शुक्रवार, 14 अप्रैल 2023

बिना मृत्यु के पुनर्जन्म की कहानी

 .         बिना मृत्यु के पुनर्जन्म की कहानी

बिना मृत्यु के पुनर्जन्म की कहानी


एक चोर ने राजा के महल में चोरी की। सिपाहियों को पता चला तो उन्होंने उसके पदचिह्नों(पैरों के निशान ) का पीछा किया। पीछा करते-करते वे नगर से बाहर आ गये। पास में एक गाँव था। उन्होंने चोर के पदचिह्न गाँव की ओर जाते देखे। गाँव में जाकर उन्होंने देखा कि एक साधु  सत्संग कर रहा  हैं और बहुत से लोग बैठकर सुन रहे हैं। चोर के पदचिह्न भी उसी ओर जा रहे थे।सिपाहियों को संदेह हुआ कि चोर भी सत्संग में लोगों के बीच बैठा होगा। वे वहीं खड़े रह कर उसका इंतजार करने लगे। 

सत्संग में साधु कह रहे थे- जो मनुष्य सच्चे हृदय से भगवान की शरण चला जाता है,भगवान उसके सम्पूर्ण पापों को माफ कर देते हैं। 

 गीता में भगवान ने कहा हैः 

  सम्पूर्ण कर्तव्य कर्मों को  त्याग कर तू केवल एक मुझ सर्वशक्तिमान सर्वाधार परमेश्वर की ही शरण में आ जा। मैं तुझे सम्पूर्ण पापों से मुक्त कर दूँगा, तू शोक मत कर। 

वाल्मीकि रामायण में आता हैः 

 जो एक बार भी मेरी शरण में आकर 'मैं तुम्हारा हूँ' ऐसा कह कर रक्षा की याचना करता है, उसे मैं सम्पूर्ण प्राणियों से अभय कर देता हूँ – यह मेरा व्रत है। 

    इसकी व्याख्या करते हुए साधु ने कहा : जो भगवान का हो गया, उसका मानों दूसरा जन्म हो गया। अब वह पापी नहीं रहा, साधु हो गया। 

     अगर कोई दुराचारी से दुराचारी  भी अनन्य भक्त होकर मेरा भजन करता है तो उसको साधु ही मानना चाहिए। कारण कि उसने बहुत अच्छी तरह से निश्चय कर लिया है कि परमेश्वर के भजन के समान अन्य कुछ भी नहीं है। 

       चोर वहीं बैठा सब सुन रहा था। उस पर सत्संग की बातों का बहुत असर पड़ा। उसने वहीं बैठे-बैठे यह दृढ़ निश्चय कर लिया कि अभी से मैं भगवान की शरण लेता हूँ, अब मैं कभी चोरी नहीं करूँगा। मैं भगवान का हो गया। सत्संग समाप्त हुआ। लोग उठकर बाहर जाने लगे। बाहर राजा के सिपाही चोर की तलाश में थे। चोर बाहर निकला तो सिपाहियों ने उसके पदचिह्नों को पहचान लिया और उसको पकड़ के राजा के सामने पेश किया। 

       राजा ने चोर से पूछाः इस महल में तुम्हीं ने चोरी की है न? सच-सच बताओ, तुमने चुराया धन कहाँ रखा है? चोर ने दृढ़ता पूर्वक कहाः "महाराज ! इस जन्म में मैंने कोई चोरी नहीं की।" 

 सिपाही बोलाः "महाराज ! यह झूठ बोलता है। हम इसके पदचिह्नों को पहचानते हैं। इसके पदचिह्न चोर के पदचिह्नों से मिलते हैं, इससे साफ सिद्ध होता है कि चोरी इसी ने की है।" राजा ने चोर की परीक्षा लेने की आज्ञा दी, जिससे पता चले कि वह झूठा है या सच्चा। 

      चोर के हाथ पर पीपल के ढाई पत्ते रखकर उसको कच्चे सूत से बाँध दिया गया। फिर उसके ऊपर गर्म करके लाल किया हुआ लोहा रखा परंतु उसका हाथ जलना तो दूर रहा, सूत और पत्ते भी नहीं जले। लोहा नीचे जमीन पर रखा तो वह जगह काली हो गयी। राजा ने सोचा कि 'वास्तव में इसने चोरी नहीं की, यह निर्दोष है।' 

     अब राजा सिपाहियों पर बहुत नाराज हुआ कि "तुम लोगों ने एक निर्दोष पुरुष पर चोरी का आरोप लगाया है। तुम लोगों को दण्ड दिया जायेगा।" यह सुन कर चोर बोलाः "नहीं महाराज ! आप इनको दण्ड न दें। इनका कोई दोष नहीं है। चोरी मैंने ही की थी।" राजा ने सोचा कि यह साधु पुरुष है, इसलिए सिपाहियों को दण्ड से बचाने के लिए चोरी का दोष अपने सिर पर ले रहा है। राजा बोलाः तुम इन पर दया करके इनको बचाने के लिए ऐसा कह रहे हो पर मैं इन्हें दण्ड अवश्य दूँगा। 

चोर बोलाः "महाराज ! मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ, चोरी मैंने ही की थी। अगर आपको विश्वास न हो तो अपने आदमियों को मेरे साथ भेजो। मैंने चोरी का धन जंगल में जहाँ छिपा रखा है, वहाँ से लाकर दिखा दूँगा।" राजा ने अपने आदमियों को चोर के साथ भेजा। चोर उनको वहाँ ले गया जहाँ उसने धन छिपा रखा था और वहाँ से धन लाकर राजा के सामने रख दिया। यह देखकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। 

   राजा बोलाः अगर तुमने ही चोरी की थी तो परीक्षा करने पर तुम्हारा हाथ क्यों नहीं जला? तुम्हारा हाथ भी नहीं जला और तुमने चोरी का धन भी लाकर दे दिया, यह बात हमारी समझ में नहीं आ रही है। ठीक-ठीक बताओ, बात क्या है ? चोर बोलाः महाराज ! मैंने चोरी करने के बाद धन को जंगल में छिपा दिया और गाँव में चला गया। वहाँ एक जगह सत्संग हो रहा था। मैं वहाँ जा कर लोगों के बीच बैठ गया। सत्संग में मैंने सुना कि ''जो भगवान की शरण लेकर पुनः पाप न करने का निश्चय कर लेता है, उसको भगवान सब पापों से मुक्त कर देते हैं। उसका नया जन्म हो जाता है।'' इस बात का मुझ पर असर पड़ा और मैंने दृढ़ निश्चय कर लिया कि 

" अब मैं कभी चोरी नहीं करूँगा। "

इस प्रकार से जब सोचो तभी सवेरा इस सत्संग से चोर की  बिना मृत्यु के पुनर्जन्म की कहानी सम्पन हुई

    अब मैं भगवान का हो लिया कि 'अब मैं कभी चोरी नहीं करूँगा। अब मैं भगवान का हो गया। इसीलिए तब से मेरा नया जन्म हो गया। इस जन्म में मैंने कोई चोरी नहीं की, इसलिए मेरा हाथ नहीं जला। आपके महल में मैंने जो चोरी की थी, वह तो पिछले जन्म में की थी। 

 कैसा दिव्य प्रभाव है सत्संग का ! मात्र कुछ क्षण के सत्संग ने चोर का जीवन ही पलट दिया। उसे सही समझ देकर पुण्यात्मा, धर्मात्मा बना दिया। चोर सत्संग-वचनों में दृढ़ निष्ठा से कठोर परीक्षा में भी सफल हो गया और उसका जीवन बदल गया। राजा उससे प्रभावित हुआ, प्रजा से भी वह सम्मानित हुआ और प्रभु के रास्ते चलकर प्रभु कृपा से उसने परम पद को भी पा लिया।

सत्संग पापी से पापी व्यक्ति को भी पुण्यात्मा बना देता है। 

जीवन में सत्संग नहीं होगा तो आदमी कुसंग जरूर करेगा। 

 कुसंग व्यक्ति से कुकर्म करवा कर व्यक्ति को पतन के गर्त में गिरा देता है लेकिन सत्संग व्यक्ति को तार देता है, महान बना देता है। ऐसी महान ताकत है सत्संग में !

गुरुवार, 6 अप्रैल 2023

चालाक गधा /Clever Donkey -Short Stories

 


चालाक गधा  /Clever Donkey -Short Stories

चालाक गधा


     एक गांव में एक कुम्हार रहता था। उसके पास एक गधा था। कुम्हार अक्षर गधे को मटके बनाने के लिए मिट्टी लाने के काम में लेता था। एक बार मटके बनाने का काम कमजोर होने के कारण कुम्हार परेशान था तभी किसी दोस्त ने बताया की वो नदी के पार गांव से नमक लाके उससे बेच सकता हैं और अपना घर खर्चा चला सकता हैं। कुम्हार को यह सुझाव अच्छा लगा।

       दूसरे दिन सुबह जल्दी ही कुम्हार गधे को लेकर नमक लाने चला गया। और अब नमक का व्यवसाय करने लगा।अब रोज कुम्हार जाता और नमक लाकर बेचता । एक दिन कुम्हार गधे पर नमक की बोरी लाद कर वापस आ रहा था। तभी नदी में गधे का पैर फिसल गया। और गधा नदी में गिर गया। थोड़ी देर की मशक्त के बाद कुम्हार ने गधे को उठाया और बोरी को सही करके चलने लगा तो गधे ने महसूस किया की उसकी पीठ पर वजन कम लग रहा हैं। अब गधा जब भी नमक लेकर नदी से वापस आता तो पानी में बैठ जाता। पानी में नमक पिघल जाता और गधे का वजन कम हो जाता। गधा बहुत खुश था लेकिन नमक कम होने से कुम्हार को नुकसान होना शुरू हो गया। 

            कुम्हार परेशान होके ये बात अपने दोस्त को बताई तो दोस्त ने कुम्हार को एक उपाय सुझाया। की वो नमक की जगह रूई लाद कर लाए। कुम्हार ने ऐसा ही किया। गधे को तो आदत हो चुकी थी की नदी में पहुंचे और पानी में लोटने की ।जैसे ही गधा पानी में बैठा और कुम्हार ने उसे उठाया तो वजन बहुत बढ़ चुका था। अब गधे के मन में डर बैठ गया और कुम्हार ने गधे को लाइन पर लाने में कामयाबी पाई।.....Watch Birds Photo Here....

बुधवार, 5 अप्रैल 2023

मकर संक्रांति

 मकर संक्रांति

     किसी भी साल की भांति 2023 का पहला पर्व मकर संक्रांति (Makar Sankranti 2023) का पड़ रहा है. देशभर में इस पर्व को बहुत ही धूम-धाम से मनाया जाता है. मकर संक्रांति का ज्योतिषी रूप से भी बहुत महत्व है. कहते हैं कि मकर संक्रांति के दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं, इसलिए इसे मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है. सूर्य 30 दिन में राशि बदलते हैं और 6 माह में उत्तरायण और दक्षिणायन होते हैं. मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण होते हैं. मकर संक्रांति 14 जनवरी, शुक्रवार के। 

      मकर संक्रांति (Makar Sankranti) का पर्व देशभर के अलग-अलग भागों में अलग तरीके और अलग नाम से मनाया जाता है. लेकिन सब जगह एक बार कॉमन यह है कि इस दिन तिल-गुड़ खाना और इसका दान करना शुभ माना जाता है. सदियों से इस दिन काले तिल के लड्डू खाने की परंपरा चली आ रही है. लेकिन क्या आप इसके पूछी की वजह जानते हैं? आइए जानते हैं इस दिन काले लड्डू क्यों बनाए और खाए जाते। काले तिल जो हैं वो शनि का रुप होते हैं व गूड़ सुर्य का प्रतिनिधित्व करता है ।इसलिए इस दिन तिल व गुड के लडू खाना व दान करना पसंद करते है । जिससे शनि की दशा को ठिक रखा जा सके।।

तिल व गुड की कहानी 


पौराणिक कथा के अनुसार सूर्य देव ने अपने बेटे शनि देव का घर कुंभ क्रोध में जला दिया था. कुंभ राशि के स्वामी शनि हैं और इस राशि को ही उनका घर माना जाता है. घर को जलाने के बाद जब सूर्य देव घर देखने पहुंचे, तो काले तिल के अलावा सब कुछ जलकर राख हो गया था. तब शनि देव ने सूर्य देव का स्वागत उसी काले तिल से किया.

मंगलवार, 4 अप्रैल 2023

कृष्णा ने नदी पार करने के लिए किया पानी सूखने का इंतजार

     नदी पार करने के लिए पानी सूखने का इंतजार कथा

(Short Story)

        एक बार भगवान श्री कृष्ण नदी के किनारे बैठे हुए थे ।तभी अर्जुन  आ जाता हैं।और पूछता हैं कि हे ! भगवान आप यहा पर क्या कर रहे हो ? कृष्ण ने जबाब दिया को में तो नदी में पानी खत्म होने का इंतजार कर रहा हूं।अर्जुन ने कहा परंतु ऐसा क्यों ? तब तो आप नदी कभी भी पार नहीं कर पाओगे, क्योंकि यह पानी तो कभी नहीं खत्म होने वाला है ।

      श्री कृष्ण ने कहा यही बात तो मैं आप लोगों को समझा रहा हूं। की इस बहते हुए पानी की भांति ही अपनी जिन्दगी हैं।यह कभी भी नहीं रुकती है।इसको चलते हुए ही सुख दुख में इस भवसागर को पार करना होता है।

शिक्षा - अच्छे समय का इंतजार मत कीजिए। जो करना हैं उसे बिना वक्त गंवाए शुरू कर दीजिए।

बच्चों की टॉप 5 प्रेरणादायक कहानिया/Short Kids stories

 Train /रेलगाड़ी/लोह पथ गामिनी

Train /रेलगाड़ी/लोह पथ गामिनी

चुटकी बहुत प्यारी और चंचल लड़की है। चुटकी कक्षा तीसरी में पढ़ती है। एक दिन वो अपने कमरे में पढाई कर रही थी तभी उसने अपनी किताब में रेलगाड़ी का चित्र देखा । उसे तुरंत अपनी रेल यात्रा याद आ गई,जो कुछ महीने पहले अपने परिवार के साथ की थी। चुटकी ने कोयला उठाया और फिर क्या था,घर की सफ़ेद दीवार पर रेलगाड़ी का इंजन बना दिया। उसमें पहला डब्बा जुड़ा,दूसरा डब्बा जुड़ा,जुड़ते–जुड़ते कई सारे डिब्बे जुड़ गए। 

       जब कोयला  खत्म हो गया तो चुटकी अपनी दुनिया में वापस आई और उसने देखा कमरे की आधी दीवार पर रेलगाड़ी बन चुकी थी। फिर क्या हुआ।  चुटकी के मम्मी पापा ने देखा तो ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा.और उन्होंने चुटकी की इस कला की खूब प्रशंसा की और उसकी चित्रकला में रूचि देखते हुए उसको आवश्यक सामग्री खरीद के उपलब्ध कराई। और चुटकी को चित्रकला से जुड़े हुए विडिओ मोबाइल पर देखने की छूट दी।  इससे चुटकी की अपनी रूचि को पंख लग गए। 

नैतिक शिक्षा – बच्चों के मनोबल को पंक लगाई और उनके भविष्य का निर्माण में आज से ही बढ़ाये /Boost the confidence of children because they are the future

 चालक चूहा/Cleaver Rat  

( Hindi short stories )


     मोटू  के घर में एक शरारती चूहया थी । वह बहुत छोटा सा था मगर सारे घर में इधर उधर दौड़ती रहती थी। उसने मोटू  की किताब भी कुतर डाली थी। एक दिन तो उसने मोटू के कुछ कपड़े भी कुतर दिए थे। मोटू की माता  जो कई बार ही खाना बनाकर उसे ढकना भूल जाती थी। वह चूहिया उसे भी चट कर जाती थी । चूहिया खा पीकर बड़ी  हो गई थी। 

          एक दिन मोटू  की माता  ने एक बोतल में शरबत बनाकर रखा था । शरारती चुहया की नज़र बोतल पर पड़ गयी। अब वो सरबत को भी चकना चाहती थी लेकिन उसकी कोई भी तरकीब काम नहीं कर रही था लेकिन चुहिया को तो शरबत पीना था।

        चुहिया बोतल पर चढ़ी और किसी तरह से ढक्कन को खोलने में सफल हो गई । अब उसमें अपना मुंह घुसाने की कोशिश करने लगी लेकिन बोतल का मुंह छोटा था इसलिए चुहिया अपना मुंह नहीं घुसा पा रही थी । 

       फिर चुहिया  को एक  आइडिया आया उसने अपनी पूंछ बोतल में डाली। पूंछ शरबत से गीली हो जाती है उसे चाट-चाट कर चुहिया का पेट भर गया। अब वह मोटू के बिस्तर के नीचे बने अपने बिस्तर पर जा कर आराम करने लगी आज उसको पूर्ण संतुष्टि और खुश थी ।

   नैतिक शिक्षा – मेहनत करने से कोई कार्य असम्भव नहीं होता/Hard work with smartness is the key to success. 

रजत  के तीन खरगोश राजा

( Hindi short stories with moral for kids )

      रजत कक्षा तीन का छात्र था। उसके घर में तीन छोटे प्यारे प्यारे खरगोश थे।  रजत अपने खरगोश को बहुत प्यार करता था। और स्कूल से आने के बाद अधिकार समय उन्ही के साथ खेलता था और उनका पूरा ध्यान रखता था । वह स्कूल जाने से पहले पास के बगीचे से हरे-भरे कोमल घास लाकर अपने खरगोश को खिलाता था। और फिर स्कूल जाता था।स्कूल से आकर भी उसके लिए घास लाता था।और कभी कभी उनको टमाटर और फल खिलाता था।


एक  दिन की बात है  रजत को स्कूल के लिए देरी हो रही थी। वह घास नहीं ला सका,और स्कूल चला गया। जब स्कूल से आया तो खरगोश अपने घर में नहीं था।  रजत ने खूब ढूंढा परंतु कहीं नहीं मिला। सब लोगों से पूछा मगर खरगोश कहीं भी नहीं मिला।


 रजत उदास हो गया रो-रोकर आंखें लाल हो गई।  रजत अब पार्क में बैठ कर रोने लगा। कुछ देर बाद वह देखता है कि उसके तीनों खरगोश घास खा रहे थे ,और खेल रहे थे।  रजत को खुशी हुई और वह समझ गया कि इन को भूख लगी थी इसलिए यह पार्क में आए हैं। मुझे भूख लगती है तो मैं मां से खाना मांग लेता हूं। पर इनकी तो मां  भी नहीं है। उसे दुख भी हुआ और खरगोश को मिलने की खुशी भी हुई।

नैतिक शिक्षा –  जो दूसरों के दर्द को समझता है उसे दुःख छू भी नहीं पता/ Understand the agony of others. You will never feel any sorrow

दोस्ती का महत्व/Importance of friends
( Hindi short stories with moral for kids )

 रजत  गर्मी की छुट्टी में अपनी नानी के घर जाता हैं  । वहां रजत को खूब मजा आता हैं ,क्योंकि नानी के आम का बगीचा हैं  वहां रजत ढेर सारे आम खाता है और खेलता है। उसके पांच दोस्त भी हैं,पर उन्हें रजत आम नहीं खिलाता है।

       एक  दिन की बात है, रजत को खेलते खेलते चोट लग गई। रजत के दोस्तों ने रजत  को उठाकर घर पहुंचाया और उसकी माता  से उसके चोट लगने की बात बताई, इस पर रजत को मालिश किया गया।

        माता  ने उन दोस्तों को धन्यवाद किया और उन्हें ढेर सारे आम खिलाएं। रजत जब ठीक हुआ तो उसे दोस्त का महत्व समझ में आ गया था। अब वह उनके साथ खेलता और खूब आम खाता था।

  नैतिक शिक्षा – 

        दोस्त सुख-दुःख के साथी होते है। उनसे प्यार करना चाहिए कोई बात छुपानी नहीं चाहिए/Always love your best friend. And take the time to choose your friends. Because friends will decide your behavior towards the situation in life.

चिड़िया के होंसले की कहानी |/Chidiya ke honsle ki Story In Hindi


          एक  जंगल था  जिसमें भांति भांति के  छोटे-बड़े जानवरों और पक्षियों का बसेरा था।  उसी जंगल के एक पीपल के पेड़ पर घोंसला बनाकर एक सोहन चिड़िया भी रहा करती थी जो बहुत छोटी सी थी सब उसे प्यार से नन्ही नानी कहते थे। एक दिन जंगल में भीषण आग लग गई।  

      सही जीव जन्तुओ में चारो और  हा-हाकार मच गया। सब अपनी जान बचाकर भागने लगे लेकिन छोटी  चिड़िया जिस पेड़ पर रहा करती थी वह भी आग की चपेट में आ गया था। ऐसी परिस्थति में चिड़िया को भी अपनी जान बचाने के लिए उसे भी अपना घोंसला छोड़ना पड़ा।

     लेकिन चिड़िया  जंगल की आग देखकर बिलकुल भी नहीं  घबराई।  वह तुरंत बिना वक्त गंवाए नदी के पास गई और अपनी चोंच में पानी भरकर जंगल की ओर लौटी. चोंच में भरा पानी आग मे छिड़ककर वह फिर नदी की ओर गई. 

      इस तरह नदी से अपनी चोंच में पानी भरकर बार-बार वह जंगल की आग में डालने लगी। उसकी इस हरकत को बाकि सभी जानवर देख रहे थे और चिड़िया की इस मूर्खतापूर्ण काम को देख कर सभी हंसने लगे और  बोले, “अरे चिड़िया रानी, ये क्या कर रही हो? चोंच भर पानी से जंगल की आग बुझा रही हो,मूर्खता छोड़ो और प्राण बचाकर भागो. जंगल की आग ऐसे नहीं बुझेगी।”

       उनकी बातें सुनकर चिड़िया बोली, “तुम लोगों को भागना है, तो भागो  मैं नहीं भागूंगी  ये जंगल मेरा घर है और मैं अपने घर की रक्षा के लिए अपना पूरा प्रयास करूंगी फिर कोई मेरा साथ दे न दे.”

       चिड़िया की बात सुनकर सभी जानवरों के सिर शर्म से झुक गए।  उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ।  सबने चिड़िया से क्षमा मांगी और फिर उसके साथ जंगल में लगी आग बुझाने के प्रयास में जुट गए. अंततः उनकी मेहनत रंग लाई और जंगल में लगी आग बुझ गई।

Moral of the story -मनुष्य को भी नन्ही चिड़िया के जैसे कठिन परिस्थति में  बिना प्रयास के कभी हार नहीं माननी चाहिए।


                               मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है।
                               पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है।  


विपत्ति चाहे कितनी ही बड़ी क्यों न हो? बिना प्रयास के कभी हार नहीं मानना चाहिए.



 

सोमवार, 3 अप्रैल 2023

शेर की कहानियाँ हिंदी में

  शेर और भोले पंडित की कहानी 
Monkey Claverness save Poojari

     एक बार जंगल के पास एक गाँव था और जंगल से जंगली जानवर गाँव में आ जाते थे और जानवरो को शिकार बनाते थे। एक बार जंगल का राजा शेर आ गया। शेर गाँव के जानवरों को मार का खा जाता था। गाँव वाले बहुत परेशान हो गए और उन्होंने गाँव के पास एक पिंजरा लगाकर शेर को पिंजरे में बंद कर दिया। 

एक दिन सांय पूजा करके मंदिर का पुजारी घर आ रहा था। तभी शेर ने पुजारी जी से पिंजरा खोलने का आग्रह किया। 

पुजारी जी ने कहा –“पक्का तुमने गाँव वालों को परेशान किया होगा तभी तुम्हें इस पिंजरे में बंद किया है। 

यदि मैं पिंजरा खोल दूंगा तो तुम मुझे खा जाओगे। ” शेर ने पक्का वचन दिया कि पुजारी उसका पिंजरा खोल देगा तो शेर उसे कुछ नहीं करेगा और जंगल चला जायेगा। 

पुजारी ठहरा दयालु प्रवर्ती का और वह शेर की बातों में आ गया और पिंजरा खोल दिया जैसे ही पुजारी ने पिंजरा खोला वैसे ही शेर ने उसे दबोच लिया। 

भोला पुजारी बोला – “ शेर ! तुम तो जंगल के राजा हो और मैंने तुम्हारी सहायता की है। तुमने मुझे पक्का वचन भी दिया था कि तुम मुझे नहीं खाओगे। ” 

शेर –“मैं तो जंगली जानवर हूँ मैं ये वचन का पालन नहीं कर सकता,मुझे जोरों की भूख लगी है और मैं तुम्हें खा कर अपनी भूख मिटाऊंगा।” 

 वहीँ पास में एक पेड़ पर एक बन्दर बैठा था और वो पुजारी और शेर का पूरा किस्सा सुन रहा था। पुजारी की बात सुनकर बन्दर बोला –“पुजारी क्यों बेवकूफ बना रहे हो ! शेर तो पिंजरे में हो ही नहीं सकता क्योंकि शेर इतना बड़ा है और पिंजरा इतना छोटा। शेर इसमें बंद नहीं हो सकता। ”

 बन्दर की बात सुनकर शेर बोला -“मूर्ख बन्दर ! इन गांव वालो ने मुझे इसी पिंजरे में बंद किया था। ”

 बन्दर बोला- “मैं मान ही नहीं सकता। आप इतने बड़े और ये पिंजरा इतना छोटा ! ना ये संभव नहीं हो सकता। जब तक आप इस पिंजरे में जा कर नहीं दिखलायेंगे ,मैं कैसे मान लूँ आपको कोई इतने छोटे पिंजरे में बंद कर सकता है। 

 बंदर के कहने पर शेर पिंजरे में चला गया। जैसे ही शेर पिंजरे में गया बन्दर ने बाहर से पिंजरा बंद कर दिया। इस प्रकार शेर फिर से पिंजरे में बंद हो जाता है और बन्दर की चतुराई से भोले भाले पुजारी की जान बची। 

शिक्षा – शेर,बन्दर और पुजारी की कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि दुष्ट कभी भी विश्वास के योग्य नहीं होते हैं। ”

शेर और चूहा

Kinds is best quality of Human beings

 एक बार  जंगल में एक शेर गहरी नींद में  सोया हुआ था । तभी उसके पास में एक चूहा आया और चूहा शेर के ऊपर चढ़कर खेलने लगा ।जैसे ही शेर की नींद खुली तो यह सब देख के शेर को गुस्सा आ गया और उसने चूहे को दबोच लिया और उसे खाने लगा। चूहे ने बड़ी मासूमियत से उसे छोड़ने का आग्रह किया हे शेर मामा आप मुझे छोड़ दीजिए किसी दिन में आपकी मदद करूंगा। चूहे को मासूमियत से शेर को दया आ गई व शेर उसपे हंसने लगा।और उसने चूहे को छोड़ दिया।  

       कुछ ही दिन हुऐ थे की  शेर शिकारियों के बिछाए हुऐ जाल के में फंस गया । अब क्या था शेर मजबूर था और खूब कोशिश पर जाल से पार नहीं पा सका दुखी होकर जोर जोर से दहाड़ लगाता रहा। तभी चूहे ने सुना की शेर मामा के दहाड़ने की आवाज आ रही हैं।और तुरंत शेर के पास पहुंच गया। अब क्या था तुरंत जाल को कुतरने लग गया और अपने नुकीले दांतो से जाल को काट दिया।और शेर को आजाद कराया। इस तरह से शेर की दयालुता का अहसान उसकी शिकारियों से जान बचाकर चुकाया। इस प्रकार से शेर और चूहे को दोस्ती पक्की हो गई।


शिक्षा - हमे शारीरिक आधार और ताकतवर और कमजोर से इंसान को छोटा बड़ा नही मानना चाहिए।और हमेशा कमजोर और दिन दुखियो पर दया का भाव रखना चाहिए और मदद करनी चाहिए।


इसलिए रहीम जी ने अपने दोहे में कहा हैं की
"रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दिजिए डारी।
जहां काम आवे सुई,कहा करे तलवारी।।" 

प्रश्न 1 -चूहा चीज वस्तुओ को क्यों कुतरता हैं ?


उत्तर -चूहों के दांत निरंतर बढ़ते रहते हैं और ये इतने ज्यादा मजबूत होते हैं कि वे सीमेंट और धातु जैसी चीजों को भी कुतर सकते हैं।  आमतौर पर चूहे के दांत उसके जीवन काल में 20 से 22 सेंटीमीटर तक बढ़ते हैं। यदि चूहा वस्तुओं को कुतरना बंद कर दे तो ये दाँत उसको भोजन करने में बाधक बन जायेंगे और वो भूख से मर्त्यु हो जाएगी इसलिए इसके वस्तुओ के कुतरने से उसके दाँत घिसते रहते हैं और वो आसानी से भोजन कर पता हैं।


प्रश्न 2 -क्या चूहा लोहे के सरियों को भी काट सकता हैं ?


उत्तर- हाँ यह सही हैं की चूहा ताम्बा और लोहे को भी काट सकता हाँ। जर्मनी के एक वैज्ञानिक मिनरलॉगिस्ट फ़्रीड्रिक मोह ने 1812 में वस्तुओ के हॉर्ड्नेस को मापने का एक पैमाना बनाया। इस पैमाने से वस्तुओं की कठोरता का माप किया जाता है। इसमें 1 से 10 तक के स्केल पर चूहों के दाँतो की हार्ड्नेस 5.5 पाई गई। यानि की  चूहों के दाँत तांबा और लोहा दोनो से ज़्यादा कठोर होते हैं। जिस चीज को तांबा या लोहे के औजार से तोड़ा नहीं जा सकता उसे चूहे अपने दांत से कुतर सकते हैं।


प्रश्न 3- चूहे के कितने दांत होते हैं ?


उत्तर -चूहों के 16 दांत होते हैं। उनके चार कृंतक होते हैं, दो ऊपरी और दो निचले, मुंह के सामने स्थित होते हैं, जिनका उपयोग कुतरने और काटने के लिए किया जाता है।

 

घमंडी शेर

एक जंगल में एक शेर था उसको अपनी ताकत पर बहुत घमंड था।  उसके दिमाक में यह बात बार बार आती थी की वह जंगल का राजा हैं और सभी जानवर उससे कांपते हैं।इसलिए उसे अपनी ताकत और साहस का कुछ ज्यादा ही रोब दिखाता था।
एक दिन शेर जंगल की सैर पर जा रहा था रास्ते में उसे एक खरगोश मिला।शेर ने खरगोश से पूछा -"बताओ जंगल का राजा कौन ?"
डरता हुआ खरगोश -"महाराज!आप।"
शेर मन ही मन खुश होते हुए आगे बढ़ गया। रास्ते में उसे हिरण मिल गया।
शेर ने वहीं सवाल हिरण से किया -"बताओ जंगल का राजा कौन?"
हिरण डरते हुए -"महाराज ! आपके अलावा और कौन हो सकता हैं।"
शेर हिरण का जबाव सुनकर प्रसन्नता से आगे चल दिया। खिरगोश और हिरण की तरह ही लोमड़ी और भालू ने भी जवाब दिया और शेर मन ही मन बहुत खुश होता।
अब थोड़ी आगे चलने पर शेर को हाथी मिला शेर ने हाथी से पुछा की "बताओ जंगल का राजा कौन?"
हाथी पहले से ही घर पर झगड़े से गुस्से में था।और शेर की बेतुकी बात सुनकर हाथी का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया और उसने शेर को अपनी सूंड में शेर को पकड़ा और ऊपर उछाल कर पटक दिया।अब हाथी ने शेर से पुछा -"अब बतलाऊं की जंगल का राजा कौन ?"
हाथी से पिटाई खाकर शेर को बहुत दर्द हो रहा था तभी शेर बोला -"नही हाथी भाई मुझे अपनी ताकत पर घमंड था " अब में समझ गया की हर जगह हेंकड़ी नही दिखानी चाहिए।


शिक्षा -अपनी शारीरिक और मानसिक ताकत का इस्तेमाल सोच समझ कर करना चाहिए

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        महाभारत में जब हनुमानजी भीम के रास्ते में अपनी पूंछ फैला लेते हुऐ थे तब भी ने अपने घमंड में कहा की ऐ बंदर अपनी पूंछ को रास्ते से दूर कर नही तो मैं इसे उठा कर फेंक दुंगा। तब हनुमान ने कहा की बेटा में अब बूढ़ा हो गया हूं तनिक आप ही कोशिश करके इसे दूर करदो। भीम को गुस्सा आया और वो पूंछ को उठाने लगा लेकिन बिल्कुल भी हिला नही पाया तब हनुमान जी ने उसे दर्शन दिए और भीम को अपनी ताकत के घमंड को सही इस्तेमाल की शिक्षा दी।।

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