शनिवार, 3 जून 2023

पशु प्रेमी किसान ,घोड़ा और बकरे की कहानी

 पशु प्रेमी किसान ,घोड़ा और बकरे की कहानी 

पशु प्रेमी किसान ,घोड़ा और बकरे की कहानी
 एक समय की बात है, एक गांव में एक पशु प्रेमी किसान रहता था। उसके पास एक घोड़ा और कुछ बकरे थे। वह पशुओं को बहुत प्यार करता था और उनकी देखभाल करने में बहुत रुचि रखता था।

       किसान के पास एक बड़ा खेत था, जिसमें वह फल, सब्जियां और चारा उगाता था। घोड़ा और बकरे खेत में घूमने का आनंद लेते थे और सब्जियों को चबाकर खाते थे। किसान ने इन पशुओं को बहुत अच्छा खाना देते थे और उनकी सेवा में कोई कमी नहीं छोड़ते थे।

         एक दिन, बड़ा बवंडर आया और उससे घोड़ा और बकरे अचानक अलग हो गए। खेत पर बहुत सारी बारिश हुई और उनका रास्ता भटक गया। पशु प्रेमी किसान बहुत चिंतित हो गए।

      वह उन्हें खोजने के लिए उनकी खोज में निकल पड़े। दिन भर की मेहनत के बाद, वह अपने घोड़े और बकरों को ढूंढ़ निकले और उन्हें खेत में वापस लाए।

      घोड़ा और बकरे खेत तक बहुत खुश थे क्योंकि वहां उनको आरामदायक और स्वादिष्ट चारा मिल रहा था। पशु प्रेमी किसान अपनी पशुओं को देखकर बहुत खुश थे क्योंकि वे सुरक्षित और सम्पन्न थे।

      शिक्षा : यह कहानी हमें सिखाती है कि पशुओं की सेवा करना और उनकी देखभाल करना हमारा कर्त्तव्य है। यह हमें प्रेम और समझदारी की भावना सिखाती है। हमें पशुओं के प्रति ध्यान और प्यार देना चाहिए, क्योंकि वे हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और हमें उनकी संरक्षण करना चाहिए।

पशु प्रेमी किशन की कहानी

एक गांव में एक पशु प्रेमी रहता था। उसका नाम किशन था। वह पशुओं को बहुत प्यार करता था और उनकी देखभाल करने में बहुत रुचि रखता था।

एक दिन किशन ने एक सड़क के किनारे देखा कि एक बेचारा घोड़ा बहुत बीमार होकर बिल्कुल दुबला-पतला हो गया है। उसकी आंखों में दुख और दुर्दशा का दृश्य था। किशन ने उसे देखकर दया की भावना से उसके पास गया और उसे ले आया।

किशन ने घोड़े की देखभाल शुरू की, उसे ठंडी और स्वच्छ जगह में रखा, उसे अच्छा खाना खिलाया और उसके लिए चिकित्सा सेवाएं प्रदान की। धीरे-धीरे, घोड़ा स्वस्थ हो गया और उसकी खूबसूरती वापस आ गई।

कुछ समय बाद, किशन एक बकरे को देखा जो गरीबी और बीमारी के कारण बहुत कमजोर हो गया था। उसकी उन्नति के लिए कोई साधन नहीं थे और वह असहाय था। किशन ने बकरे की देखभाल शुरू की, उसे उचित आहार और देखभाल प्रदान की। धीरे-धीरे, बकरा स्वस्थ हो गया और उसकी शक्ति और प्रगति देखी गई।

किशन ने अपने पशु-मित्रों की सेवा करके बहुत संतुष्टि महसूस की। उसने समझा कि पशुओं की देखभाल में उनका ख्याल रखना, उन्हें प्यार देना और उनकी जरूरतों को पूरा करना असली पशु-प्रेम का अर्थ है।

इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है कि हमें सभी प्राणियों की सेवा करनी चाहिए और पशु-प्रेम और दया दिखानी चाहिए। पशुओं के प्रति सम्मान और देखभाल करना हमारी मानवता के प्रतीक है।

शुक्रवार, 26 मई 2023

A Divorce story of Hindu Pair/प्रेम कहानी

Divorce story in Hindu Pair/प्रेम कहानी

Divorce story 
यह कहानी हैं जयपुर में रहने वाली एक दंपति की। दोनो का प्रेम विवाह था लेकिन बहुत कोशिशों के बाद घर वाले राजी हुए थे और खुशी खुशी शादी की सभी रिति रिवाज से विवाह संपन हुआ  था।

रश्मि मेरे ऑफिस में ही काम करती थी।और उसके पति रमेश किसी अन्य कम्पनी में वित्तीय विभाग में मैनेजर की पोस्ट पर काम करते थे। बहुत से मौको  पर आपसी मुलाकातों से रमेश से भी अच्छी दोस्ती हो गई थी। 

     विवाह उपरांत कुछ वर्षो के बाद दोनो के जीवन में तलाक लेने की जंग शुरू हो गई। जैसे ही मुझे भनक पड़ी तो मुझे एक पंडित जी की कही बाते ताजा हो गई की जीवन साथी को छोड़ने के लिए 2 शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
एक डायवोर्स (Divorce) जो अंग्रेज़ लोग लेते हैं और दूसरा तलाक़ जो मुस्लिम लोग लेते हैं। हमारे हिंदुओ में ऐसा कोई शब्द निर्माण नही किया गया क्योंकि इसकी कोई आवश्यकता नहीं होती थी। क्योंकि हिंदुओ में तो जन्म जन्म के रिश्ते बनते हैं। जिनका निर्धारण भगवान के यँहा  होता हैं और एक बार रिश्ते की डोर में बंध जाने के बाद यह अटूट रिश्तों की श्रेणी में आ जाता हैं। में तुरंत रश्मि के पास गया और उससे बात की और अगले ही दिन  
मैं शाम को... उसके घर पहुंचा...। उसने चाय बनाई... और मुझसे बात करने लगी...। पहले तो इधर-उधर की बातें हुईं..., फिर उसने कहना शुरू कर दिया कि... रमेश से उसकी नहीं बन रही और उसने उसे तलाक देने का फैसला कर लिया है...।

मैंने पूछा कि... "रमेश कहां है...?" तो उसने कहा कि... "अभी कहीं गए हैं..., बता कर नहीं गए...।" उसने कहा कि... "बात-बात पर झगड़ा होता है... और अब ये झगड़ा बहुत बढ़ गया है..., ऐसे में अब एक ही रास्ता बचा है कि... अलग हो जाएं..., तलाक ले लें...!"
रश्मि जब काफी देर बोल चुकी... तो मैंने उससे कहा कि... "तुम रमेश को फोन करो... और घर बुलाओ..., कहो कि आनंद आए हैं...!"

रश्मि ने कहा कि... उनकी तो बातचीत नहीं होती..., फिर वो फोन कैसे करे...?!!!
खैर..., रश्मि ने फोन नहीं किया...। मैंने ही फोन किया... और पूछा कि... "तुम कहां हो...  मैं तुम्हारे घर पर हूँ..., आ जाओ...। रमेश पहले तो आनाकानी करता रहा..., पर वो जल्दी ही मान गया और घर चला आया...।

अब दोनों के चेहरों पर... तनातनी साफ नज़र आ रही थी...। ऐसा लग रहा था कि... कभी दो जिस्म-एक जान कहे जाने वाले ये पति-पत्नी... आंखों ही आंखों में एक दूसरे की जान ले लेंगे...! दोनों के बीच... कई दिनों से बातचीत नहीं हुई थी...!!

रमेश मेरे सामने बैठा था...। मैंने उससे कहा कि... "सुना है कि... तुम रश्मि  से... तलाक लेना चाहते हो...?!!!

उसने कहा, “हाँ..., बिल्कुल सही सुना है...। अब हम साथ... नहीं रह सकते...।"

अज़ीब सँकट था...! रश्मि को मैं... बहुत पहले से जानता हूं...। मैं जानता हूं कि... रमेश से शादी करने के लिए... उसने घर में कितना संघर्ष किया था...! बहुत मुश्किल से... दोनों के घर वाले राज़ी हुए थे..., फिर धूमधाम से शादी हुई थी...। ढ़ेर सारी रस्म पूरी की गईं थीं... ऐसा लगता था कि... ये जोड़ी ऊपर से बन कर आई है...! पर शादी के कुछ ही साल बाद... दोनों के बीच झगड़े होने लगे... दोनों एक-दूसरे को खरी-खोटी सुनाने लगे... और आज उसी का नतीज़ा था कि... आनंद... रश्मि और रमेश  के सामने बैठे थे..., उनके बीच के टूटते रिश्तों को... बचाने के लिए...!

आनंद ने कहा की “पति की... 'बीवी' नहीं होती?” यह सुनकर वो दोनों चौंक गए।

" “बीवी" तो... 'शौहर' की होती है..., 'मियाँ' की होती है..., पति की तो... 'पत्नी' होती है...! "

भाषा के मामले में... मेरे  सामने उनका  टिकना मुमकिन नहीं था..., हालांकि रमेश  ने कहा  कि... "भाव तो साफ है न ?" बीवी कहें... या पत्नी... या फिर वाइफ..., सब एक ही तो हैं..., लेकिन मेरे कहने से पहले ही... उन्होंने मुझसे कहा कि... "भाव अपनी जगह है..., शब्द अपनी जगह...! कुछ शब्द... कुछ जगहों के लिए... बने ही नहीं होते...! ऐसे में शब्दों का घालमेल गड़बड़ी पैदा करता है...।"

खैर..., आज मैं भाषा की कक्षा लगाने नहीं आया..., आज मैं रिश्तों के एक अलग अध्याय को जीने के लिए आपके पास आया हूं...। लेकिन इसके लिए... आपको मेरा  साथ देना होगा।
दोनों ने हांमी भरते हुए अपना सिर हिलाया।
 

मैंने कहा कि... "तुम चाहो तो... अलग रह सकते हो..., पर तलाक नहीं ले सकते...!"

रमेश ने कहा “क्यों...???

आनंद : “क्योंकि तुमने निकाह तो किया ही नहीं है...!”

"अरे यार..., हमने शादी तो... की है...!"

“हाँ..., 'शादी' की है...! 'शादी' में... पति-पत्नी के बीच... इस तरह अलग होने का... कोई प्रावधान नहीं है...! अगर तुमने 'मैरिज़' की होती तो... तुम "डाइवोर्स" ले सकते थे...! अगर तुमने 'निकाह' किया होता तो... तुम "तलाक" ले सकते थे...! लेकिन क्योंकि... तुमने 'शादी' की है..., इसका मतलब ये हुआ कि... "हिंदू धर्म" और "हिंदी" में... कहीं भी पति-पत्नी के एक हो जाने के बाद... अलग होने का कोई प्रावधान है ही नहीं....!!!"

मैंने इतनी-सी बात... पूरी गँभीरता से कही थी..., पर दोनों हँस पड़े थे...! दोनों को... साथ-साथ हँसते देख कर... मुझे बहुत खुशी हुई थी...। मैंने समझ लिया था कि... रिश्तों पर पड़ी बर्फ... अब पिघलने लगी है...! वो हँसे..., लेकिन मैं गँभीर बना रहा...

मैंने फिर रश्मि  से पूछा कि... "ये तुम्हारे कौन हैं...?!!!"

रश्मि ने नज़रे झुका कर कहा कि... "पति हैं...! मैंने यही सवाल रमेश  से किया कि... "ये तुम्हारी कौन हैं...?!!! उसने भी नज़रें इधर-उधर घुमाते हुए कहा कि..."बीवी हैं...!"

मैंने तुरंत फिर टोका... "ये... तुम्हारी बीवी नहीं हैं...! ये... तुम्हारी बीवी इसलिए नहीं हैं.... क्योंकि... तुम इनके 'शौहर' नहीं...! तुम इनके 'शौहर' नहीं..., क्योंकि तुमने इनसे साथ "निकाह" नहीं किया... तुमने "शादी" की है...! 'शादी' के बाद... ये तुम्हारी 'पत्नी' हुईं..., हमारे यहाँ जोड़ी ऊपर से... बन कर आती है...! तुम भले सोचो कि... शादी तुमने की है..., पर ये सत्य नहीं है...! तुम शादी का एलबम निकाल कर लाओ..., मैं सबकुछ... अभी इसी वक्त साबित कर दूंगा...!"

बात अलग दिशा में चल पड़ी थी...। मेरे एक-दो बार कहने के बाद... रश्मि शादी का एलबम निकाल लाई..., अब तक माहौल थोड़ा ठँडा हो चुका था..., एलबम लाते हुए... उसने कहा कि... कॉफी बना कर लाती हूं...।"

मैंने कहा कि..., "अभी बैठो..., इन तस्वीरों को देखो...।" कई तस्वीरों को देखते हुए... मेरी निगाह एक तस्वीर पर गई..., जहाँ रश्मि और रमेश  शादी के जोड़े में बैठे थे...। और पाँव~पूजन की रस्म चल रही थी...। मैंने वो तस्वीर एलबम से निकाली... और उनसे कहा कि... "इस तस्वीर को गौर से देखो...!"

उन्होंने तस्वीर देखी... और साथ-साथ पूछ बैठे कि... "इसमें खास क्या है...?!!!"

मैंने कहा कि... "ये पैर पूजन की  रस्म है..., तुम दोनों... इन सभी लोगों से छोटे हो..., जो तुम्हारे पांव छू रहे हैं...।"

“हां तो....?!!!"रश्मि ने कहा।

“ये एक रस्म है... ऐसी रस्म सँसार के... किसी धर्म में नहीं होती... जहाँ छोटों के पांव... बड़े छूते हों...! लेकिन हमारे यहाँ शादी को... ईश्वरीय विधान माना गया है..., इसलिए ऐसा माना जाता है कि... शादी के दिन पति-पत्नी दोनों... 'विष्णु और लक्ष्मी' के रूप होते हैं..., दोनों के भीतर... ईश्वर का निवास हो जाता है...! अब तुम दोनों खुद सोचो कि... क्या हज़ारों-लाखों साल से... विष्णु और लक्ष्मी कभी अलग हुए हैं...?!!! दोनों के बीच... कभी झिकझिक हुई भी हो तो... क्या कभी तुम सोच सकते हो कि... दोनों अलग हो जाएंगे...?!!! नहीं होंगे..., हमारे यहां... इस रिश्ते में... ये प्रावधान है ही नहीं...! "तलाक" शब्द... हमारा नहीं है..., "डाइवोर्स" शब्द भी हमारा नहीं है...!"

यहीं दोनों से मैंने ये भी पूछा कि... "बताओ कि... हिंदी में... "तलाक" को... क्या कहते हैं...???"

दोनों मेरी ओर देखने लगे उनके पास कोई जवाब था ही नहीं फिर मैंने ही कहा कि... "दरअसल हिंदी में... 'तलाक' का कोई विकल्प ही नहीं है...! हमारे यहां तो... ऐसा माना जाता है कि... एक बार एक हो गए तो... कई जन्मों के लिए... एक हो गए तो... प्लीज़ जो हो ही नहीं सकता..., उसे करने की कोशिश भी मत करो...! या फिर... पहले एक दूसरे से 'निकाह' कर लो..., फिर "तलाक" ले लेना...!!"

अब तक रिश्तों पर जमी बर्फ... काफी पिघल चुकी थी...!

रश्मि चुपचाप मेरी बातें सुन रही थी...। फिर उसने कहा कि... "भैया, मैं कॉफी लेकर आती हूं...।"

वो कॉफी लाने गई..., मैंने रमेश  से बातें शुरू कर दीं...। बहुत जल्दी पता चल गया कि... बहुत ही छोटी-छोटी बातें हैं..., बहुत ही छोटी-छोटी इच्छाएं हैं..., जिनकी वज़ह से झगड़े हो रहे हैं...।

खैर..., कॉफी आई मैंने एक चम्मच चीनी अपने कप में डाली...। रमेश  के कप में चीनी डाल ही रहा था कि... रश्मि ने रोक लिया..., “भैया..., इन्हें शुगर है... चीनी नहीं लेंगे...।"

लो जी..., घंटा भर पहले ये... इनसे अलग होने की सोच रही थीं...। और अब... इनके स्वास्थ्य की सोच रही हैं...!

मैं हंस पड़ा मुझे हंसते देख रश्मि थोड़ा झेंपी कॉफी पी कर मैंने कहा कि... "अब तुम लोग... अगले हफ़्ते निकाह कर लो..., फिर तलाक में मैं... तुम दोनों की मदद करूंगा...!"

शायद अब दोनों समझ चुके थे.....

हिन्दी एक भाषा ही नहीं - संस्कृति है...!

इसी तरह हिन्दू भी धर्म नही - सभ्यता है...!!

और विवाह एक मात्र बंधन नहीं जीवन जीने और निभाने का निर्णय हैं।  जिसमे प्रेम पनपता हैं

FAऔर खुशियों के साथ जीवन के कठिन पलों के लिए संघर्ष करना सिखाता हैं।

Mother Father/माँ बाप/Hindi Quotations

 माँ बाप है धार्मिकता का आधार 

Mother FatherHindi Quotations

यह परिस्थति ना आने दे जो माँ बाप अपने मुँह का निवाला रोक के बच्चे के मुँह में खिला देते हैं उनकी दवाई की पर्ची गुम होना आपके आने वाले मुश्किल समय को इंगित करता हैं। 

Mother FatherHindi Quotations-1

घर पत्थर, ईंट ,मिट्टी लोहे या सीमेंट से बना हुआ होता हैं। जो हमारी शारीरिक रक्षा करता हैं।  लेकिन माँ बाप की छांया से ही घर में सुकून भरी ठंडक रहती है। किसी को ज्ञान नहीं हो तो जिनके मान बाप इस दुनिया में नहीं रहे उनसे जाने इसलिए समय रहते जीवन की इस ठंडक को महसूस करलो।

Maan Hindi Quotations

माँ बाप को डराना और गुस्सा करना आपकी कमजोर मानसिकता का प्रतीक है। 

Mother and Kids Hindi Quotations

माँ के कंधे झुकते नहीं उनमे मातृत्व की वो शक्ति होती हैं जिसको आज्ञाकारी पुत्र और पुत्री ही महसूस कर सकते है।

Mother Father appriciations -Hindi Quotations

मानव रूप में आपको धरती पर अवतरित करना। अंगुली पकड़ कर चलना, बोलन, खाना, लड़ना सिखाने से बढ़कर कुछ नहीं करना होता।  बाकि अपने मन मष्तिक्ष से जो करोगे वैसा ही भरोगे। इससे अधिक माँ बाप से आशा रखना आपकी मूर्खता की पहली और आखरी निशानी हैं। 

Childhood with Parents

समय बढ़ा बलवान होता हैं। गरीब अमीर माँ खुद भूखी रही होगी लेकिन बच्चे को भूखा नहीं रखा। लेकिन माँ के अलावा पूरे ज़माने को आपसे उनकी  रोटी से सरोकार हैं आपके भुखेपन से नहीं। 

Kids Demands and Parents

याद रखना आपकी एक ख्वाइश को पूरा करने के लिए माँ बाप कितनी मेहनत करते हैं। इसलिए नहीं की आने वाले कल में वो आवश्यकता के लिए दर्शक बने रहे। 

Value of Father

ऐसे बच्चे इस दुनिया में सबसे गरीब श्रेणी में आते होंगे जिनको घर में माँ बाप का रहने का स्थान का निर्धारण करने के लिए सोचना पड़े।

 
 

गुरुवार, 4 मई 2023

स्वर्ग की मुद्रा- नेकी कर दरिया में डाल

 स्वर्ग की मुद्रा- नेकी कर दरिया में डाल 

स्वर्ग की मुद्रा- नेकी कर दरिया में डाल

 

         एक धनराज नामक उद्योगपति था। वह प्रतिदिन अपनी कार से अपने ऑफिस जाता था। जैसे ही वह कार में बैठता तो FM रेडिओ शुरू करता। रेडिओ पर एक व्यक्ति सुबह सुबह आध्यात्मिक बातें सुनाता था।  वह हमेशा अपने कार्यकर्म की शुरुवात में कहता। जीवन का एक ही मूल मन्त्र हैं।  नेकी कर और दरिया में डाल। जीवन में नेकी के अलावा कुछ साथ नहीं जायेगा। कुछ भी साथ नहीं जायेगा यह वाक्य प्रतिदिन सुन सुन कर धनराज चिंतित होने लगा की मैंने इतनी मेहनत से इतनी धन सम्पदा बनाई हैं। और यह व्यक्ति बोल रहा ह कुछ भी साथ नहीं जायेगा। उसने निश्चित किया की कुछ करना पड़ेगा। वह अपने ऑफिस पहुंचा और PA को बुलाया और कहा की एक सर्कुलर जारी करो  जिसमे जो भी कर्मचारी यह उपाय सुझाएगा जिससे मृत्यु के बाद में अपनी धन सम्पदा साथ लेकर जा सकूँ। जैसे ही सर्कुलर जारी किया और सभी कर्मचारियों ने उसे पढ़ा तो मन ही मन कहने लगे की धनराज जी सटिया गए हैं।  निश्चित उनपे उम्र का असर दिखने लगा हैं। 

           बहुत लोगो ने इनाम के लालच में अपने अपने सुझाव दिए लेकिन धनराज के किसी का भी सुझाव गले नहीं उतरा।  फिर उसने इनाम की राशि को दुगना कर दिया। तभी एक अनजान व्यक्ति ने कहा की उसके पास एक आईडिया हँ।  जिससे धनराज की समस्या का समाधान हैं। तभी धनराज ने अपने मैनेजमेंट की मीटिंग में उस व्यक्ति को आमंत्रित किया। और उस व्यक्ति ने धनराज से कुछ प्रश्न पूछना शुरू किया।  
व्यक्ति - धनराज जी क्या आप अमरीका गए हैं ?
धनराज - हाँ मेरा पूरी दुनिया में कारोबार हैं तो मेरा आना जाना लगा रहता हैं।
व्यक्ति -निश्चित ही आपके रूपये अमरीका में अनुपयोगी होंंगे ।

धनराज - हाँ में रूपये को डॉलर में बदलवा लेता हूँ।  वंहा पर डॉलर ही चलता हैं
व्यक्ति - आप इंग्लैंड और अन्य देशो में भी जाते रहते होंगे और वंहा पे भी ऐसी व्यवस्था देखि होगी.
धनराज - हाँ इंग्लैंड में पौंड का चलन हैं और अन्य देशो में भी वंहा की करेंसी का प्रचलन होता हैं।
व्यक्ति - धनराज जी इसी प्रकार से मृत्यु के बाद भी आप अपने रूपये को कन्वर्ट करके लेके जा सकते हैं।
धनराज - लेकिन वंहा पे इस रूपये को  किसमे कन्वर्ट करना होगा।
व्यक्ति -आप अपने रूपये को स्वर्ग की मुद्रा में बदल सकते हैं।  जो हैं नेकी कर दरिया में डाल।
इसलिए धनराज जी आप अपने रूपये को लोगो के भलाई में खर्च करे।  ये सारा नेक कार्य स्वर्ग की मुद्रा में बदलता जायेगा  जिसका नाम हैं नेकी। इसलिए धीरे धीरे आप अपने रूपये को नेक कार्यो में लगते रहो ताकि आपके साथ स्वर्ग में नेकी जा सके।
इसलिए कहा जाता हैं की मर्त्यु के बाद केवल नेकी साथ जाती हैं।
तब  धनराज को अपनी कठिन मेहनत से कमाया रुपया अपनी मृत्यु के बाद अपने साथ  ले जाने का रास्ता मिला।

शिक्षा - व्यक्ति को बढ़ती उम्र के साथ साथ अपनी कमाई को नेकी की मुद्रा में बदलते रहना चाहिए अन्यथा आप अपनी मेहनत की कमाई यंही पे छोड़ कर जाना पड़ेगा।


मंगलवार, 25 अप्रैल 2023

वास्तुशास्त्री को ज्ञान की प्राप्ति/FAQ.....फेंगशुई क्या हैं ?

वास्तुशास्त्री को ज्ञान की प्राप्ति /

FAQ.....फेंगशुई क्या हैं ?

वास्तुशास्त्री को ज्ञान की प्राप्ति

     एक व्यक्ति जिसका नाम मलय था उसने अपने जीवन में बहुत अधिक उन्नति की और जयपुर  में ज़मीन ख़रीद कर उसपर  आलीशान घर बनाकर सपरिवार रहने लगा,उस भूमि पर पहले से ही एक खूबसूरत स्विमिंग पूल बना हुआ था और पीछे  की ओर एक 100 साल पुराना आम का पेड़ भी लगा हुआ था।

      उसने वह भूमि उस आम के पेड़ के कारण ही ख़रीदी थी, क्यूँकि उनकी पत्नी को आम बहुत पसंद थे।

      जब कुछ समय बाद जब नए घर की सजावट होने लगी तो उसके कुछ पारिवारिक मित्रों ने उसे सलाह दी कि किसी वास्तु शास्त्र विशेषज्ञ की सलाह ले लेनी चाहिए।

      हालांकि मलय को ऐसी बातों पर विश्वास नहीं था, फिर भी अपनो का मन रखने के लिए उसने उनकी बात मान ली और हांगकांग से पिछले 30 साल से वास्तु शास्त्र के बेहद प्रसिद्ध वास्तुशास्त्री मास्टर मखाओ  को बुलवाया।

     उन्हें एयरपोर्ट से लिया,दोनों ने शहर में प्रसिद्ध दाल बाटी चूरमा खाया और उसके बाद वो उन्हें अपनी कार में लेकर अपने घर की ओर चल दिए।

      मलय रास्ते में जब मस्ती से आगे बढ रहा था। और बहुत सी  कारे  उन्हें ओवर टेक करने की कोशिश करती, वो उसे रास्ता दे देते।

      मास्टर मखाओ ने हंसते हुए कहा-  आप बहुत सुरक्षित ड्राइविंग करते हैं मिस्टर मलय । मलय ने भी हंसते हुए प्रत्युत्तर में कहा - लोग अक्सर ओवर टेक तभी करते हैं जब उन्हें कुछ आवश्यक कार्य में देरी हो रही हो। इसलिए हमें उन्हें रास्ता देना ही चाहिए यही उपयुक्त हैं।

    जैसे ही वो लोग घर के पास पहुँचते-पहुँचते सड़क थोड़ी संकरी हो गयी थी और उन्होंने कार थोड़ी और धीरे कर ली। तभी अचानक एक हंसता हुआ बच्चा गली से निकला और तेज़ी से भागते हुए उनकी कार के सामने से सड़क पार कर गया। मलय अपनी कार को  उसी गति से चलाते हुए उस गली की ओर देखते रहे, जैसे किसी का इंतज़ार कर रहे हों.  

      तभी अचानक उसी गली से एक और बच्चा भागते हुए उनकी कार के सामने से निकला, जो शायद पहले बच्चे का पीछा करते हुए आया था। मास्टर मखाओ ने हैरान होते हुए पूछा - आपको कैसे पता था कि कोई दूसरा बच्चा भी भागते हुए निकलेगा ?

   उन्होंने बड़े सहज भाव से कहा, बच्चे अक्सर एक-दूसरे के पीछे भाग रहे होते हैं और इस बात पर विश्वास करना संभव ही नहीं कि कोई बच्चा बिना किसी साथी के ऐसी भाग दौड़ कर रहा हो।

     मास्टर मखाओ इस बात पर बहुत ज़ोर से हंसे और बोले कि आप निस्संदेह बहुत सुलझे हुए व्यक्ति हैं।

     घर के बाहर पहुँच कर दोनों कार से उतरे,तभी अचानक घर के पीछे की ओर से 7-8 पक्षी बहुत तेज़ी से उड़ते नज़र आए,यह देख कर उन्होंने मास्टर मखाओ से कहा कि यदि आपको बुरा न लगे तो क्या हम कुछ देर यहाँ रुक सकते हैं ?

     मास्टर मखाओ ने  कहा हां जरूर पर क्या में कारण जान सकता हूं, तो उन्होंने कहा कि शायद कुछ बच्चे पेड़ से आम चुरा रहे होंगे और हमारे अचानक पहुँचने से डर के मारे बच्चों में भगदड़ न मच जाए, इससे पेड़ से गिर कर किसी बच्चे को चोट भी लग सकती है।

      मास्टर मखाओ कुछ देर चुप रहे, फिर संयत आवाज़ में बोले मित्र, इस घर को किसी वास्तु शास्त्र के जाँच और उपायों की आवश्यकता नहीं है।

मलय ने बड़ी हैरानी से पूछा कि ऐसा क्यूँ ?

    मास्टर मखाओ बोले- जहां आप जैसे विवेकशील  व आसपास के लोगों की भलाई सोचने वाले व्यक्ति विद्यमान होंगे - वह घर संपत्ति वास्तु शास्त्र नियमों के अनुसार बहुत पवित्र-सुखदायी-फलदायी होगी।

    इस प्रकार से एक वास्तुशास्त्र के ज्ञानी व्यक्ति को अपने विषय का संपूर्ण ज्ञान प्राप्त हुआ। और उसने मलय के साथ कुछ दिन गुजरे और जीवन के इन पलो की अहमियत को अपनी वास्तुशास्त्र के प्रथम पृष्ठ में शामिल किया।

शिक्षा -

    जब हमारा मन व मस्तिष्क दूसरों की ख़ुशी व शांति को प्राथमिकता देने लगे, तो इससे दूसरों को ही नहीं, स्वयं हमें भी मानसिक शांति प्रसन्नता की अनुभूति होगी। अन्यथा शांति की तलाश में दर दर भटकते रहो यह किसी वस्तु,मौके धन दौलत से दूर आपके मन मस्तिष्क से ही संभव हैं।

FAQ.....फेंगशुई क्या हैं ?

ANS..... फेंगशुई एक प्राचीन चीनी परंपरा है जिसके अनुसार मान्यता हैं कि इससे हमारे आसपास सकारात्मक ऊर्जा  स्थापित करने में मदद करती है। इसे प्राचीन काल से ही समृद्धि, सौभाग्य,विपुलता और खुशी को आकर्षित करने या बनाये रखने के लिए विशेष वस्तुओं का उपयोग करने को प्रोत्साहित करता है। इसके दूसरे पहलु पे गौर फ़रमाये तो ये चीन और हॉन्कॉन्ग जैसे देशो द्वारा अपने बने हुए उत्पादों का अछि तरह से मार्केटिंग करने का तरीका हैं फेंगशुई। इसमें में विभिन्न रंगों का उपयोग, फर्नीचर की व्यवस्था और भवन संरचनाओं का भी महत्व है। यह सही हैं  की इसने प्राचीन चीनी संस्कृति को आज भी लोग इसका पालन करते हैं।  जैसे जैसे आजकल गृह निर्माण और रहनसहन में साजो सामान का समावेश और दिलचस्पी बढ़ी हैं वैसे ही फेंगशुई /वास्तुशास्त्र का प्रसार हुआ है   बात यह है कि समय के साथ, प्राचीन चीनी प्रथा ने दुनिया भर में लोकप्रियता हासिल की है। फेंगशुई की वस्तुओं की वैश्विक स्तर पर मांग है। विश्व के विभिन्न भागों में रहने वाले लोग इस प्राचीन कला का अनुसरण करने लगे हैं। फेंगशुई की प्रथाओं को अपनाने के बाद कई लोगों ने अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव देखा है।

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शुक्रवार, 14 अप्रैल 2023

बिना मृत्यु के पुनर्जन्म की कहानी

 .         बिना मृत्यु के पुनर्जन्म की कहानी

बिना मृत्यु के पुनर्जन्म की कहानी


एक चोर ने राजा के महल में चोरी की। सिपाहियों को पता चला तो उन्होंने उसके पदचिह्नों(पैरों के निशान ) का पीछा किया। पीछा करते-करते वे नगर से बाहर आ गये। पास में एक गाँव था। उन्होंने चोर के पदचिह्न गाँव की ओर जाते देखे। गाँव में जाकर उन्होंने देखा कि एक साधु  सत्संग कर रहा  हैं और बहुत से लोग बैठकर सुन रहे हैं। चोर के पदचिह्न भी उसी ओर जा रहे थे।सिपाहियों को संदेह हुआ कि चोर भी सत्संग में लोगों के बीच बैठा होगा। वे वहीं खड़े रह कर उसका इंतजार करने लगे। 

सत्संग में साधु कह रहे थे- जो मनुष्य सच्चे हृदय से भगवान की शरण चला जाता है,भगवान उसके सम्पूर्ण पापों को माफ कर देते हैं। 

 गीता में भगवान ने कहा हैः 

  सम्पूर्ण कर्तव्य कर्मों को  त्याग कर तू केवल एक मुझ सर्वशक्तिमान सर्वाधार परमेश्वर की ही शरण में आ जा। मैं तुझे सम्पूर्ण पापों से मुक्त कर दूँगा, तू शोक मत कर। 

वाल्मीकि रामायण में आता हैः 

 जो एक बार भी मेरी शरण में आकर 'मैं तुम्हारा हूँ' ऐसा कह कर रक्षा की याचना करता है, उसे मैं सम्पूर्ण प्राणियों से अभय कर देता हूँ – यह मेरा व्रत है। 

    इसकी व्याख्या करते हुए साधु ने कहा : जो भगवान का हो गया, उसका मानों दूसरा जन्म हो गया। अब वह पापी नहीं रहा, साधु हो गया। 

     अगर कोई दुराचारी से दुराचारी  भी अनन्य भक्त होकर मेरा भजन करता है तो उसको साधु ही मानना चाहिए। कारण कि उसने बहुत अच्छी तरह से निश्चय कर लिया है कि परमेश्वर के भजन के समान अन्य कुछ भी नहीं है। 

       चोर वहीं बैठा सब सुन रहा था। उस पर सत्संग की बातों का बहुत असर पड़ा। उसने वहीं बैठे-बैठे यह दृढ़ निश्चय कर लिया कि अभी से मैं भगवान की शरण लेता हूँ, अब मैं कभी चोरी नहीं करूँगा। मैं भगवान का हो गया। सत्संग समाप्त हुआ। लोग उठकर बाहर जाने लगे। बाहर राजा के सिपाही चोर की तलाश में थे। चोर बाहर निकला तो सिपाहियों ने उसके पदचिह्नों को पहचान लिया और उसको पकड़ के राजा के सामने पेश किया। 

       राजा ने चोर से पूछाः इस महल में तुम्हीं ने चोरी की है न? सच-सच बताओ, तुमने चुराया धन कहाँ रखा है? चोर ने दृढ़ता पूर्वक कहाः "महाराज ! इस जन्म में मैंने कोई चोरी नहीं की।" 

 सिपाही बोलाः "महाराज ! यह झूठ बोलता है। हम इसके पदचिह्नों को पहचानते हैं। इसके पदचिह्न चोर के पदचिह्नों से मिलते हैं, इससे साफ सिद्ध होता है कि चोरी इसी ने की है।" राजा ने चोर की परीक्षा लेने की आज्ञा दी, जिससे पता चले कि वह झूठा है या सच्चा। 

      चोर के हाथ पर पीपल के ढाई पत्ते रखकर उसको कच्चे सूत से बाँध दिया गया। फिर उसके ऊपर गर्म करके लाल किया हुआ लोहा रखा परंतु उसका हाथ जलना तो दूर रहा, सूत और पत्ते भी नहीं जले। लोहा नीचे जमीन पर रखा तो वह जगह काली हो गयी। राजा ने सोचा कि 'वास्तव में इसने चोरी नहीं की, यह निर्दोष है।' 

     अब राजा सिपाहियों पर बहुत नाराज हुआ कि "तुम लोगों ने एक निर्दोष पुरुष पर चोरी का आरोप लगाया है। तुम लोगों को दण्ड दिया जायेगा।" यह सुन कर चोर बोलाः "नहीं महाराज ! आप इनको दण्ड न दें। इनका कोई दोष नहीं है। चोरी मैंने ही की थी।" राजा ने सोचा कि यह साधु पुरुष है, इसलिए सिपाहियों को दण्ड से बचाने के लिए चोरी का दोष अपने सिर पर ले रहा है। राजा बोलाः तुम इन पर दया करके इनको बचाने के लिए ऐसा कह रहे हो पर मैं इन्हें दण्ड अवश्य दूँगा। 

चोर बोलाः "महाराज ! मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ, चोरी मैंने ही की थी। अगर आपको विश्वास न हो तो अपने आदमियों को मेरे साथ भेजो। मैंने चोरी का धन जंगल में जहाँ छिपा रखा है, वहाँ से लाकर दिखा दूँगा।" राजा ने अपने आदमियों को चोर के साथ भेजा। चोर उनको वहाँ ले गया जहाँ उसने धन छिपा रखा था और वहाँ से धन लाकर राजा के सामने रख दिया। यह देखकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। 

   राजा बोलाः अगर तुमने ही चोरी की थी तो परीक्षा करने पर तुम्हारा हाथ क्यों नहीं जला? तुम्हारा हाथ भी नहीं जला और तुमने चोरी का धन भी लाकर दे दिया, यह बात हमारी समझ में नहीं आ रही है। ठीक-ठीक बताओ, बात क्या है ? चोर बोलाः महाराज ! मैंने चोरी करने के बाद धन को जंगल में छिपा दिया और गाँव में चला गया। वहाँ एक जगह सत्संग हो रहा था। मैं वहाँ जा कर लोगों के बीच बैठ गया। सत्संग में मैंने सुना कि ''जो भगवान की शरण लेकर पुनः पाप न करने का निश्चय कर लेता है, उसको भगवान सब पापों से मुक्त कर देते हैं। उसका नया जन्म हो जाता है।'' इस बात का मुझ पर असर पड़ा और मैंने दृढ़ निश्चय कर लिया कि 

" अब मैं कभी चोरी नहीं करूँगा। "

इस प्रकार से जब सोचो तभी सवेरा इस सत्संग से चोर की  बिना मृत्यु के पुनर्जन्म की कहानी सम्पन हुई

    अब मैं भगवान का हो लिया कि 'अब मैं कभी चोरी नहीं करूँगा। अब मैं भगवान का हो गया। इसीलिए तब से मेरा नया जन्म हो गया। इस जन्म में मैंने कोई चोरी नहीं की, इसलिए मेरा हाथ नहीं जला। आपके महल में मैंने जो चोरी की थी, वह तो पिछले जन्म में की थी। 

 कैसा दिव्य प्रभाव है सत्संग का ! मात्र कुछ क्षण के सत्संग ने चोर का जीवन ही पलट दिया। उसे सही समझ देकर पुण्यात्मा, धर्मात्मा बना दिया। चोर सत्संग-वचनों में दृढ़ निष्ठा से कठोर परीक्षा में भी सफल हो गया और उसका जीवन बदल गया। राजा उससे प्रभावित हुआ, प्रजा से भी वह सम्मानित हुआ और प्रभु के रास्ते चलकर प्रभु कृपा से उसने परम पद को भी पा लिया।

सत्संग पापी से पापी व्यक्ति को भी पुण्यात्मा बना देता है। 

जीवन में सत्संग नहीं होगा तो आदमी कुसंग जरूर करेगा। 

 कुसंग व्यक्ति से कुकर्म करवा कर व्यक्ति को पतन के गर्त में गिरा देता है लेकिन सत्संग व्यक्ति को तार देता है, महान बना देता है। ऐसी महान ताकत है सत्संग में !