीष्मकाल अवकाश का समय था।सुबह और सांय बच्चो,महिलाओं और बुजुर्गो की चहल पहल के बीच सेंट्रल पार्क के चारो और टहलने के लिए एक पक्का पगडंडी बनी हुई थी।क्योंकि पेड़ पौधों के कारण पक्षियों भी चहकते रहते थे।उन्हीं पक्षियों में एक जोड़ा टिटहरी का था और वो दोनों पार्क के साथ लगी पगडंडी पर ही अपना आशियाना बना रखा था। और दोनो आसपास के घरों पर और पार्क में टहलते रहते थे और अक्सर टी- टी - टी - टी की आवाज करते रहते थे। और ये जोड़ा लोगो की चर्चा का विषय होता था क्योंकि वो दोनो साथ साथ ही रहते थे। 

        कुछ समय के बाद मादा टिटहरी ने अंडे दिए। अब मादा टिटहरी उन अंडो के ऊपर बैठी रहती थी। और नर टिटहरी भोजन के लिए उधर उधर टहलते रहता था। और जब लोग उनके घोंसले के पास से गुजरते तो अमूमन मादा टिटहरी अपने पंखों को फैला देती थी।और टी- टी- टी- टी करने लगती और उससे मुख्यत बच्चे चलके उसके घोंसले के पास से गुजरते और टिटहरी की ये हरकत देख के खुश होते। और बड़े लोग अक्सर उससे दूरी बनाकर आगे निकल जाते थे। क्योंकि टिटहरी को अपने अंडो में पल रहे बच्चो को लोगो से खतरा महसूस करती थी। 

      ये सिलसिला लंबे समय तक चला। एक दिन देखा की उनके जीवन में एक मादा टिटहरी का प्रवेश हुआ। लोगो ने सोचा की उनके रिश्ते से कोई देखभाल के लिए आई हैं। अब वो दोनो भोजन के लिए उधर उधर साथ साथ जाने लगे और कब उनमें प्रेम पनप गया। और वो दोनो कन्ही दूर चले गए। अब मादा टिटहरी पे दोहरी जिम्मेदारी आ गई। अंडो की सुरक्षा के साथ साथ भोजन की व्यवस्था भी उसे करनी पड़ती थी। अब वो उसके आशियाना के पास से गुजरने वाले अन्य जानवर जिनमें पालतू कुत्ते हुया करते थे।और बच्चो पे चोंच से हमला करना शुरू कर दिया ।तो लोग समझ गए की नर टिटहरी उस रिश्तेदार के साथ कन्हि और घर बसा लिया हैं ।और इसके कारण अंडो की देखरेख करते करते यह टिटहरी चिड़चिड़ी हो चुकी थी। 

       आखिर एक दिन किसी ने मौका देख के उसके अंडो को चुरा लिया। कुछ दिन वो टिटहरी दुखी मन से इधर उधर भटकती रही और विलाप करती रही।और अंत में वो भी वँहा से कंही और विस्थापित हो गई ,इस प्रकार एक प्रेम कहानी का अंत हुआ लेकिन आजकल के समाज में अक्सर देखा जाता है की जहां जिंदगी में किसी और की एंट्री होती हैं तो ऐसी स्थिति में चक्की के दो पाटों के बीच बच्चों को ही पीसना होता है। इसलिए रिश्तों की इस डोर को कस के पकड़िए ताकि आने वाली पीढ़ी को इसका खामियाज़ा ना भुगतना पड़े।

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