Divorce story in Hindu Pair/प्रेम कहानी
रश्मि मेरे ऑफिस में ही काम करती थी।और उसके पति रमेश किसी अन्य कम्पनी में वित्तीय विभाग में मैनेजर की पोस्ट पर काम करते थे। बहुत से मौको पर आपसी मुलाकातों से रमेश से भी अच्छी दोस्ती हो गई थी।
     विवाह
 उपरांत कुछ वर्षो के बाद दोनो के जीवन में तलाक लेने की जंग शुरू हो गई। 
जैसे ही मुझे भनक पड़ी तो मुझे एक पंडित जी की कही बाते ताजा हो गई की जीवन
 साथी को छोड़ने के लिए 2 शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
एक डायवोर्स 
(Divorce) जो अंग्रेज़ लोग लेते हैं और दूसरा तलाक़ जो मुस्लिम लोग लेते 
हैं। हमारे हिंदुओ में ऐसा कोई शब्द निर्माण नही किया गया क्योंकि इसकी कोई
 आवश्यकता नहीं होती थी। क्योंकि हिंदुओ में तो जन्म जन्म के रिश्ते बनते 
हैं। जिनका निर्धारण भगवान के यँहा  होता हैं और एक बार रिश्ते की डोर में 
बंध जाने के बाद यह अटूट रिश्तों की श्रेणी में आ जाता हैं। में तुरंत 
रश्मि के पास गया और उससे बात की और अगले ही दिन  
मैं शाम को... उसके 
घर पहुंचा...। उसने चाय बनाई... और मुझसे बात करने लगी...। पहले तो इधर-उधर
 की बातें हुईं..., फिर उसने कहना शुरू कर दिया कि... रमेश से उसकी नहीं बन
 रही और उसने उसे तलाक देने का फैसला कर लिया है...।
मैंने पूछा 
कि... "रमेश कहां है...?" तो उसने कहा कि... "अभी कहीं गए हैं..., बता कर 
नहीं गए...।" उसने कहा कि... "बात-बात पर झगड़ा होता है... और अब ये झगड़ा 
बहुत बढ़ गया है..., ऐसे में अब एक ही रास्ता बचा है कि... अलग हो जाएं...,
 तलाक ले लें...!"
रश्मि जब काफी देर बोल चुकी... तो मैंने उससे कहा कि... "तुम रमेश को फोन करो... और घर बुलाओ..., कहो कि आनंद आए हैं...!"
रश्मि ने कहा कि... उनकी तो बातचीत नहीं होती..., फिर वो फोन कैसे करे...?!!!
खैर...,
 रश्मि ने फोन नहीं किया...। मैंने ही फोन किया... और पूछा कि... "तुम कहां
 हो...  मैं तुम्हारे घर पर हूँ..., आ जाओ...। रमेश पहले तो आनाकानी करता 
रहा..., पर वो जल्दी ही मान गया और घर चला आया...।
अब दोनों के 
चेहरों पर... तनातनी साफ नज़र आ रही थी...। ऐसा लग रहा था कि... कभी दो 
जिस्म-एक जान कहे जाने वाले ये पति-पत्नी... आंखों ही आंखों में एक दूसरे 
की जान ले लेंगे...! दोनों के बीच... कई दिनों से बातचीत नहीं हुई थी...!!
रमेश मेरे सामने बैठा था...। मैंने उससे कहा कि... "सुना है कि... तुम रश्मि  से... तलाक लेना चाहते हो...?!!!
उसने कहा, “हाँ..., बिल्कुल सही सुना है...। अब हम साथ... नहीं रह सकते...।"
अज़ीब
 सँकट था...! रश्मि को मैं... बहुत पहले से जानता हूं...। मैं जानता हूं 
कि... रमेश से शादी करने के लिए... उसने घर में कितना संघर्ष किया था...! 
बहुत मुश्किल से... दोनों के घर वाले राज़ी हुए थे..., फिर धूमधाम से शादी 
हुई थी...। ढ़ेर सारी रस्म पूरी की गईं थीं... ऐसा लगता था कि... ये जोड़ी 
ऊपर से बन कर आई है...! पर शादी के कुछ ही साल बाद... दोनों के बीच झगड़े 
होने लगे... दोनों एक-दूसरे को खरी-खोटी सुनाने लगे... और आज उसी का नतीज़ा
 था कि... आनंद... रश्मि और रमेश  के सामने बैठे थे..., उनके बीच के टूटते 
रिश्तों को... बचाने के लिए...!
आनंद ने कहा की “पति की... 'बीवी' नहीं होती?” यह सुनकर वो दोनों चौंक गए। 
" “बीवी" तो... 'शौहर' की होती है..., 'मियाँ' की होती है..., पति की तो... 'पत्नी' होती है...! "
भाषा
 के मामले में... मेरे  सामने उनका  टिकना मुमकिन नहीं था..., हालांकि 
रमेश  ने कहा  कि... "भाव तो साफ है न ?" बीवी कहें... या पत्नी... या फिर 
वाइफ..., सब एक ही तो हैं..., लेकिन मेरे कहने से पहले ही... उन्होंने 
मुझसे कहा कि... "भाव अपनी जगह है..., शब्द अपनी जगह...! कुछ शब्द... कुछ 
जगहों के लिए... बने ही नहीं होते...! ऐसे में शब्दों का घालमेल गड़बड़ी 
पैदा करता है...।"
खैर..., आज मैं भाषा की कक्षा लगाने नहीं आया...,
 आज मैं रिश्तों के एक अलग अध्याय को जीने के लिए आपके पास आया हूं...। 
लेकिन इसके लिए... आपको मेरा  साथ देना होगा। 
दोनों ने हांमी भरते हुए अपना सिर हिलाया। 
 
मैंने कहा कि... "तुम चाहो तो... अलग रह सकते हो..., पर तलाक नहीं ले सकते...!"
रमेश ने कहा “क्यों...???
आनंद : “क्योंकि तुमने निकाह तो किया ही नहीं है...!”
"अरे यार..., हमने शादी तो... की है...!"
“हाँ...,
 'शादी' की है...! 'शादी' में... पति-पत्नी के बीच... इस तरह अलग होने 
का... कोई प्रावधान नहीं है...! अगर तुमने 'मैरिज़' की होती तो... तुम 
"डाइवोर्स" ले सकते थे...! अगर तुमने 'निकाह' किया होता तो... तुम "तलाक" 
ले सकते थे...! लेकिन क्योंकि... तुमने 'शादी' की है..., इसका मतलब ये हुआ 
कि... "हिंदू धर्म" और "हिंदी" में... कहीं भी पति-पत्नी के एक हो जाने के 
बाद... अलग होने का कोई प्रावधान है ही नहीं....!!!"
मैंने इतनी-सी 
बात... पूरी गँभीरता से कही थी..., पर दोनों हँस पड़े थे...! दोनों को... 
साथ-साथ हँसते देख कर... मुझे बहुत खुशी हुई थी...। मैंने समझ लिया था 
कि... रिश्तों पर पड़ी बर्फ... अब पिघलने लगी है...! वो हँसे..., लेकिन मैं
 गँभीर बना रहा...
मैंने फिर रश्मि  से पूछा कि... "ये तुम्हारे कौन हैं...?!!!"
रश्मि
 ने नज़रे झुका कर कहा कि... "पति हैं...! मैंने यही सवाल रमेश  से किया 
कि... "ये तुम्हारी कौन हैं...?!!! उसने भी नज़रें इधर-उधर घुमाते हुए कहा 
कि..."बीवी हैं...!"
मैंने तुरंत फिर टोका... "ये... तुम्हारी बीवी 
नहीं हैं...! ये... तुम्हारी बीवी इसलिए नहीं हैं.... क्योंकि... तुम इनके 
'शौहर' नहीं...! तुम इनके 'शौहर' नहीं..., क्योंकि तुमने इनसे साथ "निकाह" 
नहीं किया... तुमने "शादी" की है...! 'शादी' के बाद... ये तुम्हारी 'पत्नी'
 हुईं..., हमारे यहाँ जोड़ी ऊपर से... बन कर आती है...! तुम भले सोचो कि...
 शादी तुमने की है..., पर ये सत्य नहीं है...! तुम शादी का एलबम निकाल कर 
लाओ..., मैं सबकुछ... अभी इसी वक्त साबित कर दूंगा...!"
बात अलग 
दिशा में चल पड़ी थी...। मेरे एक-दो बार कहने के बाद... रश्मि शादी का एलबम
 निकाल लाई..., अब तक माहौल थोड़ा ठँडा हो चुका था..., एलबम लाते हुए... 
उसने कहा कि... कॉफी बना कर लाती हूं...।"
मैंने कहा कि..., "अभी 
बैठो..., इन तस्वीरों को देखो...।" कई तस्वीरों को देखते हुए... मेरी निगाह
 एक तस्वीर पर गई..., जहाँ रश्मि और रमेश  शादी के जोड़े में बैठे थे...। 
और पाँव~पूजन की रस्म चल रही थी...। मैंने वो तस्वीर एलबम से निकाली... और 
उनसे कहा कि... "इस तस्वीर को गौर से देखो...!"
उन्होंने तस्वीर देखी... और साथ-साथ पूछ बैठे कि... "इसमें खास क्या है...?!!!"
मैंने कहा कि... "ये पैर पूजन की  रस्म है..., तुम दोनों... इन सभी लोगों से छोटे हो..., जो तुम्हारे पांव छू रहे हैं...।"
“हां तो....?!!!"रश्मि ने कहा। 
“ये
 एक रस्म है... ऐसी रस्म सँसार के... किसी धर्म में नहीं होती... जहाँ 
छोटों के पांव... बड़े छूते हों...! लेकिन हमारे यहाँ शादी को... ईश्वरीय 
विधान माना गया है..., इसलिए ऐसा माना जाता है कि... शादी के दिन पति-पत्नी
 दोनों... 'विष्णु और लक्ष्मी' के रूप होते हैं..., दोनों के भीतर... ईश्वर
 का निवास हो जाता है...! अब तुम दोनों खुद सोचो कि... क्या हज़ारों-लाखों 
साल से... विष्णु और लक्ष्मी कभी अलग हुए हैं...?!!! दोनों के बीच... कभी 
झिकझिक हुई भी हो तो... क्या कभी तुम सोच सकते हो कि... दोनों अलग हो 
जाएंगे...?!!! नहीं होंगे..., हमारे यहां... इस रिश्ते में... ये प्रावधान 
है ही नहीं...! "तलाक" शब्द... हमारा नहीं है..., "डाइवोर्स" शब्द भी हमारा
 नहीं है...!"
यहीं दोनों से मैंने ये भी पूछा कि... "बताओ कि... हिंदी में... "तलाक" को... क्या कहते हैं...???"
दोनों
 मेरी ओर देखने लगे उनके पास कोई जवाब था ही नहीं फिर मैंने ही कहा कि... 
"दरअसल हिंदी में... 'तलाक' का कोई विकल्प ही नहीं है...! हमारे यहां तो...
 ऐसा माना जाता है कि... एक बार एक हो गए तो... कई जन्मों के लिए... एक हो 
गए तो... प्लीज़ जो हो ही नहीं सकता..., उसे करने की कोशिश भी मत करो...! 
या फिर... पहले एक दूसरे से 'निकाह' कर लो..., फिर "तलाक" ले लेना...!!"
अब तक रिश्तों पर जमी बर्फ... काफी पिघल चुकी थी...!
रश्मि चुपचाप मेरी बातें सुन रही थी...। फिर उसने कहा कि... "भैया, मैं कॉफी लेकर आती हूं...।"
वो
 कॉफी लाने गई..., मैंने रमेश  से बातें शुरू कर दीं...। बहुत जल्दी पता चल
 गया कि... बहुत ही छोटी-छोटी बातें हैं..., बहुत ही छोटी-छोटी इच्छाएं 
हैं..., जिनकी वज़ह से झगड़े हो रहे हैं...।
खैर..., कॉफी आई मैंने 
एक चम्मच चीनी अपने कप में डाली...। रमेश  के कप में चीनी डाल ही रहा था 
कि... रश्मि ने रोक लिया..., “भैया..., इन्हें शुगर है... चीनी नहीं 
लेंगे...।"
लो जी..., घंटा भर पहले ये... इनसे अलग होने की सोच रही थीं...। और अब... इनके स्वास्थ्य की सोच रही हैं...!
मैं
 हंस पड़ा मुझे हंसते देख रश्मि थोड़ा झेंपी कॉफी पी कर मैंने कहा कि... 
"अब तुम लोग... अगले हफ़्ते निकाह कर लो..., फिर तलाक में मैं... तुम दोनों
 की मदद करूंगा...!"
शायद अब दोनों समझ चुके थे.....
हिन्दी एक भाषा ही नहीं - संस्कृति है...!
इसी तरह हिन्दू भी धर्म नही - सभ्यता है...!!
और
 विवाह एक मात्र बंधन नहीं जीवन जीने और निभाने का निर्णय हैं।  जिसमे 
प्रेम पनपता हैं 
FAऔर खुशियों के साथ जीवन के कठिन पलों के लिए संघर्ष करना सिखाता हैं।

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