शनिवार, 1 अप्रैल 2023

पप्पू की हवाई यात्रा

 पप्पू की हवाई यात्रा

अब भी हंसी आ रही है

Story

 

हवाई जहाज उड़ान पर था कि एक यात्री पप्पू, जो इकोनॉमी क्लास में बैठा था, उठकर अचानक फर्स्ट क्लास सेक्शन में में जाकर बैठ गया।

      फ्लाइट अटेंडेंट उसे ऐसा करते देखती है और उसका टिकट देखने के लिए मांगती है।  वह पप्पू से कहती है कि चूंकि उसने इकोनॉमी क्लास के लिए भुगतान किया है, इसलिए उसे सबसे पीछे बैठना होगा, जो इकोनॉमी क्लास है

      पप्पू जवाब देता है, "मैं पप्पू हूं, सारी दुनिया मुझे पप्पू के नाम से जानती है। मैं बहुत प्रसिद्ध हूं, मैं बहुत रईस भी हूं। दिल्ली जा रहा हूं और वहीं रहता हूं। "

       फ्लाइट अटेंडेंट कॉकपिट में जाती है और पायलट और सह-पायलट को बताती है कि एक पप्पू नाम का यात्री प्रथम श्रेणी में बैठा है, जिसका टिकट इकोनॉमिक क्लाश का है और  सीट पर वापस नहीं जा रहा है।

     सह-पायलट पप्पू के पास जाता है और समझाने की कोशिश करता है कि चूंकि उसने इकोनॉमिक क्लाश का टिकट लिया है, इसलिए उसे अपनी वास्तविक सीट पर वापस जाना चाहिए।

      पप्पू फिर जवाब देता हैं, "मैं पप्पू हूं, मैं खानदानी रईस हूं, मैं दिल्ली जा रहा हूं और वहां मुझे बहुत बड़े-बड़े लोगों से परिचय है।"

      सह-पायलट लौटता है और पायलट को जानकारी देता है।

पायलट कहता है, “वो पप्पू है और मैं पप्पू का भी गुरु हूं। मैं उसको उसी भाषा में बोलूंगा, जो वह समझता है।

           वह वापस पप्पू के पास जाता है और उसके कान में कुछ फुसफुसाता है, जिस पर पप्पू कहता है, "ओह, आई एम सॉरी", और उठकर इकोनॉमी क्लास में अपनी सीट पर वापस चला जाता है।

फ्लाइट अटेंडेंट और सह-पायलट चकित हैं और पायलट से पूछते हैं कि ऐसा क्या बोला कि उसने बिना किसी  उपद्रव के मान गया और वापस अपनी सिट पर चला गया।

पायलट ने जवाब दिया- "मैंने उससे कहा, फर्स्ट क्लास दिल्ली नहीं जा रही है, इकोनॉमिक क्लाश दिल्ली जायेगी"

😅


निर्धन चतुर व्यक्ति-The clever Man story in Hindi

 निर्धन चतुर व्यक्ति-The clever Man story in Hindi

निर्धन चतुर व्यक्ति

        एक कर्मचंद नाम का गरीब व्यक्ति था। एक दिन उसके पास कुछ भी नही था तभी उसने अपना दिमाक चलाना शुरू किया और उसे अपने घर में एक मरा हुआ चूहा दिखा। उस व्यक्ति ने वो चूहा उठाया और एक भोजनशाला पहुंच गया और उस चूहे को भोजनशाला के मालिक को बेच दिया जिसे अपनी बिल्ली के भोजन के लिए मरा हुआ चूहा खरीद लिया। उसने ने चूहे के बदले कर्मचंद को एक टक्का दिया।  इसके अगले  ही दिन बहुत तेज आंधी तूफान आया जिसके कारण एक घर के मालिक के बगीचे में खूब सारे पेड़ की पत्ती और टहनियो से सारा बगीचा  अस्त व्यस्त हो गया था।उस बगीचे के मालिक को  बड़ी चिंता सताने लगी की इतनी सफाई किस प्रकार में कर पाऊंगा तभी उसे  कर्मचंद मिला ।उस व्यक्ति ने कर्मचंद को कहा की  क्या तुम उसके बगीचे को साफ कर सकते हो ?  तो कर्मचंद  ने कहा हां जरूर कर सकता हूं। लेकिन इस बगीचे के जितने भी पत्ते और टहनियां है वह सब मैं अपने साथ लेकर जाऊंगा । इससे बगीचे का मालिक बहुत खुश हुआ । क्योंकि उसके लिए ये कचरा मात्र था और इस काम के लिए उसे पैसे भी खर्च नहीं करने पड़े ।दोनो में बात पक्की होगइ। कर्मचंद ने देखा की बगीचे के पास ही  बहुत सारे बच्चे खेल रहे थे । कर्मचंद ने उन बच्चों के पास गया और बोला कि सब बच्चों को मिठाई खिलाऊंगा अगर तुम मेरी इस बगीचे को साफ करने में मदद करोगे बच्चे भी खुश होगये और  उन्होंने सारे टहनियों और पत्तों को बगीचे  के द्वार के पास में सारे पत्ते और टहनियों को इकट्ठा करवा दिया ।और उद्यान पूरा एकदम साफ सुथरा हो गया। 

       तभी वहां से एक कुम्हार गुजर रहा था जिसे अपने मटको को पकाने के लिए इंधन की आवश्यकता थी ।उसने जैसे ही उसने लकड़ी का ढेर देखा तो कुम्हार ने उससे वह ढेर खरीद लिया इस प्रकार कर्मचंद के पास कुछ और पैसे इकट्ठे हो गए ।

     एक दिन कर्मचंद ने देखा की शहर के द्वार पर कुछ लोग हैं  जो  लगभग 500 लोग के आसपास होंगे वो सब  घास काटने का काम करते थे । कर्मचंद ने उन सभी 500 लोगों को पानी पिलाया  तो वो  लोग बड़े खुश हुए और उन्होंने सब ने मिलकर कहा कि बताओ कर्मचंद हम तुम्हारी क्या मदद कर सकते हैं ? कर्मचंद ने कहा कि अभी तो मुझे आपकी हेल्प की आवश्यकता नहीं है ।जब मुझे आवश्यकता होगी तो मैं जरूर आपको बताऊंगा ?

      इसी दौरान कर्मचंद की दोस्ती एक व्यापारी से हो जाती है। उस  व्यापारी ने कहा कि अपने शहर में कुछ व्यापारी 500 घोड़ों के साथ में आ रहे हैं  उनको घोड़ों के लिए घास की आवश्यकता हैं।  अगले ही  दिन कर्मचंद उन लोगों के पास पहुंचा और बोला आज मुझे तुम्हारी सहायता की आवश्यकता है ।उन्होंने कहा कि हां बताइए की हम आपकी  क्या मदद कर सकते हैं । कर्मचंद ने कहा की आप मुझे  घास का गट्ठर दे दो।और कहा कि जब तक जब में आपको ना कहूं तक  तक आप लोग बिल्कुल भी  घास को मत बेचना । इस प्रकार से कर्मचंद ने सारी घास के गट्ठर ले गया । अब  व्यापारी को घोड़ों के लिए घास की आवश्यकता पड़ी लेकिन उनको बाजार में घास नहीं मिली। तो उन्होंने मित्र व्यापारी को बताया तो कर्मचंद ने सारी घास की गठरी उन व्यापारियों को बेच दी। और बदले में  हजार सोने के सिक्के लिए ।इस प्रकार से एक निर्धन व्यक्ति जिसके पास सिर्फ एक मरा हुआ चूहा था ।उसने  अपने बुद्धि की चतुराई के बल से अपनी निर्धनता से मुक्ति पाई।

शिक्षक - कर्म के रास्ते पर चलने से  ही सिद्धि मिलती हैं।  व्यक्ति निर्धन पैदा हो ये कोई पाप नहीं हैं लेकिन गरीब मरना निश्चित पाप हैं।

शुक्रवार, 31 मार्च 2023

बाज़ का जीवन प्रेरणा स्रोत/बाज़ के बच्चे मुँडेर पर नही उड़ते/ Hawk life in Hindi

 

 बाज़ के स्वतंत्रता और संघर्ष की कहानी

Hawk/शाहिन

 बाज़,शाहिन या हॉक ये सभी उस जाबाज़ पक्षी के नाम हैं। जिसे दुनिया पक्षियों के राजा के नाम से जानती हैं। आसमान में  32o किलोमीटर की गति से दौड़ने वाले इस पक्षी ने अपने पंजों की मजबूत पकड़,सजगता  के साथ आसमान में तेज गति से दौड़ने के लिए जाना जाता हैं।  इस लेख में आज बाज़ के साहसिक जीवन की अनसुनी बातें जानेंगे ।

बाज़ की शारीरिक बनावट और जीवनचक्र

    बाज़ एक शिकारी पक्षी होता हैं। आमतौर पर इसकी शारीरिक बनावट गरुड़ से छोटी होता है।इसके शरीर की लम्बाई 13-23 इंच तथा पंख की लम्बाई 29-47 इंच होती हैं। मादा बाज़ शारीरक आकार में नर से ज्यादा बड़ी होती है/ बाज़ के पंख पतले तथा मुड़े हुए होते हैं जो उसे तेज़ गति से उड़ने और उसी गति से अपनी दिशा बदलने में सहायक होते हैं। बाज़  की छाती की मजबूत मांसपेशियाँ ,लम्बे पतले पंख और सरल आकार के फाल्कन सही मायने में रफ्तार के लिए ही बने है | बाज़ की करीब 1500 से 2000 प्रजातियां पाई जाती हैं। मादा बाज़ एकबार में 3 से 5 अण्डे देती हैं और 35 दी तक शेती हैं। इस दौरान नर बाज़ भोजन की व अन्य व्यवस्ता करता हैं।  इसके चूजे जीवन के शुरुवाती 6  सप्ताह में ही 3 से 4 किलोग्राम वजन  हैं। इसकी गर्दन 270 डिग्री तक घूम सकती हैं।  अलावा बाज़ एक साथ दो  बिंदुओ पर देख सकता हैं। 

        बाज़ एक मांसहारी पक्षी होता हैं। 

      इसे घने जंगल,पहाड़ और वृहत रेगिस्थान पसंद नहीं होता हैं। बाज़ बड़े पेड़ो पर अपना घोंसला बना कर रहता हैं यह बार बार जगह नहीं बदलता हैं। घोंसले में ये चीजें जोड़ता रहता हैं इसलिए इसके घोंसले 4 से 6 फ़ीट तक बड़े और वजनदार हो जाते हैं।  इसलिए ही बाज़ अपने जीवन काल में एक स्थान पर ही रहना पसंद करता हैं।  जब तक भोजन जैसी समस्या नहीं होती यह अपना निवास स्थान नहीं बदलता हैं। बाज़ अपने भोजन के लिए खरगोश,चूहे,गिलहरी,मछली,और काम गति से उड़ने वाले पक्षियों का शिकार करता हैं।  यह लोमड़ी और हिरन जैसे जानवरो को अपने पंचो में जकड कर शिकार कर लेता हैं। यह अपने वजन से अधिक वजन के पशु पक्षियों का शिकार करने में सक्षम होता हैं।  बाज़ को पानी में भी तैरना भी आता हैं। परंतु ये पानी से सीधे हवा में वापस नहीं उड़ सकता इसके लिए इसे पानी से धरातल पर आना पड़ता हैं। इसकी आंखे बहुत तेज होती हैं यह पांच किलोमीटर से अपने शिकार को देख सकती हैं।बाज़ की आंखों का वजन उसके दिमाक से भी भारी होता हैं।और तो और ये अल्ट्रा वायलेट लाइट को भी देखने की क्षमता रखता हैं।

           पौराणिक कथाओं के अनुसार बाज को भगवान विष्णु का वाहन माना गया हैं। वर्तमान में बाज़ संयुक्त अरब अमीरात का राष्टीय पक्षी हैं और UAE में लोग घरों में पालते हैं। बाज़ कुछ मिनिट्स में आसमान में 10 किलोमीटर की ऊंचाई पर पहुंच जाता हैं और कई घंटो तक बिना पंख हिलाए उड़ सकता हैं।एक बार में बाज़ 7 से 8 घंटे लगातार उड़ान पर रह सकता हैं।जंगल में बाज़ का जीवन 23 से 30 वर्ष तक होता हैं।जबकि पालतू बाज़ 50 वर्ष तक जीवनकाल पूरा करते हैं।

      बाज़ अपने बच्चो को जो उड़ने की ट्रेनिंग देता हैं वो दुनिया में कमांडो ट्रेनिंग की भांति सबसे कठिन और रिस्क वालीं ट्रेनिंग होती हैं।

"बाज़ के बच्चे मुंडेर पर नहीं उड़ते "

(कहानी )

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बाज़ के बच्चे मुंडेर पर नहीं उड़ते

यह कहावत ही बाज़ की अपने बच्चो की ट्रेनिंग की कहानी को बयान करती हैं। माना जाता हैं जब बाकी पक्षियों के बच्चे बचपन में चहकते रहते हैं तब तक बाज़ के बच्चे ऐसे शिकारी बनते हैं जो अपने वजन से दस गुणा प्राणियों का शिकार करते हैं।मादा बाज पक्षी अपने चूजे को पंजे मे दबोचकर 10  से 12 किलोमीटर तक ऊंची उड़ जाती है । इतनी ऊंचाई पर जहाज उड़ा करते हैं और वह दूरी तय करने में मादा बाज 7 से 9 मिनट का समय लेती है।

        अब वह जमीन के बिल्कुल करीब आ जाता  है ।धरती के जहां से वह देख सकता है उसके स्वामित्व को अब उसकी दूरी धरती से बचती है महज 7 से 800 मीटर लेकिन उसका पंख अभी इतना मजबूत नहीं हुआ है की वो उड़ सके।उस मुकाम पर पहुंचकर वह एक परिस्थिति में स्थिर हो जाती है! और फिर यहां से शुरू होती है उस नन्हें चूजे की “कठिन परीक्षा” उसे अब यहां बताया जाएगा कि तू किस लिए पैदा हुआ है.तेरी दुनिया क्या है तेरी ऊंचाई क्या है तेरा मुकाम बहुत ऊंचा है और फिर मादा बाज उसे अपने पंजों से छोड़ देती है।धरती की ओर ऊपर से नीचे आते वक्त लगभग 2 किलोमीटर उस चूजे को पता भी नहीं होती कि उसके साथ क्या हो रहा है 7 किलोमीटर के अंतराल के आने के बाद उस चूजे के पंख जो कंजाइन से जकड़े होते हैं वह खुलने लगते हैं।लगभग 9 किलोमीटर आने के बाद उनके पंख पूरे खुल जाते हैं ।यह जीवन का प्रथम समय होता है जब बाज का बच्चा पंख फड़फड़ाता हैं।अब धरती से वह लगभग 3000 मीटर दूर होता हैं लेकिन अभी वह उड़ना नहीं सीख पाया है धरती से लगभग 4 से 500 मीटर दूरी पर बच्चे को महसूस होता  है कि उसके जीवन का शायद यह अंतिम  समय है फिर अचानक से एक पंजा उसे आकर अपनी गिरफ्त मे लेता है और अपने पंखों के दरमियान समा लेता है।

      यह पंजा उसकी मां का था जो ठीक उसके उपर चिपक कर उड़ रही होती हैं।और यह बाज के चूजे की पहली ट्रेनिंग थी और ये निरंतर चलती रहती है जब तक कि उसका बच्चा उड़ना नहीं सीख जाता।ये ट्रेनिंग बिल्कुल एक कमांडो की तरह होती है High pressure and maximum risk… तब जाकर दुनिया को एक शाहीन/बाज़ मिलता है जो वायु की दुनिया का अघोषित बादशाह कहा जाता है ।

हिंदी की यह  कहावत हैं की

“बाज़ के बच्चे मुँडेर पर नही उड़ते”

    मादा बाज शुरू से ही अपने बच्चों को संघर्ष करना सिखाती है। हम इंसानों की तरह वो उन्हें सुख सुविधाओं के साथ नहीं पालती। इसलिए बाज के बच्चे हमेशा बहादुर और संघर्षशील होते हैं।

      आज के माता पिता को निश्चित अपने  बच्चों के पीछे मादा बाज़ की भांति चिपक के रहना चाहिए जब तक वह इस दुनियां की मुश्किलों से रूबरू नही हो जाता उन्हे लड़ना सिखाइए बिना आवश्यकता के संघर्ष करना सिखाएं ताकि  मजबूत पंखों के बलबूते वो इस दुनिया में ऊंचाई पर उड़ान भर सके।

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सोमवार, 27 मार्च 2023

दो सुंदर बहनों की कहानी

दो बहनों की दुःख भरी प्रेम कहानी  

दो बहनों की दुःख भरी प्रेम कहानी


         यह कहानी हैं दो सुंदर लड़कियों की जिसमे एक का नाम था रूपेरी और दूसरी का नाम था सुनेरी । दोनो के बाल्यकाल में ही उनकी माता का देहांत हो गया था । क्योंकि दोनो बहिन अभी बहुत छोटी थी। इसलिए उनके पिता ने एक दूसरा विवाह किया । और अब घर में रूपेरी और सुनेरी की सौतेली मां भी रहने लगी लेकिन सौतेली मां का व्यवहार उनके प्रति अच्छा नही था । उनकी पिता के पास एक छोटा सा खेत था। जिसमें उनके पिता हल जोतकर अपने परिवार का पालन पोषण करते थे इसी दौरान उनकी सौतेली मां की एक बेटी पैदा हुई और वह अपनी बेटी की बहुत अच्छी परवरिश करने लगी ।और रुपेरी और सुनेरी को खेत की जुताई के लिए बैलो की जगह दोनों बहनों से खेतो को जुताना शुरू कर दिया । अब खेत में उसकी बेटी भोजन  लेकर जाती और वह औरत  भोजन में  अपने पति के लिए रोटी भेजती और उन दोनों लड़कियों के लिए पशुओ का चारा भेजती। इस प्रकार के व्यवहार के कारण उनके  पिता को बड़ा दुख होता था ।

आधी रोटी अपनी दोनों बेटियों में बांट देते थे।

        पिता अपने हिस्से की आधी रोटी अपनी दोनों बेटियों में बांट देते थे। और यह सब उसकी बेटी देखती थी ।और घर जाकर अपनी मां को बताती थी कि मां बाबूजी अपने हिस्से का भोजन उन दोनों बहनों को दे देते हैं। तो धीरे-धीरे उसकी सौतेली मां ने भोजन की मात्रा को कम कर दिया । तो जितना वह भोजन भेजती थी उसमें से आधा कर दिया लेकिन पिता उसमे भी  उन दोनों बेटियों को आधा  दे देता था। तथा आधा खुद खाता था। एक  दिन ऐसा हुआ कि सौतेली मां ने खाना भेजना ही बंद कर दिया। इससे दुखी होकर रूपेली तथा सुनेरी के पिता ने उनसे कहा कि बेटी अब तुम जाओ ।अब तुम्हारे भाग्य में जो है वह तुम्हें प्राप्त होगा। ऐसा कह के पिता उन दोनों को भेज देता है। दोनों बहने घूमते घूमते एक जंगल में पहुंच जाती है। और वहां एक छोटी सी झोपड़ी बनाकर रहने लगती है। जंगल में अपना गुजर-बसर करने के लिए कुछ भेड़े पालना शुरू कर देती हैं। अब बड़ी बहन रूपेली प्रतिदिन भेड़ों को चराने जंगल में जाति और छोटी बहन सुनेरी घर पर रहती । जब रुपेली शाम को भेड़ों को चरा कर वापस आती तो वह आवाज देती  कि सुनेरी बहन दरवाजा  खोलो  तुम्हारी बहन रूपेरी आई है ऐसा सुनके सुनेरी दरवाजा खोल देती थी। और दोनों बहने आराम से रहने लगी। एक  दिन की बात है कि रुपेरी  रोज की तरह  भेड़ों को लेकर जंगल में गई हुई थी ।तभी एक राजकुमार घोड़ी पर बैठकर शिकार करने के लिए उधर से गुजर रहा था ।तो उसकी नजर रुपेरी पर पड़ी वो बहुत ही सुंदर थी ।जिसे देखकर राजकुमार का मन उसके ऊपर मोहित हो गया ।और उसने कहा कि वो उससे शादी करना चाहता हैं। रूपेरी ने उसे मना किया ,लेकिन फिर भी राजकुमार नही माना और जबरन उसको अपने घोड़े पर बिठाकर अपने नगर में ले गया ।और उससे विवाह कर लिया ।जब शाम को रुपेरी बहन नहीं आई तो सुनेरी बहन  इंतजार करते करते रोने लगी और  रो रो के उसका बुरा हाल हो गया। जब आखिर रूपेरी  नहीं आई तो दूसरे दिन सुनेरी बहन उसकी  खोज में निकल पड़ी और ढूंढते- ढूंढते  कई वर्ष बीत गए और अब दोनो का रूप रंग,भाषा ,शकल, जीवन बहुत बदल चुका था।

बहन की दासी बनी बहन

एक दिन सुनेरी  उस नगर में पहुंच गई जिस नगर में रूपेरी   महारानी थी। और वहां पर सुनेरी जोर-जोर से आवाज लगाकर काम पर रख लेने की दुहाई (आग्रह करना )करने लगी । तब उसकी आवाज उस नगर की महारानी ने सुनी तो उसने अपनी दासी से कहा कि उसको अंदर बुला कर लाओ। और काम पे रखलो।दासी ने उसको रूपेरी  के पुत्र की देखभाल में काम पे लगा दिया।और कहा की इस बच्चे को खिलाने का काम आपको करना हैं। तो सुनेरी  बड़ी प्रसन्न हुई ।अब वह बड़े चाव से उस बच्चे को प्यार करती और खूब खिलाती और जब उस को नींद आती तो उसको लोरी गा के सुनाती। लोरी में वो बोलती की "रूपेरी  बाई जायो सुनेरी बाई खिलायो"रूपेरी बाई ने जन्म दिया तथा सुनेरी बाई ने खिलाया वह बार-बार ऐसा ही गुनगुनाती थी। एक दिन महारानी ने ये सब अपने कानो से सुना तो वह समझ गई की ये तो सुनेरी बहन ही हैं और वो तुरंत उसके पास गई और कहा की वह उस लोरी को दुबारा गुनगुनाए तो उसने कहा की " रुपेरी बाई जायो और सुनेरी  बाई खिलायो"तो यह बात सुनकर रूपेली  बाई समझ गई यह तो अपनी बहन सुनेरी  बाई ही है ।दोनों बहने आपस में गले मिलकर खूब रोई और फिर दोनो साथ साथ खुशी से रहने लगी। इस प्रकार से दोनो बहनों के प्रेम की कहानी का अंत हुआ। जिनके एक के भाग्य में महारानी बनना लिखा था और एक के दासी बनना लिखा था।।

मंगलवार, 21 मार्च 2023

BLACK COLOUR STORY-काले रंग के परिवार की कहानी

  काले रंग के परिवार की कहानी

काले रंग के परिवार की कहानी

  एक व्यक्ति जिसका नाम गौरीशंकर था पर उसका रंग काला था उसकी नौकरी शहर में लग गई। वह खुशी खुशी गांव के जीवन से अपने आपको शहर के रंग ढंग में ढालने लगा। खान पान से लेकर उठने और बैठने,बोलने,पहनने तक बनावटीपन डालना शुरू कर दिया। उसे इस प्रकार के बनावटीपन की आदत नहीं थी। लेकिन जीवन का एक बड़ा हिस्सा नौकरी के कारण अब उसे शहर में गुजरना था।इसलिए अपनी जीवनशैली में ये सब तब्दीलियां लाना आवश्यक था। वो बहुत ही सकारात्मक विचारों का व्यक्ति था। इसलिए परिवर्तन में विश्वास करता था।। नौकरी के शुरुवाती दिनों में गौरीशंकर  कंवारा था और शहर में किराए के मकान में ही रहता था। और कोशिश करता की अधिक से अधिक पैसे बचाएं जा सके। 

      कुछ वर्ष की नौकरी के बाद उसका विवाह गांव की एक लड़की से हो गया। उस व्यक्ति के परिवार में सभी लोगों का रंग श्याम रंग था। और घर में नई बहू भी श्याम रंग की ही आ गई। लेकिन गांव में उनका व्यवहार और भाषा बहुत ही मधुर और मिलनसार था इसलिए हमेशा से ही लोगों के साथ उनका प्रेम के रिश्ते थे।विवाह होने के बाद गौरीशंकर ने शहर में घर खरीद लिया और अब अपने माता पिता और पत्नी के साथ रहने लगा। जिस कॉलोनी में घर खरीदा तो पड़ोस में निर्मल का परिवार पहले से ही रह रहा था।


      अब गौरीशंकर कोशिश करता की पड़ोसी से अच्छे संबंध बनाने के लिए सुबह सांय जब मिलते तो उनको अभिवादन स्वरूप नमस्ते बोलता । उसके माता पिता भी शहर में नए थे। वो भी निर्मल के परिवार  को सम्मान पूर्वक राम राम बोलते । लेकिन उस वगौरीशंकर ने महसूस किया की निर्मल परिवार  उनको लगातार अनदेखी  करते रहते थे।। अब पड़ोसी परिवार के पुरुष महिला सभी लोग उनको कलुवा परिवार बोलते थे। और कभी कभार वो गौरीशंकर  के परिवार को भी सुनने को मिलता । उनके श्याम रंग के कारण वो लोग उनको तुछ्य व हीन समझते थे। कभी कोई भी बात होती तो उसमे उनका उनके काले रंग को लेकर कटास करने से नही चूकते। लेकिन गौरीशंकर  का परिवार प्रेम की पोटली से बना था और बहुत ही विनम्र स्वभाव के संस्कारी लोग थे वो इस बात का कभी भी बुरा नही मानते थे। और अधिकांश समय आगे चलके बात करने की पहल करते या कोई बहाना दूंढते।कुछ वर्ष बीत जाने के बाद गौरीशंकर के घर  बेटी पैदा हुई। और उसका रंग गौरा था। परिवार में सभी खुश थे। लेकिन निर्मल परिवार उसका भी अलग अलग तरह से मजाक बनाते। 

      एक बार क्या हुआ की निर्मल  परिवार घूमने के लिए गया हुआ था ।और निर्मल के बुजुर्ग माता पिता घर पर ही थे। उस दौरान एक रात्रि को उनके घर पर बिजली का शॉर्ट सर्किट में आग।लग गई। और घर में धुंवा फैल गया। उस व्यक्ति का परिवार बगल में ही रहता था ।इसलिए उन्हे जलने की बदबू आई। तुरंत उन्होंने घर में ध्यान दिया जब कुछ भी नही दिखा तो वह व्यक्ति बाहर निकल कर देखने लगा तो उसे निर्मल के घर में धुँवा  दिखाई दि। उसने तुरंत सभी को आवाज लगाई और फायर ब्रिगेड को फोन किया। और बहादुरी दिखाते हुए उनके घर में दाखिल हुआ और देखा की दोनो बुजुर्ग बेहोश हो चुके थे। उनको निकाल कर हॉस्पिटल में भर्ती करवाया। और उनकी पूरी देखभाल की 2 दिन के बाद उनका परिवार घूमने के बाद वापस आया तो उनको इस घटना से बहुत दुख हुआ। लेकिन गौरीशंकर  के कारण उसके वर्ष माता पिता बच गए थे। जब उनको पता चला तो निर्मल परिवार को बहुत पछ्तावा हुआ,और वह अपनी पत्नी,बेटे और पुत्रवधु के साथ उनके घर आया और उनकी सहायता के लिए धन्यवाद दिया। और उनके श्याम रंग के कारण उनकी उपेक्षा के लिए भी क्षमा मांगी और अपनी शर्मिंदगी जाहिर की। उन्होंने भी उनको इस बात के लिए माफ कर दिया। पर खुदा की नीति को कौन पहुंचता हैं निर्मल  की पुत्रवधु ने भी कुछ समय बाद एक लड़के को जन्म दिया। और वो बच्चा बिलकुल ही काले रंग का पैदा हुआ। तब उनको समझ आया की ईश्वर ने किसी को रंग दिया ,किसी को रूप दिया, किसी को गुणों का भंडार दिया। इसलिए दुसरो के रंग रूप से व्यक्ति के व्यक्तित्व को नही आंकना चाहिए। व्यक्ति की पहचान उसके गुणों और व्यवहार से होती हैं। यह ही सत्य है।

QUESTION-लोगों का रंग काला क्यों होता हैं ? 

ANSWER-लोगों का रंग गोरा या काला होना हमारी त्वचा में पाए जाने वाले मेलेनिन नामक वर्णक की मात्रा के आधार पर तय होता है People have a fair complexion based on the amount of pigment called melanin found in our skin.

QUESTION-रंगों का राजा कौन सा है?

ANSWER-ब्लू (जैसा कि "रॉयल ब्लू") विशिष्टता की सूची में उच्च है। बैंगनी रंग की दुर्लभता और तीव्रता के कारण यह रंग हमेश से रॉयल्टी से जुड़ा है, प्राचीन रोमन साम्राज्य में केवल धनी और अमीर सम्राट ही इस रंग के कपडे पहन सकते थे।

 


शुक्रवार, 17 मार्च 2023

बस की पहली यात्रा -मुन्नी का सपना

 मुन्नी की पहली बस यात्रा की  कहानी।

पहली बस यात्रा


  मुन्नी एक 5 वर्ष की लड़की थी। जो अब घर के बगल में सरकारी स्कूल में जाने लग गई थी।मुन्नी के घर के पास ही बस स्टैंड था।जिससे शहर से बसे आती और जाती थी। मुन्नी हमेशा स्कूल से आने के बाद घर की खिड़की पर बैठ जाती थी । और बस स्टैंड का नजारा देखती रहती थी। बसों और यात्रियों के साथ मूंगफली चाय पानी बेचने वालो को आवास हर वक्त मुन्नी के कानो में सुनाई पड़ती थी। 

     मुन्नी के पापा भी साइकिल मरमत का काम करते थे। घर में भोजन,कपड़ा और हारी बीमारी के खर्चे के बाद कुछ नही बचता था। मुन्नी छोटी सी उम्र में घर की आर्थिक स्थिति से अच्छे से अवगत थी। इसलिए वो कभी भी खिलौनों और मिठाइयों की कोई जिद्द नहीं करती थी। पर मुन्नी के मन में बस की यात्रा करने का सपना जरूर घर करने लग गया था । की वो भी एक दिन बस में सफर करेगी और सफर का आनंद लेगी। लेकिन मुन्नी को पता था की ये काम उसके लिए आसान नहीं हैं। क्योंकि मुन्नी का स्कूल भी घर के पास में था। मुन्नी का जीवन स्कूल और घर के अलावा केवल कुछ देर के लिए सांय काल सहेलियों के साथ खेलने में ही गुजरता था। लेकिन मुन्नी और बच्चो की तरह सपने संजोने शुरू कर दिए थे पर साथ में घर की माली हालत भी तो उससे छुपी हुई नही थी।। मुन्नी ये सब सोचते हुए बसों को देख रही थी। तभी उसके पापा की आवाज आई वो उठ कर पापा के पास जाती उसके पापा उसके पास आ चुके थे। 

       उस दिन पापा का काम अच्छा हुआ था इसलिए उन्होंने मुन्नी को 1 रुपया दिया। और।कहा की ये रुपया आपका हुआ। मुन्नी बहुत खुश हुई तभी उसके दिमाक में एक विचार ने जन्म लिया की अब से वो अपनी गिफ्ट स्वरूप या इनाम में मिले रुपया को अपने पास पिग्गी बैंक में इकठ्ठा करेगी और बस में यात्रा करेगी।  अब मुन्नी हर दिन खिड़की में बैठती और बस स्टैंड पे लोगो के नजारे देखती और रोमांचित होती । जब भी घर पर कोई मेहमान या मामा नाना आते तो मुन्नी को उपहार स्वरूप 1-2 रुपया देते और मुन्नी बहुत खुश होती और अपने पिग्गी बैंक में बचत करने लगी। मुन्नी खिड़की में बैठ कर सोचती की  टिकट के आने जाने पैसे होने पर वो बस में खिड़की पर ही बैठेगी और बाहर की ठंडी हवा के साथ नजारो का मजा लेगी। और हर दिन अपनी बचत को गिनती। ऐसे करते हुए उसे 2 साल का समय हो चुका था और मुन्नी अब 7 वर्ष की हो चुकी थी। साथ में बातूनी इतनी की बड़ो के कानो के कीड़े झड़ जाएं।

अब मुनि कक्षा 3 में प्रवेश कर चुकी थी। अब मुन्नी के पास  70 रूपये हो चुके थे। और शहर तक जाने के लिए बस का किराया 30 रुपया था। पर अब मुन्नी घर से शहर कैसे जाए। क्योंकि इतनी कम उम्र में उसको माता पिता से अनुमति मिलने की संभावना नगण्य थी। और वो हिम्मत भी नही जुटा पा रही थी। उसमें हिम्मत करके मौके की तलाश करने लगी। और एक दिन ऐसा आया की उनकी स्कूल की छुट्टी आधे समय पर ही हो गई। मुन्नी सीधे बस स्टैंड गई और बस का इंतजार करने लगी। जैसे ही बस पहुंची उसने कंडक्टर से बड़े ही आत्मविश्वास से पूछा की बस क्या शहर को जा रही हैं। उसकी आवाज की खनक सुनके कंडक्टर ने कहा की मैम बस शहर को ही जा रही हैं और वो मुन्नी को ऊपर चढ़ने में सहायता करने के लिए बढ़ा लेकिन आज मुन्नी के तेवर कुछ अलग ही थे।उसने कहा की में खुद चढ़ सकती हु। कंडक्टर भी हतप्रस्थ रह गया। कंडक्टर ने कहा जैसी आपकी मर्जी मैम। कंडक्टर -क्या आप अकेले ही यात्रा करोगी?

मुन्नी  -हां क्यों अकेले यात्रा करने पर मनाही हैं?

कंडक्टर -अरे नही मैम आपको बच्चा समझ के लिए पूछ लिया।

मुन्नी - में 7 साल की हो चुकी हु। क्या आपको में बच्ची नजर आती हुं?आप मुझे बातो में मत उलझाइए और टिकट दीजिए। मुन्नी ने कंडक्टर को 30 रुपए दिए और टिकट लिया।

    इतने समय में आगे का बस स्टॉप आ गया और कंडक्टर थोड़ी देर के लिए व्यस्थ हो गया। जब तक मुन्नी खिड़की की सीट पर बैठ चुकी थी। और रास्ते में आते हुए घास के मैदान,कभी नहर कल कल करते हुए बहता हुआ पानी और पशु पक्षियों की चहल पहल देखते हुए बस में आंनद की अनुभूति कर रही थी। पर उसकी शारीरिक ऊंचाई कम होने के कारण उसको बार बार ऊपर होकर देखना पड़ रहा था। सामने से आने वाली कार,बस ट्रक, टेम्पु ऐसे लग रहे थे जैसे सीधे बस से आकर टकरा जायेंगे। लेकिन इतनी सुरक्षा से बस आगे बढ़ते हुए मुन्नी के मन में बहुत से सवाल बड़ रहे थे। और वो बाहर की  गतिविधियां देख कर खूब हंस रही थी। बस में लोग बहुत कम थे लेकिन मुन्नी को इस तरह से खिलखिलाते देख सभी साथ में हंस रहे थे। उस दौरान एक बुजुर्ग व्यक्ति उसके बगल में आके बैठ चुका था। उसने कहा की बेटा आप अकेले किधर को जा रहे हो। मुन्नी ने कहा की वो बस में बैठ के शहर जा रही हैं और उसके पास पूरे 30 रूपये की टिकट भी ली हैं। बुजुर्ग ने कहा की क्या आपका कोई रिश्तेदार शहर में रहता हैं। तो मुन्नी ने कहा की नही तो फिर आप शहर को कैसे देखोगी उधर बहुत बड़ी बड़ी सड़के ,छोटी गालियां, ऊंची ऊंची बिल्डिंग होती हैं आप अकेले को डर नही लगता। 

   मुन्नी ने फिर आत्मविश्वास दिखाया और कहा इनसे डरने की कोनसी बात हैं। और फिर खिड़की के बाहर प्रकृति को निहारने लगी। बस अब 2 घंटे के बाद बस शहर पहुंच चुकी थी। सभी सवारियां बस से उतर चुकी थी लेकिन मुन्नी अपनी सीट पर ही बैठी रही। तो कंडक्टर ने भावपूर्ण का मैम यन्हि से रिटर्न होगी। लेकिन मुन्नी ने पैसे देते हुए कहा की मुझे वापस जाने का टिकट दे दीजिए।तब कंडक्टर को समझ आया की वो शहर में केवल बस की यात्रा करनें आई हैं। कंडक्टर ने उसे कहा की वो थोड़ा पानी नाश्ता कर ले बस थोड़ी देर रुकने के बाद चलेगी। लेकिन मुन्नी के मन में तो डर था इसलिए उसने मना कर दिया। लेकिन कंडक्टर नेकदिल इंसान था इसलिए उसने मुन्नी को पानी पिलाया और एक आइसक्रीम खाने को दिया। थोड़ी देर के विश्राम के बाद बस वापस चली। और मुन्नी अपने जीवन की पहली बस यात्रा करके वापस अपने घर पहुंची।

शिक्षा - सपनो को पुरा करने के लिए बचत के साथ थोड़ी हिम्मत दिखानी पड़ती हैं।

रविवार, 12 मार्च 2023

Top 7 Kids Stories -बच्चो की शिक्षाप्रद कहानियां

बच्चो की शिक्षाप्रद कहानियां

-बच्चो की शिक्षाप्रद कहानियां
  दर्जी और हाथी की दोस्ती

       एकबार की बात हैं की एक गांव में एक दर्जी रहता था। दर्जी सुबह प्रात:अपनी दुकान खोल लेता था। उसकी दुकान के सामने से एक व्यक्ति हर रोज अपने हाथी के साथ गांव के तालाब में सुबह सुबह स्नान करने व पानी लाने के लिए जाते थे। दर्जी प्रतिदिन सुबह सुबह हाथी को कुछ खाने के लिए देना शुरू किया। और हाथी आता और दुकान पे रुकता। दर्जी उसे कुछ खाने को देता और उसके सूंड पे हाथ फेरता। इसके बदले हाथी भी तालाब से वापसी के समय दर्जी के लिए तालाब से कमल का फूल लेके आता और दर्जी को फूल देता। 

        यह सिलसिला खूब दिन से चल रहा था। और ये क्रिया एक पशु और मनुष्य की दोस्ती की मिशाल बन गई। सभी लोग दर्जी और हाथी की दोस्ती की चर्चा करते थे।। एक दिन दर्जी को मजाक करने की सूझी और उसने हाथी को कुछ खिलाने।की बजाय उसकी सूंड में सुई चुभा दी। 

      अब क्या था हाथी बहुत नाराज़ हो गया। हाथी उस दिन तालाब से कमल की जगह सूंड में कीचड़ भरकर आय।जैसे ही वो दर्जी की दुकान पे पहुंचा और सारे कीचड़ को उसकी दुकान में फेंक दिया जिससे दर्जी के सारे कपड़े गंदें हो गए।और दर्जी इस घटना से बहुत दुखी हुआ।

शिक्षा -जैसा बोवोगे वैसा पाओगे। इसलिए सबसे मधुर व्यवहार करना ही अच्छा होता हैं । 

लालची कुत्ता 

लालची कुत्ता

   यह कहानी हैं एक कुत्ते की । एक दिन वो भूख के लिए भोजन ढूंढ रहा था। तभी उसे एक रोटी का टुकड़ा मिला। कुत्ते ने उस टुकड़े को मुंह में दबा कर एकांत में खाने का प्लान किया। और वो एक दिशा में चल पड़ा रास्ते में वो एक नदी के ऊपर पुलिया से गुजर रहा था।तभी उसने अपनी परछाई नदी के पानी में देखी। कुत्ते ने सोचा की क्यों न में इसकी रोटी छीन लू फिर आराम से बैठके भोजन करूंगा।  कुत्ता यह सोच ही रहा था की वो अपनी परछाई पे भौंका और भौंकते ही उसका मुंह खुला और उसके मुंह की रोटी पानी में गिर गई। बेचारे कुत्ते को अपने लालची स्वभाव की कीमत अपनी रोटी खो के चुकानी पड़ी। और उसको बहुत पछतावा हुआ।

 शिक्षा - लालच बुरी बला हैं। इसलिए कभी भी अधिक लालच नहीं करना चाहिए।

बंदर मामा और बिल्ली मांसी

बंदर मामा और बिल्ली मांसी

 

       एक बार दो बंदर थे । उनको एक रोटी मिली ।वो अब रोटी का बंटवारा करने लगे तभी उनमें झगड़ा होने लग गया। और वो दोनो एक दूसरे पर अधिक रोटी लेने का आरोप लगाने लगे। तभी उन्होंने बिल्ली मांसी के पास जाकर फैसला करने का निर्णय किया। और बिल्ली के घर पहुंच गए। 

     सारा माजरा समझ के बिल्ली मांसी ने एक तुला ली और दोनो में रोटी का एक एक टुकड़ा रख दिया। लेकिन तुला के एक पलड़े में अधिक होने पर बिल्ली ने एक छोटा टुकड़ा तोड़ के खुद खा लिया। अब दूसरे पलड़े में अधिक रोटी हो गई। अबकी बार उसमे से थोड़ा खा लिया। ऐसा दो से तीन बार किया तब जाके दोनो बंदरो को समझ में आया की उन दोनो की लड़ाई में बिल्ली मांसी ने अपना उल्लू सीधा कर लिया। तुरंत दोनो ने बिल्ली को रोका और बाकी बची हुई रोटी वापस लेके चुपचाप चले गए।

शिक्षा -आपसी झगड़े में हमेशा तीसरा व्यक्ति मौका ढूंढता हैं। इस लिए मध्यस्था की जगह आपसी संवाद में विश्वास करे।

संगठन में शक्ति हैं।

संगठन में शक्ति हैं।

    एकबार चार सांड थे। वो चारो प्रतिदिन जंगल में जाते और एक साथ घास चरते और खुशी खुशी वापस आते। चारो बड़े ही हस्टपुष्ट और ताकतवर थे। उस जंगल के एक शेर था। और उसका इन सांडो का शिकार करके भोजन करने का मन होता था। 

     लेकिन चारो सांडो के बलशाली और एकसाथ रहने के कारण हिम्मत नही कर पाता था। एक दिन शेर ने एक सांड को अपनी और बुलाकर कहा की ये तीनो तो हमेशा ताज़ी ताज़ी घास खाते हैं और तुम्हारे लिए सुखी घास का एरिया छोड़ते हैं। अब शेर की ये बात उस सांड के दिल में घुस गई और दूसरे दिन वो अकेला ही दूसरे एरिया में घास चरने चला गया। अब क्या था शेर ने उसे अकेला देख के उसका शिकार कर लिया और खा गया। ऐसा ही करके उसने चारों सांडो को अलग अलग करके शिकार कर के खा गया।

शिक्षा - एकजुटता में जो ताकत हैं वो किसी भीं और चीज में नही होती हैं। इसलिए संगठन में ही शक्ति होती है।

किसान और उसके बेटे 

किसान और उसके बेटे

        एक किसान था उसके चार बेटे थे। किसान पी में काम करके अपना गुजर बसर करता था। अब किसान बुढ़ा होने लगा था।और उसको अपने बेटो की चिंता सताने लगी थी। एक दिन किसान ने चारो बेटो को बुलाया और अपने पास बैठाया। किसान ने बेटो को बताया की अब वो बूढ़ा और कमजोर हो चुका है। इसलिए अधिक दिन तक जिंदा नहीं रहेगा। किसान ने कहां की उसके मरने के बाद उसके चारो बेटे खेत में जाएं। बना खजाना छुपा हुआ हैं। 

      और ये बताने के कुछ दिन बाद किसान की मृत्यु हो गई। कुछ दिन बात किसान पुत्रों ने खेत में जाकर खजाना ढूंढने का निर्णय किया। और चारो ने पूरे खेत को फावड़े से खुदाई कर डाली। लेकिन उन्हें कन्ही भीं खजाना नहीं मिला। उधर से एक बुजुर्ग गुजर रहा था। उसने खेत की खुदाई देख के कहा की उन्हे खेत में गेहूं की बुवाई कर देनी चाहिए। चारो ने उसकी बात मानके खेत में गेहूं उगा दिया। कुछ महीनो के बाद फसल तैयार हुई और खूब पैदावार हुई। तब उनको समझ में आया की उनके पिता ने उन्हें मेहनत को ही छुपा हुआ खजाना कहा था।

शिक्षा - मेहनत ही जीवन का असली धन हैं।

वकील और गुरुजी को कहानी 

      एक बार की बात हैं की एक वकील और एक गुरुजी दोस्त थे। वकील थोड़ा चालक प्रवृत्ति का व्यक्ति था। गुरुजी के पास कुछ जमीन थी और उसमे एक कुंआ था और उसमे अच्छा खासा पानी था। होता क्या है की गुरुजी ने वो जमीन और कुंआ वकील से खरीद ली। 

      कुछ दिन में प्रॉपर्टी के कागज़ गुरुजी के नाम हो गए। थोड़े समय के अंतराल के बाद वकील आता है और कहता हैं की  गुरुजी आपको मैने कुंआ बेचा हैं पानी नहीं। गुरुजी समझ गए की वकील ने अपनी होशियारी दिखा दी हैं। गुरुजी ने उस समय कहा की ये तो एकदम सही है। मैने कुंआ खरीदा हैं। अब।वकील पानी यूज करने लगा। 

    थोड़े दिन का समय गुजरा ही था की एक दिन गुरुजी सुबह सुबह वकील के घर पहुंच गए और बोला की दोस्त वो कुंआ तो मैंने खरीद लिया हैं आप अपना पानी खाली करो। ऐसी परिस्थिति में पाकर विचार वकील बड़ा शर्मिंदा हुआ और वकील की होशियारी धरी की धरी रह गई।

शिक्षा - हर जगह पर होशियारी दिखाना उल्टा पड़ जाता हैं

मेले में सुन्दर बैल और ग्राहक को कहानी 

      एक बार एक मेला लगा हुआ था । मेले में जी तरह तरह के सामान और जानवरों की बिक्री होती थी। उसी मेले में एक स्टॉल पर एक व्यक्ति अपना बैल बेचने आया हुआ था। अमूमन मेले।में सस्ता माला बिकता हैं लेकिन उस व्यक्ति का बैल बहुत हस्तपुष्ट और सुंदर था। सभी लोग आते और इस बैल की तारीफ करते और वैसा बैल उनके पास भी होना चाहिए अपनी इच्छा बताते लेकिन जब मोल भाव पूछते तो व्यक्ति कीमत बोलता की दस हजार रुपया। ऊंची कीमत सुनते ही लोग चले जाते। 

      एक व्यक्ति आया और उसे बैल बहुत पसंद आए। उसने कीमत जानी और तुरंत उसे दस हजार रुपए थमा दिए।व्यक्ति ने पैसे गिने और जेब में रख लिए। व्यक्ति को ग्राहक बहुत अच्छा लगा इसलिए उसने उसे कहा की आप बैठिए में आपकी कुछ खातिरदारी करता हु। लेकिन ग्राहक ने कहा की नही आप मुझे बैल दीजिए मुझे जाना हैं। व्यक्ति ने उसे कहा की भया तनिक जल सेवन कर लो। लेकिन ग्राहक ने मना कर दिया और फिर कहा की बैल उसे दे दे उसका जल्दी जाना हैं। व्यक्ति ने उसे फिर चाय पीने को कहा फिर खाने के लिए पुछा फिर उसे स्मोकिंग के कहा लेकिन ग्राहक हर बात पे ना में ही जवाब देता और जल्दी जाने के लिए कहता। व्यक्ति ने अपनी जेब से पैसे वापस निकाल के ग्राहक के हाथ में थमा दिए और बैल देने को मना कर दिया। ऐसा देख ग्राहक ने कहा की भया क्या बात हो गई। तब उस व्यक्ति ने कहा की मैने इस बैल का बड़े प्यार व लाड़चाव से पाला हैं। आपकी ये जल्दी इसे थोड़े ही दिन में मार देगी। 

      ग्राहक ने कहा वो कैसे। तब व्यक्ति ने बताया की आपको मैने आवभगत के लिए इसलिए कहा ताकि आप थोड़ा आराम कर ले लेकिन आप तो एक ही रट लगाए हुए थे की जल्दी जाना हैं। मैं समझ गया की आप इस बैल का तनिक भी आराम नही करने दोगे और ये मर जायेगा।।

शिक्षा - किसी की आवभगत को फॉर्मेलिटी से मत देखिए वो व्यक्ति आपको आराम देना चाहता हैं