मंगलवार, 28 फ़रवरी 2023

होली की पटकथा-एक पौराणिक लेख

होली पर एक पौराणिक लेख

होली पर एक पौराणिक लेख


होली का नाम सुनते ही हमारे जिहान में रंगो की बारिश होने लगती हैं।यह त्यौहार भारतवर्ष का पुराने पर्वों में से एक हैं। होली से संबंधित इतिहास और पौराणिक कथाओं में बहुत कुछ लिखा हुआ हैं , एक बात कॉमन हैं की सदैव से ही सत्य की असत्य पर और धर्म की अधर्म पर विजय ने उत्सव का रूप धारण किया है

होली का पर्व और जीवन दर्शन

यह पर्व प्यार और रंगो का अदभुत संगम हैं।पौराणिक कहानियां में भी इस बसंत के सुंदर मौसम में रंग डालने की लीलाओं का वर्णन मिलता हैं।मथुरा और वृंदावन की विश्व में पहचान ही राधा और कृष्ण के प्रेम के रंग में डूबी हुई होती हैं । अक्षर धाम की और से हर होली पर फूलो से होली खेलने की परंपरा हैं। बरसाने की लठ मार होली पूरे विश्व में अपनी पहचान रखती हैं।

         देश विदेश से भी लोग और कृष्ण भक्त इस पर्व को आपस में सद्भावना बढ़ाने ,प्रेम का भाव जगाने,भाव और भक्ति का मिश्रण करने के साथ आनन्द में ढूबने का नाम हैं होली।लोग कृष्ण को ठाकुर की नाम से भी पुकारते हैं। यह फेस्टिवल जीवन दर्शन का एक बेहतरीन उदहारण पेश करता हैं। की जीवन इन रंगो की तरह सतरंगी होता हैं। हमेशा एक सा रंग जीवन में कभी भी किसी के पास भी नहीं ठहरता हैं।इसलिए जीवन में अहंकार,द्वेष,ईर्ष्या,संशय,को समाप्त कर प्रेम के रंग भरने का अनूठा पर्व हैं होली। होलिका की प्रह्लाद को जलाने की कोशिश भी हमे जीवन की एक यथार्थ शिक्षा देती हैं। की शक्ति का गलत उपयोग करना आप पर विपरीत प्रभाव छोड़ता हैं। 

          इसलिए अपनी शक्ति or पावर का  इस्तेमाल हमेशा निर्बल और कमजोर के उत्थान के लिए ही किया जाना चाहिए।आज का मानव शक्ति का प्रयोग भ्रष्टाचार के लिए ,विरोधियों को कुचलने के लिए, बीवी बच्चो को मौज - आराम की जिंदगी देने के लिए करता हैं।जिनका अंतिम अंजाम हिरण्याकुश की तरह ही समाप्त होता हैं।

पौराणिक कथाओं में होली मानने को लेकर अलग अलग मत हैं।

पार्वती & कामदेव-

       हिमालय पुत्री पार्वती शिव जी से विवाह करना चाहती थी। लेकिन शिवजी के तपस्या में लीन होने के कारण ये संभव ना था। इसमें कामदेव ने पार्वती की सहायता की और पुष्प बाण से शिव जी तपस्या में भंग डाल दिया।शिव जी इससे बहुत क्रोधित हुए और अपनी तीसरी आंख खोल दी। शिव जी के इस क्रोध में कामदेव जलकर भस्म हो गए।और फिर शिव ने पार्वती को देखा और उन्हे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। इस कहानी को लोग वासनाओं के आकर्षण को प्रतीकात्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम के विजय  उत्सव के तौर पे मनाया जाता हैं। 

        एक अन्य कथा जो लोक गीत के रूप में हैं में कहा जाता हैं की कामदेव की पत्नी जब पति की अकाल मृत्यु पर विलाप करती हुई शिव से कामदेव को पुनर्जीवित करने की विनती करती हैं और शिवजी कामदेव को वापस जीवन दे देते हैं। ये दिन होली के रूप में मनाया जाता हैं।साथ ही कामदेव के जीवित होने की खुशी में रंगो पर्व मनाया जाता हैं।

असुरराज हिरण्यकशिपु और बेटा प्रह्लाद बहन & होलिका

       विष्णु पुराण के अनुसार असुरराज हिरण्यकशिपु ने जब अपनी कठोर तपस्या से।खुश करके ऐसा वरदान ले लिया था की वो ना तो पृथ्वी पर मरेगा न आकाश में, न दिन में न रात में, न घर में न बाहर में, न अस्त्र से न शास्त्र से, न मानव से ने पशु से मरूंगा। यह वरदान पाके वो अपने आपको अजर अमर समझ बैठा और नास्तिक होगया और प्रजा में भगवान की जगह लोग असुरराज हिरण्यकशिपु की पूजा करने लगे लेकिन उनका बेटा प्रह्लाद जो कृष्ण भक्त था ने अपने पिता को ईश्वर मानने से इंकार कर दिया। इससे क्रोधित होकर उन्होंने अपनी बहन होलिका के साथ मिलकर प्रह्लाद को मरने प्लान रचा।क्योंकि होलिका प्रह्लाद की बुहा थी और उसे आग में नही जलने का वरदान मिला हुआ था। होलिका बालक प्रह्लाद को गोद में लेके अग्नि में बैठ जाती हैं। 

         नारायण की कृपा से भगत की जान बचा ली जाती हैं और होलिका का जलने से निधन हो जाता हैं इसी दिन को होलिका दहन के नाम से जाना जाता हैं। और इसी के कारण खुशी को रंगो  के त्योहार रूप में मनाया जाता हैं।


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